पीसी दी, दुमका में भाकपा माओवादी संगठन में एक ऐसा नाम था, जिससे पूरा संताल परगना का इलाका थर्रा उठता था. पीसी दी पांच लाख की इनामी थी. पुलिस उसे नहीं पकड़ सकी थी. इलाके की सबसे बड़ी नक्सली वारदात में वह शामिल रही थी. पुलिस उसे दबोच पाने में पस्त रही थी, लेकिन भटकाव के रास्ते पर चल रही पीसी दी को जिसने मुख्य धारा में लाने का काम किया. झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति से प्रेरित कर उसे सरेंडर कराया, वह थी उसकी बेटी दिव्या. दिव्या के कहने पर ही पीसी दी सरेंडर को राजी हुई, उसके साथ पांच अन्य नक्सलियों ने हथियार डाले. पीसी दी आज हजारीबाग जेल में है. दिव्या को कसक थी जिस इलाके की वह रहनेवाली है, उस इलाके के लोग मुख्यधारा से भटके हुए हैं. स्कूल तक बच्चे नहीं पहुंच पा रहे. वह मानती है कि शिक्षा की ज्योति बेहद जरूरी है. उसने ठान रखा है कि उसे शिक्षिका बनना है. वंचित वर्ग के बच्चों का स्कूल तक लाना है. तमाम बाधाओं के बीच वह अपनी शिक्षा जारी रखे हुए है. आज यूजी सेमेस्टर-चार की छात्रा है. शहर में रहकर वह खुद तो पढ़ रही है, स्लम बस्तियों में रहनेवाले और स्कूल न जानेवाले बच्चों को उसने संध्याकालीन शिक्षा दे रही है. इसमें मदद को आगे आये, कृषि उत्पादन बाजार समिति के सचिव सह लाइब्रेरीमैन के रूप में पहचान बना चुके संजय कच्छप. संजय कच्छप ने उसे संसाधन-सहयोग दिया, ताकि वे गरीब बच्चों को पढ़ा सके. अपनी पढ़ाई भी जारी रख सके. दिव्या दो दर्जन बच्चों को शाम के वक्त हटिया परिसर में पढ़ाती हैं.
दिव्या के मुताबिक वह दुमका के काठीकुंड प्रखंड के महुआगढ़ी गांव की रहनेवाली है. पिता रविंद्र देहरी और मां का नाम प्रिशिला देवी है. दिव्या छोटी थी, तब मां-बाप में अनबन हुई. 2008 के बाद जब दुमका में नक्सली गतिविधियां तेज हुई तो दिव्या की मां प्रिशिला नक्सली दस्ते में शामिल हो गयी और लोग उसे पीसी दी के नाम से जानने लगे. पुलिस उसकी गिरफ्तारी को लेकर लगातार दबिश भी बनाती रही. इधर, कल्याण विभाग के स्कूल में वह पढ़ती रही. ननिहाल कुंडापहाड़ी में भी बचपन बीता. कल्याण विभाग के नकटी स्थित स्कूल से मैट्रिक पास की. बढ़ती उम्र के साथ उसने शिक्षा का महत्व जाना व सरकार की नीतियों से अवगत हुईं तो उसने मां को समझना शुरू किया. बताया कि यह रास्ता गलत है. बेटी की बातों ने पीसी दी को बदलने को मजबूर किया. 2019 में प्रिशिला देवी उर्फ पीसी दी ने एके-47 जैसे हथियार के साथ पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. बहरहाल दिव्या शिक्षिका बनने के अपने सपने के साथ स्लम के उन बच्चों के बीच ज्ञान का प्रसार करने में जुटी है, जाे इधर-उधर घूमते रहते थे, पढ़ाई से दूर थे. आज नियमित रूप से वे स्कूल जाते हैं. वह कहती है कि वह शिक्षक बनी तो महुआगढ़ी व कुंडापहाड़ी जैसे दुर्गम व सुदुरवर्ती इलाके में ज्ञान का प्रसार करने व वंचित बच्चों को स्कूल तक लाने का काम करेंगी.