संप के लिये बने अलग से डेवलपमेंट प्लान : बाबूलाल
कहा, अधिकारों की रक्षा के लिये एसपीटी से भी कठोर कानून की जरूरत दुमका : झारखंड विकास मोरचा के केंद्रीय अध्यक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि संतालपरगना के लिए अलग से विकास की योजना बनाये जाने की जरूरत है. उन्होंने प्रभात खबर से खास बातचीत में कहा कि इस क्षेत्र के […]
कहा, अधिकारों की रक्षा के लिये एसपीटी से भी कठोर कानून की जरूरत
दुमका : झारखंड विकास मोरचा के केंद्रीय अध्यक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि संतालपरगना के लिए अलग से विकास की योजना बनाये जाने की जरूरत है. उन्होंने प्रभात खबर से खास बातचीत में कहा कि इस क्षेत्र के विकास, यहां रहने वाले लोगों के हक (अधिकार) और हासा (जमीन) की रक्षा के लिए आज संतालपरगना कास्तकारी कानून से भी कठोर कानून बनाये जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हक-हासा की रक्षा के लिये उनकी पार्टी झारखंड विकास मोरचा नये हूल का आगाज करेगी. श्री मरांडी ने कहा कि 1855 में संताल हूल हुआ था, तो उस हूल के पीछे हक व हासा की ही बात थी.
ठीक 161 साल बाद भी इस इलाके की वही स्थिति पैदा हो गयी है. उन्होंने कहा कि हूल दिवस के दिन (30 जून) हम उन शहीदों को इसलिए भी याद करते हैं कि यहां के लोगों के हक-हासा दिलाने की कोशिश की थी. इसके लिए लोगों को संगठित किया था. संप में जिस प्रकार से कोयला-पत्थर जैसे खनिज के भंडार हैं और सरकार कौड़ी के भाव से उस जमीन का अधिग्रहण कर रही है, वह दुभार्ग्यपूर्ण है. रैयतों को उनका वाजिब हक नहीं दिलाया गया तो पूरा संप खंडहर में तब्दील हो जायेगा. श्री मरांडी ने कहा कि साहिबगंज के मिर्जाचौकी से लेकर रानीश्वर तक पत्थर और ललमटिया से लेकर शिकारीपाड़ा तक कोयले का लंबा विशाल भंडार है.
सबकी खुदाई शुरू हो चुकी है. राजमहल की पहाड़ियां खत्म हो गयी. कोयला की खदानें भी खुल चुकी है. इसी तरह उत्खनन होते रहे तो यहां के आदिवासी-मूलवासी बचेंगे नहीं. उन्होंने कहा कि संतालपरगना जितने पत्थर खदान हैं, उसकी लीज रद्द होनी चाहिए और लीज को सीधे रैयतों को दे दी जानी चाहिए, ताकि उन्हें इसका पूरा लाभ मिल सके. श्री मरांडी ने कहा कि संतालपरगना के दुमका-पाकुड़ जिले के कई इलाकों में रैयतों की जमीन पर ही खदान खुले हैं, लेकिन उनकी स्थिति और बदतर हुई है.