रांची : सोशल ऑडिट में चोरी पकड़े जाने के बाद सरकारी राशन दुकानदार ने आदिम जनजाति परिवारों को 840 किलोग्राम की दर से चावल पहुंचा दिया. दुकानदार ने दो साल से चावल नहीं दिया था. एक साथ इतना चावल मिलने के बाद उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है. चावल मिलने के बाद अब इसे रखने की समस्या पैदा हो गयी है, क्योंकि गरीब आदिम जनजाति परिवारों की टूटी झोपड़ी में चावल रखने की जगह नहीं है. मामला दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड के मालपहाड़िया परिवारों का है.
बताते चलें कि राज्य के वित्त सह खाद्य आपूर्ति मंत्री रामेश्वर उरांव ने आदिम जनजाति परिवारों को लिए चलायी जा रही ‘डाकिया योजना’का सोशल ऑडिट करने का आदेश दिया था. मंत्री के आदेश के आलोक में जारी सोशल ऑडिट के दौरान दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड में दो आदिम जनजाति परिवारों (हरि देहरी और मोहन मांझी) को जनवितरण प्रणाली के दुकानदार द्वारा दो साल से चावल नहीं देने का मामला पकड़ में आया.
इस प्रखंड की शहरपुर पंचायत के ग्राम सालबोना पहाड़ में ऑडिट के दौरान इसकी जानकारी मिली कि गांव में मालपहाड़िया आदिम जनजाति के 70 परिवार रहते हैं. इनमें से दो परिवारों के राशन कार्ड गुम हो गये थे. इनके पास कार्ड का ब्योरा उपलब्ध था, लेकिन जनवितरण प्रणाली का दुकानदार दो साल से चावल नहीं दे रहा था. ऑडिट टीम ने दुकानदार से पूछताछ की.
दुकानदार ने पहले तो तरह-तरह के बहाने बनाये. बाद में 35 किलो प्रति माह की दर से 840-840 किलो चावल इन दोनों परिवारों के घर तक पहुंचा दिया.
दुमका जिले के सभी 10 प्रखंडों में जारी सोशल ऑडिट के दौरान इस बात की जानकारी मिली है कि 60 प्रतिशत से अधिक आदिम जनजाति परिवारों को डाकिया योजना के तहत घर तक चावल पहुंचा कर नहीं दिया जाता है. इस जिले में सोशल ऑडिट के दौरान 8,438 आदिम जनजाति परिवारों को शामिल करना है.
अब तक 10 प्रखंडों के 6000 आदिम जनजाति परिवारों को ऑडिट के दौरान शामिल किया जा चुका है. 6000 परिवारों में से सिर्फ 2000 परिवारों को ही डाकिया योजना के तहत घर पहुंचा कर प्रति माह 35 किलो की दर से चावल दिया जाता है. शेष परिवारों को राशन लाने के लिए दुकान तक जाना पड़ता है.
भूख से आदिम जनजाति की मौत की खबर छपने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने मुख्यमंत्री खाद्य सुरक्षा योजना की शुरुआत की थी. इसके तहत आदिम जनजाति परिवारों को प्रति माह 35 किलो अनाज मुफ्त में देने का फैसला किया गया था. राज्य में खाद्य सुरक्षा योजना लागू होने के बाद सभी आदिम जनजातियों को इसमें शामिल किया गया. आदिम जनजाति के लोगों के लिए दुकान जाकर चावल लेना कठिन और खर्चीला है. इसे देखते हुए ‘डाकिया योजना’की शुरुआत की गयी. इसके तहत राज्य सरकार ने आदिम जनजातियों को घर तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था की है.
Posted by : Sameer Oraon