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मिथिलाचंल के 50 हजार भक्तों ने फौजदारीनाथ की पूजा

मिथिलांचल से पहुंचे भक्तों में मंदिर प्रांगण में कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान कराये. भक्तों ने बच्चों का मुंडन संस्कार भी कराया.

तिलकहरुओं से पटी बासुकिनाथ की नगरी, लोक गीतों की धूम

प्रतिनिधि, बासुकिनाथ

पंचमी तिथि पर बाबा फौजदारीनाथ दरबार में रविवार को भक्तों की भीड़ लगी रही. मिथिलांचल से पहुंचे शिवभक्तों ने संस्कार भवन गेट से मंदिर प्रांगण में प्रवेश कर करीब 50 हजार भक्तों ने पूजा-अर्चना की. कतारबद्ध श्रद्धालुओं को मंदिर प्रांगण में प्रवेश कराया गया. मिथिलांचल से पहुंचे भक्तों में मंदिर प्रांगण में कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान कराये. भक्तों ने बच्चों का मुंडन संस्कार भी कराया. मंदिर गर्भगृह का पट चार बजे खुला, सरकारी पूजा के बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर गर्भगृह का गेट खोल दिया गया. महिला श्रद्धालुओं की भीड़ थी. पुलिस व्यवस्था के तहत श्रद्धालुओं ने गर्भगृह में जल डालकर पूजा की. मंदिर पुजारी ने भोलेनाथ का भव्य शृंगार पूजा की. बिहार सहित विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ यहां देखी गयी. मिथिलांचल से पहुंचे तिलकहरुओं को सुगमतापूर्वक गर्भगृह में पूजा कराने के लिए मंदिर प्रभारी सह बीडीओ कुंदन भगत, अंचलाधिकारी संजय कुमार एवं पुलिस निरीक्षक श्यामानंद मंडल मंदिर कार्यालय से मंदिर प्रांगण गतिविधियों पर नजर बनाये रखा. मिथिलाचंल के तिलकहरुओं से बासुकिनाथ की नगरी पट गयी है. हर गली में मिथिलावासियों की भीड़ जुटी हुई है, ठंड के इस मौसम में वे बासुकिनाथ बस स्टैंड, सड़क किनारे एवं मंदिर के आस पास डेरा जमाये हुए हैं. विद्यापति के गीत गाकर भोलेनाथ को प्रसन्न करने में जुटे हैं.

बाबा के त्रिशूल पर तिलक लगाकर आज मनेगा तिलकोत्सव

बाबा के त्रिशूल पर तिलक लगाकर तिलकोत्सव की परंपरा निभाई जायेगी. तिलक चढ़ाने के लिए बिहार के मिथिलांचल दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, मुज्जफरपुर, वैशाली, समस्तीपुर समेत देश के अन्य भागों से हजारों की संख्या में फौजदारी दरबार पहुंच रहे हैं. तिलकहरुओं की कई टोलियां ढोलक, हारमोनियम, झाम, झांझ, करताल की धुन पर महाकवि विद्यापति के शिवजी पर आधारित गीतों एवं भजनों की प्रस्तुति कर भोले की भक्ति में लीन है. तिलक के रस्म को अदा करने के लिए बाबा के ससुराल यानी मिथिलांचल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अलग तरह का कांवर लेकर बाबाधाम पहुंचे हैं. शिव विवाह में शामिल होने का संकल्प लेकर वापस लौटते हैं. पंडित सुधाकर झा ने बताया कि शास्त्रीय मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन ही राजा दक्ष ने भगवान भोलेनाथ का तिलक चढ़ाया था. तब से परंपरा निभायी जायेगी.

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