Azadi Ka Amrit Mahotsav: पंडित रूद्रनारायण झा तत्कालीन संताल परगना जिले के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थी. जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में काफी बढ़-चढ़कर भाग लिया था और दो बार जेल भी गये थे. इस दौरान उन्होंने अंग्रेजों की यातनाएं भी सही थी.
कर्ज लेकर शिक्षा ग्रहण किया
रूद्रनारायण झा कर जन्म 1914 में गोड्डा से पश्चिम लगभग 4 किमी दूर रेड़ी गांव में हुआ था. बचपन में ही माता-पिता की छत्रछाया से वे वंचित हो गये. अभाव व तिरस्कार के घेरे में उनका लालन-पालन हुआ. शिक्षा के लिए गांव के निकट के प्राथमिक विद्यालय वे जाने लगे. दादी ने इधर-उधर से कर्ज लेकर उन्हें किसी तरह कुछ साल पढ़ाया. अक्षर ज्ञान होने के बाद वे परिस्थितिवश आगे स्कूल नहीं जा सके.
महाजनों के चंगुल से छुड़ाए अपनी जमीन
इधर, किसी न किसी वजह से सारी जमीन दूसरों के कब्जे में जा चुकी थी. संघर्ष एवं कड़ी मेहनत से महाजनों से अपनी जमीन उन्होंने मुक्त तो करा लिया, पर प्रतिकुल परिस्थितियों ने बचपन में ही उनके अंदर क्रांति के बीज को प्रस्फुटित कर दिया. जमींदारों, तहसीलदारों, प्रधानों आदि के दमनकारी व्यवहार से भी उनका मन सुलग रहा था. इस बीच किशोरावस्था में ही उनकी शादी भी करा दी गयी. लेकिन, आंदोलन ने उनके अंदर जो नेतृत्व का गुण विकसित किया उससे उनकी अलग पहचान बनी.
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मिडिल स्कूल की करायी स्थापना
खुद बहुत अधिक पढ़-लिख न पाने और पढ़ाई अधूरी रह जाने का उन्हें मलाल था. लिहाजा उन्होंने सामाजिक सहयोग से मिडिल स्कूल की स्थापना करायी. इस क्रम में स्वतंत्रता आंदोलन के सक्रिय सेनानियों के वे संपर्क में आए, तो अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ ग्रामवासियों में जागरूकता लाने का दायित्व इन्हें सौंपा गया. वे कांग्रेस से भी जुड़े. गोड्डा के जानेमाने स्वतंत्रता सेनानी बुद्धिनाथ झा कैरव और सागर मोहन पाठक के सानिध्य में आएं. स्वतंत्रता आंदोलन के इस क्षेत्र के रणनीतिकार के तौर पर वे उन्हें शामिल करने लगे.
ब्रिटिश हुकूमत ने किया गिरफ्तार
1942 की क्रांति की घड़ी आ गयी. यह क्रांति मंजिल प्राप्ति की अंतिम सीढ़ी साबित हुई. इसी क्रम में एक दिन जब रूद्रनारायण झा एक क्रांतिकारी जत्थे का नेतृत्व करते हुए गोड्डा कचहरी की ओर बढ़ रहे थे. तब ब्रिटिश हुकूमत ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया. जेल में बंद कर दिया गया. मुकदमा चला और तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनायी गयी. इस क्रम में उन्हें गोड्डा के बाद दुमका फिर भागलपुर जेल में रखा गया. जेल से भी वे दासता की बेड़ी से भारत मां की मुक्ति की बात सोचा करते थे. वे कुछ साथियों के साथ जेल के रक्षकों से बचकर वहां से भागने में सफल रहे. बाहर आकर उन्होंने फिर से लोगों को संगठित करना प्रारंभ किया. लेकिन फिर वे पुलिस की गिरफ्त में आ गये.
विनाेबा भावे ने की तारीफ
दिनकर की हुंकार की प्राय: सभी कविताएं कंठस्त की. बाहर आने के बाद वे इन्हीं क्रांति गीतों से ओज भरने का भी काम करते रहे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्होंने खुद को सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में समर्पित कर दिया. गांधीवादी पंडित रूद्र नारायण झा ने विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी महत्वपूर्ण कार्य किया था. यही वजह थी कि संताल परगना में उनके योगदान की विनोबा भावे हमेशा विभिन्न मंच से तारीफ भी किया करते थे. शिक्षा के प्रसार को लेकर सदैव आगे आने वाले रूदो बाबू ने गांव में एक पुस्तकालय भी स्थापित किया. उनके इस नव पुस्तकालय में जेपी यानी जयप्रकाश नारायण भी पहुंचे थे.समाज में नैतिक मूल्यों, श्रम की महत्ता तथा दृढ़ इच्छाशक्ति को सदैव अहमियत देने वाले रूदो बाबू ने 3 अगस्त, 1997 को अंतिम सांस ली.
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रिपोर्ट : आनंद जायसवाल, दुमका.