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दुमका : मनरेगा में रुचि नहीं ले रहे मजदूर, 7.34 लाख निबंधित मजदूरों में से मात्र 75 हजार 868 ने ही पाया रोजगार

मनरेगा के प्रति उदासीन रवैया अपनाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. देवघर को छोड़ संताल परगना के किसी भी जिले में एक लाख मजदूरों ने काम नहीं किया है, जबकि सभी जिलों में निबंधित मजदूरों की संख्या चार से आठ लाख के बीच है.

By Prabhat Khabar News Desk | November 28, 2023 9:14 AM

दुमका : झारखंड से मजदूरों का पलायन इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि मनरेगा की योजनाओं का क्रियान्वयन भी समय पर नहीं हो पाता. इसकी वजह मॉनिटरिंग का अभाव भी है. राज्यभर में अब तक ली गयी योजनाओं में से कुल 6 लाख 77 हजार 340 योजनायें अधूरी ही पड़ी है, जबकि 60561 योजनाएं केवल ऐसी हैं, जिनपर पिछले तीन साल में फुटी कौड़ी तक खर्च नहीं हुई है. 120379 योजनाओं में दो साल से और 220542 योजनाओं में सालभर से एक रुपये खर्च नहीं किये गये. यानी इनमें इस अवधि के दौरान कोई काम नहीं हुआ. संताल परगना प्रमंडल की बात की जाए, तो 1 लाख 62 हजार 412 योजनाएं अपूर्ण है. इनमें से अधिकांश में लंबे समय से कोई काम नहीं हुआ है. सर्वाधिक 31229 योजनाएं देवघर जिले में लंबित हैं, जबकि दुमका में 27980, गोड्डा में 28970, जामताड़ा में 29063, पाकुड़ में 22889 व साहिबगंज में 22281 योजनायें अधूरी हैं. देवघर में 2876 योजनाओं में पिछले तीन साल में कोई खर्च नहीं हुआ. इन तीन सालों में ऐसी योजनाओं को भूला दिया गया. हालांकि साहिबगंज जैसे जिले में 4159 योजनाओं में तीन साल की अवधि में कोई खर्च नहीं किया गया. दुमका में 3982, गोड्डा में 2607, जामताड़ा में 2008, पाकुड़ में 2200 योजनाओं को पर तीन साल में कोई व्यय नहीं किया गया.


दुमका:7.34 लाख में से 75868 को ही रोजगार

उपराजधानी दुमका की बात करें तो मनरेगा मजदूरों की स्थिति यहां भी खराब है. यहां के 7.34 लाख निबंधित मजदूरों में से मात्र 75 हजार 868 ने ही रोजगार पाया. जबकि दुमका के कई प्रखंड काफी पिछड़े हैं. जनजातीय जनसंख्या दुमका जिले में अधिक है. फिर भी ये लोग मनरेगा के कामों में रूचि नहीं ले रहे हैं. धान कटनी के वक्त प्राय: इस जिले में देखा जाता है दुमका के मजदूर दूसरे राज्यों में काम करने जाते हैं. इनमें अधिकांश आदिवासी ही होते हैं.

गोड्डा : मनरेगा में काम नहीं करना चाहते हैं मजदूर

गोड्डा जिले में भी मनरेगा मजदूरों की स्थिति ठीक नहीं है. निबंधित मजदूरों की तुलना में 10 प्रतिशत लोगों ने भी काम नहीं किया है. इस जिले के आंकड़े को देखें तो 7 लाख 38 हजार 523 मजदूरों का निबंधन है, जबकि मात्र 73 हजार 856 लोगों ने रोजगार पाया है. 31 से 40 वर्ष की उम्र के 1,99,722 मजदूरों में मात्र 20399 मजदूरों ने ही काम किया.वहीं 80 वर्ष से अधिक के 4615 बुजुर्गों में से 29 ने मनरेगा में मजदूरी की है.

जामताड़ा: निबंधन 4.37 लाख, काम मात्र 93.14 हजार को

मनरेगा की स्थिति जामताड़ा में भी दयनीय ही है. यहां के लोग भी मजदूरी करने की इच्छा नहीं जताते हैं. क्योंकि जामताड़ा जिले में 4 लाख 37 हजार 43 मजदूरों ने निबंधन तो कराया है लेकिन काम 93 हजार 148 ने ही किया है. यहां 80 वर्ष से उपर के 64 वृद्ध मजदूरों ने काम किया है. आंकड़े देखें तो 41 से 50 वर्ष के 1.28 लोग निबंधित हैं लेकिन 23 हजार 365 ने ही मनरेगा के प्रति रुचि दिखायी है.

पाकुड़: निबंधित 5.72 लाख में से 54 हजार आये काम करने

संताल परगना में मनरेगा के प्रति सबसे कम रुचि पाकुड़ के ही लोग दिखा रहे हैं. इस जिले में 5.72 लाख मजदूरों का निबंधन है लेकिन काम करने वालों की संख्या महज 54 हजार 462 ही है. पाकुड़ में निबंधित मजदूरों की संख्या अधिक है लेकिन काम दूसरे जिले की तुलना में काम करने वालों की संख्या काफी कम है. यहां सबसे अधिक 31 से 40 वर्ष के 17359 मजदूरों ने काम किया है.

साहिबगंज : ट्रायबल बहुल जिले का हाल भी है बुरा

इस जिले में सबसे अधिक ट्रायबल पोपुलेशन है. लेकिन यहां के लोग मनरेगा की योजना में काम करने के प्रति उदासीन हैं. हो सकता है कि उनके प्रखंडों या पंचायतों में योजना ही नहीं लिया जा रहा हो, इसलिए काम करने वालों की संख्या कम है. आंकड़े बताते हैं कि साहिबगंज जिले में 5.72 लाख मजदूर निबंधित हैं लेकिन काम मात्र 64692 ने ही किया है. इस जिले में 80 वर्ष से अधिक की उम्र के 80 बुजुर्गों ने काम किया है.

बरहरवा के चार व महागामा की दो पंचायतों में एक भी मानव दिवस सृजित नहीं

चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 के आठ महीने बीतने को है. संताल परगना प्रमंडल के छह पंचायत ऐसे हैं, जहां मनरेगा से एक भी मानव दिवस सृजित नहीं हो सका है. ऐसे पंचायत गोडद्डा व साहिबगंज जिले के हैं. साहिबगंज जिले के बरहरवा प्रखंड के चार पंचायतों और गोड्डा जिले के महगामा प्रखंड के दो पंचायतों में आज की तिथि तक एक अदद मानव दिवस सृजित नहीं हो सका है. महगामा का मुरलीटोक ऐसा पंचायत है, जहां चवन्नी तक मनरेगा से खर्च नहीं की जा सकी है तो बरहरवा इस्ट, बरहरवा बेस्ट व रतनपुर में भी कुछ खर्च नहीं किया जा सका है. ऐसे में वहां योजना का क्रियान्वयन होने का सवाल ही नहीं उठता.

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