Azadi Ka Amrit Mahotsav: स्वतंत्रता आंदोलन में संताल परगना के जो शख्स काफी चर्चित रहे. उनमें एक थे प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका. दुमका में जन्में और पले-बढ़े प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका की मां का नाम तख्ती देवी और पिता का नाम रामरिखदास हिम्मतसिंहका था. प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका ने अंग्रेजों हुकूमत की तख्त उलटने के लिए लंबा संघर्ष किया. गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से दो बार बतौर सांसद निर्वाचित प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका का जन्म दुमका में 16 अगस्त, 1889 को हुआ था. पिता रामरिखदास हिम्मतसिंहका राजस्थान के छोटे से गांव सिंहाणा खेतड़ी से घर द्वार छोड़ रोजगार की तलाश में निकले और कोलकाता पहुंच गये.
प्रभुदयाल के पिता रामरिखदास 1854-55 में पैदल की दुमका की ओर चल पड़े
संताल विद्रोह अपने चरम पर था. सिपाही विद्रोह का बिगूल बज चुका था. अंग्रेजों के खिलाफ सिपाही विद्रोह की चिंगारी सुलग रही थी. कोलकाता औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित हो रहा था, लेकिन यहां भी रोजगार नहीं मिला, तो रामरिखदास जी घूम-फिरकर 1854-55 के आसपास पैदल ही दुमका की ओर चल पड़े. यात्रा के पांचवें दिन वे दुमका जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर नोनीहाट में रहनेवाले एक रिश्तेदार के घर पहुंचे. नोनीहाट का इलाका उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने यहां अपना छोटा कारोबार शुरू किया, लेकिन यहां उनका व्यवसाय नहीं जमा. उस समय लोग नोनीहाट से दुमका तक बैलगाड़ी, टमटम से या पैदल ही आना-जाना करते थे.
सामाजिक कार्यों में काफी रुचि लेते थे रामरिखदास
1855 में संताल परगना जिले का निर्माण हो चुका था और दुमका को जिला मुख्यालय बनाया गया था. शहर की आबादी बढ़ रही थी. दुमका व्यवसायिक शहर के रूप में विकसित होने लगा था. 1870 ई के आसपास रामरिखदास हिम्मतसिंहका अपने परिवार के साथ दुमका चले आये और किराने की दुकान खोल ली. रामरिखदास जी अपने व्यवसाय के साथ ही सामाजिक कार्यों में बढ़-चढकर हिस्सा लेने लगे. इस कारण समाज में वे काफी लोकप्रिय थे.
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छठी कक्षा में फेल हुए थे प्रभु दयाल
दुमका में जिला स्कूल की स्थापना हो चुकी थी. यहां एन्ट्रेंन्स तक की शिक्षा दी जाती थी. प्रभुदयाल की शिक्षा के प्रति गहरी रूचि देख पिता रामरिखदास हिम्मतसिंहका उत्साहित हुए और इस स्कूल में भेजना शुरू कर दिया. प्राथमिक स्तर की शिक्षा पूरी करने बाद नौ साल की उम्र में प्रभुदयाल का जिला स्कूल में नामांकन हुआ. खेलकूद में अभिरूचि बढ़ने के कारण प्रभुदयाल छठी कक्षा की परीक्षा में फेल हो गये. पिता प्रभुदयाल के इस परिणाम से काफी मायूस हो गये और उन्हें व्यवसाय से जुड़ने पर जोर देने लगे. लेकिन, शिक्षक के आग्रह पर उन्होंने प्रभुदयाल की पढ़ाई जारी रखने का निर्णय लिया.
कोलकाता में कई स्वतंत्रता सेनानियों से मिले
शिक्षक की प्रेरणा से प्रभावित प्रभुदयाल 1907 में ऐन्ट्रेंस की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उर्तीण हुए. इससे बाद प्रभुदयाल का भागलपुर में तेजनारायण बनैली काॅलेज में उनका नामांकन कराया गया. 1909 में स्नातक की पढ़ाई के लिए वे कोलकाता आ गये. 1911 में स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने प्रेसिडेंसी काॅलेज कोलकाता से एमए की परीक्षा पास की. 1914 में वकालत की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उर्तीण हुए. कोलकाता अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति का क्रीड़ा स्थल बन गया था. पढ़ाई के दौरान ही कोलकाता में अंग्रेजों के खिलाफ जंग की तैयारी में जुटे देश भक्त सेनानियों की श्रेणी में शामिल लाला लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय, बिपिन चंद्र पाल, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, चितरंजन दास, अरबिन्द घोष, प्रफ्फूल चन्द्र चैधरी, घनश्याम दास बिड़ला, ज्वाला प्रसाद कानोड़िया, माध्यव शुक्ल, अम्बिका प्रसाद वाजपेयी आदि से प्रेेरित होकर प्रभुदयाल उनके संपर्क में आ गये.
रोडम आर्म्स कांड में कोलकाता से जिला बदर हुए प्रभदयाल
शुरुआती दौर में प्रभुदयाल ने कोलकता में गिरधारी लाल धनराज की गद्दी में रहकर दिन गुजारी. अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करनेवाली युगांतर पार्टी और अनुशीलन समिति में शामिल होेकर देश की आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे. मारवाड़ी और बंगाली समाज के युवकों को एकजुट करने के अभियान में जुट गये. इस बीच कोलकाता में मानिकतत्ला बम कांड के छह वर्ष बाद 1914 में रोडा आर्म्स कांड हुआ था. जिसमें प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका बंदी बना लिये गये. प्रभुदयाल को कोलकाता से जिला बदर कर दिये गये.
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क्या है रोडा एंड कंपनी का मामला
कोलकाता की आरबी रोडा एंड कंपनी नाम की एक फर्म थी, जो विदेशों से अग्नेयास्त्रों का आयात करती थी. जंगे आजादी के दिवाने क्रांतिकारियों ने 1914 के 26 अगस्त को जर्मनी से पार्सल से 50 माउजर, पिस्तोल और करीब 4600 कारतूस मंगाये थे. अग्नेयास्त्र 10 पेटियों में भेजा गया था. क्रांतिकारी विपिन गांगुली की गुप्त समिति को इसकी सूचना थी. रोडा कंपनी की श्रीशचंद्र नामक एक कर्मचारी भी इस समिति में शामिल था. उसे अग्नेयास्त्रों को छुड़ाने के लिए भेजा गया. विदेशों से पहुंचे अग्नेयास्त्रों को कस्टम हाउस से छुड़कार कई बैलगाड़ियों में लादकर रोडा कंपनी के गोदाम में लाया गया. रोडा कंपनी के कर्मचारी श्रीशचंद ने जर्मनी से आये अग्नेयास्त्रों को एक बैलगाड़ी में और इंगलैंड से आये अग्नेयास्त्रों को करीब 10 बैलगाड़ियों में लादकर लाया. जर्मनी से आये पिस्तौल व कारतूस से लदे बैलगाड़ी को विपिन गांगुली के साथी हरिहर दत्ता पीछे-पीछे चला रहे थे. उस बैलगाड़ी को छोड़कर शेष अन्य बैलगाड़ियों को रोडा कंपनी के गोदाम में ले जाया गया. वहीं, हरिहर दत्त ने जर्मनी से आये आग्नेयास्त्रों को मलंगा लेन स्थित क्रांतिकारियों के मकान में पहुंचा दिया.
जर्मनी से आया हथियार कम मिला
आग्नेयास्त्रों को पहुंचा कर रोडा का कर्मचारी श्रीशचन्द्र घर चला गया. दो-तीन दिन के बाद जब सामान का मिलान किया गया, तो जर्मनी से आया हथियार कम मिला. इसके बाद पुलिस को सूचना दी गयी. मलंगा लेन से 50 पिस्तौल और कुछ कारतूस उसी दिन बांट दिये गये. शेष कारतूसों को संभाल कर रखने का भार प्रभुदयाल को सौंपा गया. प्रभुदयाल मित्रा लेन में एक छात्रावास में रहते थे, जहां अग्नेयास्त्रों को रखना संभव नहीं था. इसलिए उन्होंने ओंकारमल सर्राफ, हनुमान प्रसाद पोद्धार से संपर्क किया, लेकिन दोनों के पास विदेशों से आये अग्नेयास्त्रों को रखने की व्यवस्था नहीं थी.
फूलचंद चौधरी ने लिए सबके नाम
प्रभुदयाल छद्म बंगाली बनकर कन्नुलाल लेन में एक गोदाम किराये पर लिया, जहां सभी कारतूसों को सुरक्षित रखा गया. इधर, गोदाम से अग्नेयास्त्रों के गायब होने के सूचना मिलने से पुलिस में हड़कंप मच गयी और मामले की सघन छानबीन में जुट गयी. 1916 में सीआईडी के एक बंगाली इंस्पेक्टर ने इस सिलसिले में फूलचंद चौधरी से भेंट की. जिसने पुलिस के सामने से सभी राज उगल दिये. युवक के बयान में प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका, ज्वाला प्रसाद कानोड़िया, घनश्यामदास बिड़ला, ओंकारमल सर्राफ और हनुमान प्रसाद पोद्दार का नाम लिया गया. हालांकि, सीआईडी के इंस्पेक्टर ने साक्ष्य को नष्ट करने के लिए 10 हजार रुपये रिश्वत की मांग की, लेकिन क्रांतिकारी युवक रिश्वत देने पर सहमत नहीं हुए. इसकी जानकारी कोलकाता के पुलिस कमिश्नर मिस्टर टेगर्ट तक पहुंची, तो उन्होंने इंस्पेक्टर को मुअत्तल कर दिया और कागजातों की जांच नये सिरे से शुरू कर दी.
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प्रभुदयाल के छोटे भाई को किया गिरफ्तार
युवक के बयान के आधार पर अग्नेयास्त्रों का पता लगाने के लिए अंग्रेज पुलिस ने कोलकाता व दुमका में भी छापामारी की. छापामारी और सघन अनुसंधान के दौरान मिले साक्ष्य के आधार पर इन युवकों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. दुमका में छापेमारी की सूचना मिलने पर प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका ने आग्नेयास्त्रों के साथ अन्य सभी कागजात जला दिये, लेकिन उनके साथ छात्रावास में रहनेवाली उनके छोटे भाई के नाम एक पोस्टकार्ड रह गया. पुलिस ने छोटे भाई रामकुमार को भी पूछताछ के लिए लार्ड सिन्हा रोड स्थित सीआईडी कार्यालय ले गयी. पूछताछ के बाद उनके छोटे भाई को छोड़ दिया गया.
दोबारा गिरफ्तार हुए प्रभुदयाल
इस बीच प्रभुदयाल और कन्हैया लाल चितलांगिया गिरफ्तार कर लिये गये थे. पूछताछ के दौरान प्रभुदयाल द्वारा अतुल नाग के संबंध में अनभिज्ञता प्रकट किये जाने पर 5-6 दिनों के बाद उन्हें छोड़ दिया गया. सादे लिबास में पुलिस गोदाम पर निगरानी कर रही थी. अतुल नाग अग्नेयास्त्रों की पेटी लेने जब गोदाम पहुंचा तो पुलिस ने उसे दबोच लिया. अतुल नाग के पकड़े जाने के बाद सारा भेद खुल गया और प्रभुदयाल दोबारा गिरफ्तार कर लिये गये. इसी क्रम में मारवाड़ी सहायक समिति के ओंकारमल, ज्वाला प्रसाद, हनुमान पोद्धार भी पकड़े गये. सभी को बंगाल छोड़ने और नजरबंदी की सजा सुनायी गयी. अंग्रेज पुलिस के हुकम के आलोक में प्रभुदयाल को कोलकाता से जिला बदर कर दिया गया और दुमका में अपने घर में नजर बंद रहने तथा हर दिन थाने में हाजरी लगाने के आदेश दिये गये.
रोडा आर्म्स कांड से प्रभुदयाल हुए बरी
नजर बंदी के दौरान भी प्रभुदयाल दुमका में भी अंग्रेजोंं के खिलाफ रणनीति बनाये में जुटे रहे. बाद में पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में प्रभुदयाल रोडा आर्म्स कांड से बरी कर दिये गये. 1917 में पटना हाई कोर्ट से वकालत की पेशा शुरू करने की अनुमति मिलने के बाद वे दुमका में प्रैक्टिस करने लगे. वे दुमका से पुनः कोलकाता चले गये और वकालत शुरू की. प्रभुदयाल 1921 में एटोरनी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की और 1924 में पश्चिम बंगाल के साॅलीसिटर बने.
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आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभायी
आजादी की लड़ाई परवान चढ़ रहा था. इस दौरान उनका राष्ट्रीय नेताओं से सम्पर्क बढ़ने लगा. महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार बल्लभ भाई पटेल, मदन मोहन मालवीय सहित देश के कई प्रमुख बड़े नेताओं के संपर्क में आये और आजादी की लड़ाई में सक्रिय भागीदारी निभाने लगे. प्रभुदयाल ने गरीबों को जागरूक करने और उनकी सहायता के लिए संताल परगना, कोलकाता सहित पश्चिम बंगाल और असम में कई सामाजिक संगठन और व्यावसायिक संस्थान स्थापित किये और गरीबों की सेवा में तन-मन-धन से जुटे रहे.
नमक सत्याग्रह में शिरकत की थी
1917 में वे दुमका नगर पालिका के सदस्य भी निर्वाचित हुए और दुमका में द्रुत यातायात परिवहन सेवा शुरू करने के साथ कन्या पाठशाला, हिन्दी पुस्तकालय, जरमुंडी में चरखा केंद्र, हिन्दु अबला आश्रम आदि सामाजिक संस्थानों की शुरुआत की. प्रभुदयाल जी विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे. इस कारण उन्हें 12 साथियों के साथ अपनी जाति से बहिष्कृत करने का फरमान सुनाया गया था. कोलकाता में उन्होंने नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
भारतीय संविधान सभा के सदस्य मनोनीत हुए प्रभुदयाल
1937 में बंगाल विधानसभा के चुनाव में पहली बार निर्वाचित हुए, लेकिन 1938 में उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. इस बीच राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो-करो या मरो के आह्वान पर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे. आजादी के पूर्व 1946 में वे असम विधानसभा के चुनाव में विजयी हुए. आजादी के बाद 1948 में बंगाल विधानसभा के चुनाव में दोबारा निर्वाचित हुए और देवी प्रसाद खेतान के निधन के बाद भारतीय संविधान सभा के सदस्य मनोनीत किये गये. 1952 में उन्होंने कोलकाता नगर निगम में एल्डरमैन के रूप में चुना गया. 1956 में वे राज्यसभा के सदस्य चुने गये. 1962 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा. इस चुनाव में उन्होंने देश के प्रमुख उद्योगपति मोहन सिंह ओबराय को भारी मतों से शिकस्त दी. इसके बाद 1967 में भी वे गोड्डा से लगातार दूसरी बार निर्वाचित हुए. 102 वर्ष के लंबे संघर्ष जीवन यापन के बाद उनका एक जून, 1991 में उनका देहावसान हो गया.
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रिपोर्ट : आनंद जायसवाल, दुमका.