10 दिन बाद सफाईकर्मियों की हड़ताल खत्म

दुमका : झारखंड लोकल बॉडीज इंपलोइज फेडरेशन के आह्वान पर 22 दिसंबर से दुमका नगर परिषद् के सफाई कर्मचारियों का चला आ रहा बेमियादी आंदोलन गुरुवार को चेयरपर्सन अमिता रक्षित, कार्यपालक पदाधिकारी जय ज्योति सामंता तथा पार्षदों के साथ वार्ता के बाद समाप्त हो गया. फेडरेशन की ओर से सचिव विजय कुमार ने सभी मांगों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 1, 2016 4:24 AM

दुमका : झारखंड लोकल बॉडीज इंपलोइज फेडरेशन के आह्वान पर 22 दिसंबर से दुमका नगर परिषद् के सफाई कर्मचारियों का चला आ रहा बेमियादी आंदोलन गुरुवार को चेयरपर्सन अमिता रक्षित, कार्यपालक पदाधिकारी जय ज्योति सामंता तथा पार्षदों के साथ वार्ता के बाद समाप्त हो गया. फेडरेशन की ओर से सचिव विजय कुमार ने सभी मांगों को बिंदुवार रखा.

जिन बिंदुओं पर सहमति बनी, उसमें सभी कर्मचारियों को दो माह का वेतन देने, एरियर के भुगतान के लिए किसी भी स्त्रोत से आय प्राप्त होने पर भुगतान करने, सेवा पुस्तिका अद्यतन करने के लिए लेखापाल श्रीनाथ यादव को सहायता प्रदान के लिए सतीश चंद्र हाड़ी, शांति नाथ भुई एवं वासुदेव प्रसाद साह को अधिकृत किया गया तथा इस कार्य को पूरा कराये जाने के बाद उनसे दूसरा कार्य लेने की मांग शामिल थे.

वहीं अनुबंध पर कार्यरत कर्मियों को नियमित करने के लिए सरकार को स्मार पत्र भेजने, सफाईकर्मियों की पोशाक उपलब्ध कराने व दस्ताने, जूते आदि 15 दिनों के अंदर उपलब्ध कराने,

सेवानिवृत्त 14 कर्मियों के 240 दिनों के अर्जित वेतन का भुगतान करने, नियमित कर्मियों का वेतन बनाने का दायित्व सतीश चंद्र हाड़ी को देने, संस्था द्वारा कराये गये कार्य की जांच पर आवश्यक कार्रवाई करने, श्रम विभाग द्वारा प्राप्त पत्र पर निर्णय अगली बैठक में लेने तथा अनुबंधकर्मियों के मानदेय में 1000 रुपये की वृद्धि की दिशा में पहल करने तथा हड़ताल अवधि के कार्य का समायोजन रविवार के दिनों में कार्य कराकर पूरा करने का समझौता किया गया.

प्रारंभिक कर्मकांड में स्वार्थ को खत्म किया जाता

यह एक मनुष्य द्वारा अभिनीत नाटक है, जिसमें अभिनेता विश्वास करता है कि जो अभिनय कर रहा है, वह एकदम यथार्थ है. उस कर्मकांड के दरम्यान कुछ लोग तो पागल हो गये और कुछ मर गये.

इस अभिनय का मंच कोई शमशान अथवा कोई भयोत्पादक स्थान होता है जिसका किसी दुखद घटना तथा भूत-प्रेतों की कथा से संबंध होता है. नृत्य में उसके कदम इस तरह पड़ते हैं कि यंत्राें की आकृति बनती है. उसके अंतर्गत उछलकूद शामिल है. उस नृत्य में घंटी (दोर्जे) जादुई खंजर (फूरबा), डमरू तथा तुरही (कंगलिंग) प्रयुक्त होते हैं.

इस प्रारंभिक कर्मकांड में वासना को कुचला जाता है और स्वार्थ को खत्म किया जाता है. इस कर्मकांड का अनिवार्य अंग रहस्यमय दावत है जिसमें साधक मानव अस्थि से बना तुरही बजाकर भूखे प्रेत-पिशाचों को दावत का निमंत्रण देता है. यह उसके अपने शरीर की दावत होती है. वह एक देवी (जो उसकी अपनी इच्छा शक्ति होती है) का अंतर्दर्शन करता है जो उसका सिर तथा अंगों को काटती तथा उसकी चमड़ी को उधेड़ती है.

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