Dumka News: मयुराक्षी नदी के तट पर शुरू हुआ जनजातीय हिजला मेला महोत्सव

Dumka News: यदि आप लोक-संस्कृति और लोक गीत-संगीत को करीब से महसूस करना चाहते है, प्रकृति में विद्यमान शाश्वत संगीत और उसके लय की अनुभूति करना चाहते है, लोक मंगल समरसता में डूबना चाहते हैं, तो आपको एक बार जनजातीय हिजला मेला महोत्सव में जरूर शिरकत करना चाहिए.

By Mithilesh Jha | February 16, 2024 9:42 PM

Dumka News: यदि आप लोक-संस्कृति और लोक गीत-संगीत को करीब से महसूस करना चाहते हैं, प्रकृति में विद्यमान शाश्वत संगीत और उसकी लय की अनुभूति करना चाहते हैं, लोक मंगल समरसता में डूबना चाहते हैं, तो आपको एक बार जनजातीय हिजला मेला महोत्सव में जरूर शिरकत करना चाहिए.

ग्राम प्रधान ने किया मेले का शुभारंभ

इस वर्ष भी परंपरा को कायम रखते हुए शुक्रवार से एक सप्ताह तक चलनेवाले इस मेले का शुभारंभ ग्राम प्रधान सुनीलाल हांसदा ने किया. इस दौरान उपायुक्त आंजनेयुलु दोड्डे, पुलिस अधीक्षक पीतांबर सिंह खेरवार, जिला परिषद अध्यक्ष जॉएस बेसरा, उपाध्यक्ष सुधीर मंडल, अनुमंडल पदाधिकारी प्रांजल ढांडा, कौशल कुमार, डीटीओ जयप्रकाश करमाली सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे.

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दुमका में मयूराक्षी के तट पर मांझी थान में हुई पूजा-अर्चना

महोत्सव की शुरुआत से पूर्व हिजला मेला परिसर में स्थित मांझी थान में विधिवत पूजा अर्चना की गयी. मेले के उद्घाटन सत्र में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये गये. इसके साथ ही छऊ नृत्य और नटवा नृत्य भी पेश किए गए.

उद्घाटन समारोह में उपायुक्त ए दोड्डे ने कहा कि संताल परगना प्रमंडल में आयोजित होने वाले इस हिजला मेला का इंतजार लोग पूरे वर्ष करते हैं, जिसे देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा यह प्रयास किया गया है कि यह कैसे बेहतर दिखे. इस बड़े आयोजन से लोगों को अधिक से अधिक फायदा मिले, इसकी अच्छी तैयारी की गयी है.

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1890 में ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर आर कास्टेयर्स ने की थी मेले की शुरुआत

वर्ष 1890 में ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर आर कास्टेयर्स ने हिजला मेला की शुरुआत की थी. तब संताल परगना एक जिला हुआ करता था और दुमका उसका मुख्यालय था. दरअसल 1855 में हुए संताल हूल के बाद कास्टेयर्स ने संतालों से अपनी दूरी मिटाने तथा उनका विश्वास हासिल करने के मकसद से इस जनजातीय मेले की शुरुआत की थी.

134 साल से लग रहा है मेला


दुमका में शहर से चार किमी की दूरी पर मयुराक्षी नदी के तट व हिजला पहाड़ी के पास 134 साल पहले से सप्ताहव्यापी मेला लगता आया है. क्षेत्र का यह सबसे बड़ा मेला है. मेला पिछले कई सालों से महोत्सव का रूप भी ले चुका है.

सांस्कृतिक संकुल की तरह है हिजला मेला

यह मेला जनजातीय समाज के सांस्कृतिक संकुल की तरह है, जिसमें सिंगा-सकवा, मांदर व मदानभेरी जैसे परंपरागत वाद्ययंत्र की गूंज तो सुनने को मिलती ही है. झारखंडी लोक संस्कृति के अलावा अन्य प्रांतों के कलाकार भी अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने पहुंचे हैं.

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