13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड का एक ऐसा गांव जहां कोई अपनी बेटी नहीं चाहता ब्याहना, जानें कारण

दुमका जिला का एक गांव है लकड़जाेरिया, जहां कोई अपनी बेटी ब्याहना नहीं चाहता है. इस गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. पानी की समस्या आज भी विद्यमान है. जलसंकट से ग्रामीण जूझ रहे हैं. सड़क की स्थिति भी काफी दयनीय है.

Jharkhand News: दुमका जिले के जामा प्रखंड का एक गांव है लकड़जोरिया. इस गांव की उपेक्षा और बदहाली का आलम यह है कि लड़के कुंवारे रह जा रहे हैं. गांव में कोई अपनी बेटी ब्याहना नहीं चाहता. गांव की चारो ओर अच्छी सड़क तो है, पर गांव में प्रवेश करने के लायक सड़क नहीं है. न कोई कार ढंग से आ सकती है. न ही इमरजेंसी पड़ने पर एंबुलेंस, मोटरसाइकिल भी चलाना यहां आसान नहीं है.

इस गांव की सुध लेने की फुर्सत नहीं है जनप्रतिनिधियों के पास

आदिवासी बाहुल्य लकड़जोरिया गांव में चार टोले हैं. इनमें लगभग 200 परिवार बसा हुआ है. आबादी 1200 से अधिक की है. इस क्षेत्र से वर्तमान में सीता सोरेन विधायक हैं और यह उनका तीसरा टर्म है. इसके बावजूद गांव की बदहाली से लोगों में जबरदस्त आक्रोश है. वर्तमान में दुमका लोकसभा के सांसद सुनील सोरेन का भी यही गृह क्षेत्र है. वे खुद भी जामा प्रखंड के ही रहने वाले हैं. इतना ही नहीं इस क्षेत्र की जनता ने जब बदलाव किया था, तब उन्हें ही अपना विधायक चुना था, लेकिन किसी ने इस लकड़जोरिया गांव की समस्या पर ध्यान नहीं दिया.

पानी टंकी नहीं लगने पर उठे सवाल

इस लकड़जोरिया गांव के प्रति सरकारी अनदेखी या लापरवाही की हद यह है कि दो वर्ष पूर्व यहां बोरिंग कर पानी टंकी लगाने का काम शुरू हुआ. टंकी लगाने के लिए स्ट्रकचर भी लगाया गया. लेकिन आज तक इस पर पानी की टंकी नहीं सेट की गयी. सवाल उठ रहे है कि आखिरकार इतनी बड़ी लापरवाही के प्रति किसी का ध्यान से क्यों नहीं गया. संवेदक पानी टंकी लगाने का पैसा ढकार गया या अधिकारियों ने ही स्ट्रक्चरनुमा फ्रेम लगाने के बाद पानी टंकी नहीं लगवाया, माजरा जो भी हो, जलसंकट से जूझ रहे ग्रामीणों के साथ यह भद्दा मजाक ही है. गांव में पानी की भीषण समस्या है. चार टोलों में जो चापाकल है. उससे काफी कम पानी निकलता है. लोगों को मशक्कत करनी पड़ती है.

Also Read: Jharkhand News: संताल परगना में बनेगा हाथियों का नया गलियारा

एप्रोच पथ के बिना बेकार साबित हो रही पुलिया

लकड़जोरिया गांव पहुंचने का जो रास्ता है. वह पगडंडी नुमा है. कहीं दो फीट तो कहीं तीन फीट की कच्ची सड़क पगडंडी सी है. उसमें भी गड्ढे हैं. कहीं लोगों ने बड़े गड्ढे भरने के लिए पत्थर डाल रखे है. गांव में दूसरे वाहन की बात छोड़िए ट्रैक्टर तक नहीं आ पाता. समस्या उस वक्त होती है जब कोई बीमार पड़ता है और सड़क नहीं रहने से एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच पाता. जो बीमार होते है. उसे खटिया पर टांग कर ले जाना पड़ता है. सड़क गांव के नक्शे पर जरूर है. पर हकीकत में नहीं. सड़क बनाने से पहले गांव में कुछ पुलिया भी बना दिये गये. पर उसकी आज कोई उपयोगिता नहीं. कहीं नाली भी नहीं बनी, लिहाजा गांव के अंदर के रास्ते पर ही दूषित पानी बहता रहता है.

इस गांव में नहीं दिखता कहीं प्रधानमंत्री आवास

इस लकड़जोरिया गांव में प्रधानमंत्री आवास जैसी योजना कहीं नहीं दिखती. लोग मिटटी व फूस-खपड़ैल की छावनी वाली झोपड़ियों में रह रहे हैं. एक-दो पक्के मकान जिनके हैं. वे या तो नौकरी में रहें या किसी अच्छी जगह पर काम कर रहे हैं. गांव के जरूरतमंदों को प्रधानमंत्री आवास का लाभ नहीं मिला. लोगों ने बताया कि सरकारी योजनाओं के लिए उन्होंने काफी प्रयास किया लेकिन मिला नहीं. प्रधानमंत्री आवास हो या अन्य कोई सरकारी आवास योजना के लाभ से वे वंचित रहे हैं. गांव का जो बंडी टोला है. उसमें बिजली के पोल तार लगा दिये गये लेकिन आज तक घरों तक कनेक्शन नहीं दिया गया. ऐसे में शाम ढलते ही पूरा टोला अंधेरे में तब्दील हो जाया करता है. दूसरे टोले में बिजली है. लेकिन वे उसे केवल देखते है. बिजली का लाभ नहीं ले पाते.

कहते हैं ग्रामीण

ग्राम प्रधान रकीसल बेसरा ने कहा कि इस गांव में चार टोला है. गांव में बुनियादी सुविधाओं को अभाव है, पर कोई देखनेवाला नहीं है. सांसद-विधायक चुनाव के दौरान आते हैं. कहकर जाते हैं, लेकिन कभी समस्या दूर नहीं होती. गुड़ित बाबूजी मुर्मू कहते हैं कि सड़क ही नहीं बनी है. कोई आदमी बेटी का ब्याह इस गांव में नहीं करना चाहता है. शादी के लायक उम्र हो जाने के बाद भी लड़के कुंवारे रह जाते हैं. शादी होगी, तो बारात भी गांव पैदल आना होगा.

Also Read: नियोजन के लिए धनबाद में जमाडा कर्मी के आश्रित 162 दिनों से दे रहे धरना, सड़क किनारे बना रहे खाना

बुनियादी समस्याएं आज भी बरकरार

ग्रामीण अरविंद ने कहा कि गांव में सड़क की तो ऐसी स्थिति है कि ट्रैक्टर तक नहीं आ सकता. मोटरसाइकिल भी चलाना मुश्किल है. एंबुलेंस भी नहीं आ पाती, लिहाजा मरीज के लिए जान पर बन आती है. वहीं, छोटू बेसरा ने कहा कि दो साल पहले जलमीनार लगाने के लिए दो जगहों पर फ्रेम स्ट्रक्चर खड़ा किया गया, लेकिन पानी की टंकी ही नहीं लगायी गयी. न तो बाद में संवेदक आया और न ही देखने के लिए विभाग के अधिकारी. ग्रामीण रफाएल टुडू का भी मानना है कि प्रधान टोला और बंडी टोला में बिजली के नाम पर पोल लगाया गया है. तार भी बिछाया गया है. ट्रांसफर्मर भी लगा दिया गया है. विभाग ने अब तक कनेक्शन ही नहीं दिया है, तो कैसे बिजली का लोग उपयोग करेंगे.


रिपोर्ट : आनंद जायसवाल, दुमका.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें