दुमका: खुद प्राइमरी तक ही पढ़े-लिखे थे, पर संसद पहुंच हेंब्रम ने कहा था, भले ही रेल अभी न दीजिए, पर कॉलेज खुलवा दीजिए

आनंद जायसवाल दुमका : दुमका के पहले सांसद के रूप में 1952 में संसद पहुंचनेवाले लाल हेंब्रम को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से अपने संसदीय क्षेत्र के लिए कुछ मांगने का अवसर मिला, तो उन्होंने अपने इलाके लिए लिए बड़ा स्कूल (हायर एजुकेशन के लिए कॉलेज) की मांग रखी थी. लाल हेंब्रम खुद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 27, 2019 6:06 AM

आनंद जायसवाल

दुमका : दुमका के पहले सांसद के रूप में 1952 में संसद पहुंचनेवाले लाल हेंब्रम को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से अपने संसदीय क्षेत्र के लिए कुछ मांगने का अवसर मिला, तो उन्होंने अपने इलाके लिए लिए बड़ा स्कूल (हायर एजुकेशन के लिए कॉलेज) की मांग रखी थी.

लाल हेंब्रम खुद प्राइमरी तक ही पढ़े-लिखे थे. उस समय के आदिवासी युवा कॉलेज तो दूर हाइस्कूल की शिक्षा से भी वंचित रह जाते थे. लाल हेंब्रम को खुद भी अधिक न पढ़-लिख पाने का मलाल था. ऐसे में जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें उनके इलाके में (दुमका में) रेल सेवा पहुंचाने की पेशकश की थी, तो लाल हेंब्रम ने कहा था कि भले ही रेल बाद में दे दीजिए, लेकिन पहले उनके क्षेत्र के बच्चों के लिए बड़ा स्कूल दे दीजिए. ऐसे में लाल बाबा की मांग पर पीएमओ ने उस वक्त जिले के डिप्टी कमिश्नर उज्ज्वल कुमार घोष को आदेश भेजा था, इसके बाद दुमका में एसपी कॉलेज की स्थापना की पहल हुई.

1954 में ही यानी लाल बाबा के सांसद बनने के दो साल के भीतर ही कॉलेज स्थापित भी हो गया. शुरुआती दौर में यह कॉलेज जिला स्कूल में चला. बाद में इसका अपना भवन भी बन कर तैयार हुआ. लाल बाबा ने इस कॉलेज की स्थापना कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. उनके साथ कॉलेज की स्थापना में जिन लोगों ने भरपूर सहयोग किया था उनमें महेश्वर प्रसाद झा, ठाकुर प्रसाद दारुका और डिप्टी कमिश्नर उज्ज्वल कुमार घोष शामिल थे.

लगभग 10 किमी की दूरी पर तब थी अपर प्राइमरी की सुविधा

लाल हेंब्रम का जन्म शिकारीपाड़ा के सरायदाहा में हुआ था. गांव में ही लोअर प्राइमरी तक उनकी पढ़ाई हुई थी. अपर प्राइमरी की पढ़ाई के लिए सरायदाहा से तब कुमड़ाबाद जाना होता था, जिसकी दूरी तकरीबन 10 किमी थी.

पुत्र हरि हेंब्रम बताते हैं कि दूरी की वजह से ही और सुविधाओं के अभाव में ही पिताजी आगे तक नहीं पढ़ पाये थे. कम पढ़े-लिखे रहने के बावजूद उन्हें शिक्षा के महत्व का एहसास था. इसलिए उन्होंने हमेशा शिक्षा के प्रसार के बारे में ही सोचा था. उनकी सोच मानसिक-बौद्धिक व सामाजिक तौर पर लोगों को आगे ले जाने की रही थी.

आजीवन ईमानदारी की मिसाल पेश की थी लाल बाबा ने

लाल हेंब्रम स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़े रहे थे. पहले फारवर्ड ब्लॉक के एक कार्यकर्ता के रूप में, फिर कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में. आजादी के बाद सत्ता के शीर्ष पर पहुंचें, तो भी अपने अंदर के ईमान पर आंच नहीं आने दी.

मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया. गांव-समाज और इलाके की चिंता की. कई बार तो ऐसा हुआ कि लोगों की मदद के लिए खुद गारंटर बनते और मदद दिलवाते. ऐसी ही मदद की वजह से उनके निधन के बाद परिजनों को दूसरे के उधार को न चुकता करने पर अपने मवेशियों को भी बेचना पड़ा था, क्योंकि लाल बाबा ने उन्हें उधार दिलवाया था, मदद करायी थी.

क्या कहते हैं इतिहासकार व परिजन

लाल हेंब्रम भले ही कम पढ़े-लिखे थे, पर उनकी सोच बहुत बड़ी थी. उनकी सोच दीर्घकालिक थी. इसलिए उन्होंने शिक्षा के विस्तार को अपनी प्राथमिकता में रखा था. एसपी कॉलेज उनकी बड़ी देन है.

डॉ सुरेंद्र झा, इतिहासकार

लाल बाबा ने सेवा भावना से बहुत काम किया था. एसपी कॉलेज तो उनमें से एक है. चाहे बुनकर के हित की बात हो या खादी के प्रसार की, उन्होंने उनकी आवाज बुलंद की. सेवा भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी.

हरि हेंब्रम, लाल हेंब्रम के पुत्र.

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