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टिश्यू कल्चर लैब पड़ा है बेकार

लचर व्यवस्था. करोड़ों रुपये खर्च हुए पर दो साल से नहीं तैयार हो रहे पौधेप्रभात खबर डिजिटल प्रीमियम स्टोरीSpies In Mauryan Dynasty : मौर्य काल से ही चल रही है ‘रेकी’ की परंपरा, आज हो तो देश में मच जाता है बवालRajiv Gauba : पटना के सरकारी स्कूल से राजीव गौबा ने की थी पढ़ाई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 4, 2016 6:41 AM

लचर व्यवस्था. करोड़ों रुपये खर्च हुए पर दो साल से नहीं तैयार हो रहे पौधे

केले के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लैब का निर्माण किया गया था. ताकि यहां के किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध किया जा सके मगर यह सपना अधूरा ही रह गया है.
दुमका : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के दुमका स्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र में 2009 में स्थापित हुई थी उत्तक संवर्द्धन इकाई अर्थात टिश्यू कल्चर लैब. पूरे तामझाम से इसका उद‍घाटन हुआ था. इस लैब में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए टिश्यू के जरिये ही केले के पौधे तैयार करने और उसे किसानों को उपलब्ध कराने का लक्ष्य था, ताकि इस क्षेत्र में केले के उत्पादन को बढ़ावा मिल सके और किसानों की आमदनी में इजाफा हो.
किसानों ने ही नहीं इस क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों ने भी उम्मीद लगायी थी कि इससे इलाके की तसवीर बदलेगी. पर आज वह सपना धूमिल हो चुका है. यह इकाई आज मृत होने के कगार पर पहुंच चुकी है. ऐसा नहीं है कि स्थानीय वैज्ञानिक और कर्मी इसके लिए प्रयास नहीं करना चाहते. पर उनके प्रयास इसलिए भी विफल होता जा रहा है, क्योंकि इसके संचालन के लिए किसी तरह का आवंटन नहीं मिल पा रहा.
2500 रुपये है मानदेय, वह भी साल भर का बकाया : इस उत्तक संवर्द्धन इकाई में चार कर्मी कार्यरत थे. दो ने काम छोड़ दिये. इसकी वजह थी काम के बाद समय पर मानदेय का न मिल पाना. दो लोग अभी भी काम कर रहे हैं. सुरेश मुर्मू एवं कामदेव. दोनों को अभी 2500-2500 करके मानदेय मिलता है. मानदेय न्यूनतम मजदूरी से भी कम है. दुभार्ग्य यह भी है कि साल भर से उनका मानदेय बकाया भी है. ऐसे में उनका गुजारा हो भी तो आखिर कैसे. सुरेश बताते है कि लैब ठप होते जा रहा है. छह-सात एसी है, केवल एक एसी काम कर रहा है. दो साल से तो पौधे तैयार कर उपलब्ध नहीं कराये जा सके.
कहते हैं सह निदेशक
क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र के सह निदेशक डॉ बीके भगत का कहना है कि बिजली की समस्या यहां बहुत भयावह है. ट्रांफॉर्मर जले 6 माह गुजर चुका है. कई मशीनें भी खराब है. पहले भी कुछ मरम्मत हुई थी, उसका भी भुगतान लंबित है. दो कर्मियों का मानदेय साल भर से बकाया है. हमने स्थिति से अवगत कराया है. इस लैब को बैठा देना उचित नहीं होगा. करोड़ रुपये लगभग इसमें खर्च हुए हैं. संसाधन मुहैया कराते हुए अगर अच्छे से यह संचालित हो, तो हम टिश्यू कल्चर से कृषि के क्षेत्र में बहुत आगे निकल पायेंगे.
2014 के बाद तैयार नहीं हो सके पौधे
2014 के बाद से यहां टिश्यू कल्चर के जरिये पौधे सही-सही तरीके से तैयार नहीं हो पा रहे हैं. लिहाजा किसानों तक अच्छे प्रभेद के केले के पौधे नहीं पहुंच पा रहे हैं. संताल परगना में साहिबगंज जैसे गंगा के तटीय इलाके में इसकी उपयोगिता सुनिश्चित करायी जा सकती थी. दुमका के भी रानीश्वर, सरैयाहाट, दुमका, मसलिया के कुछ इलाकों में केले की खेती को बृहत पैमाने पर करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता था.

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