जरबेरा जैसे सजावटी फूल की खेती से रोल मॉडल बने रवींद्र व अनिता, देवघर-गोड्डा में बिकते हैं फूल, इतनी है कमाई
उद्यान विभाग द्वारा दिये गए पाॅली हाउस में सजावटी फूल जरबेरा लगाया. दिसंबर 2022 से उन्होंने फूलों को बेचना भी प्रारंभ कर दिया. फूलों के व्यापारी उनके घर से आकर हर सप्ताह फूल खरीदकर ले जाते हैं. उनके द्वारा उत्पादित फूल दुमका, जरमुंडी, देवघर तथा गोड्डा के बाजारों में बिक रहे हैं.
रामगढ़, मणिचयन मिश्र. दुमका जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी की दूरी पर अवस्थित रामगढ़ प्रखंड के पहाड़पुर पंचायत के कपाटी गांव के किसान रवींद्र कुमार राउत तथा उनकी पत्नी अनिता देवी सजावटी फूलों की खेती से न केवल आर्थिक रूप से सबल हो रहे हैं, बल्कि आसपास के किसानों के लिए रोल मॉडल भी बन गए हैं. जिला उद्यान कार्यालय दुमका द्वारा दिये गए पॉली हाउस, मल्चिंग तथा ड्रिप सिंचाई की उन्नत कृषि तकनीक के माध्यम से रवींद्र तथा उनकी पत्नी ने वर्ष 2022 के जुलाई माह में सजावटी फूलों की खेती शुरू की.
उन्होंने उद्यान विभाग द्वारा दिये गए पाॅली हाउस में सजावटी फूल जरबेरा लगाया. दिसंबर 2022 से उन्होंने फूलों को बेचना भी प्रारंभ कर दिया. फूलों के व्यापारी उनके घर से आकर हर सप्ताह फूल खरीदकर ले जाते हैं. उनके द्वारा उत्पादित फूल दुमका, जरमुंडी, देवघर तथा गोड्डा के बाजारों में बिक रहे हैं.
रवींद्र बताते हैं कि स्वयं बाजार ले जाने पर प्रति फूल पांच रुपये की दर मिल सकती है, लेकिन व्यापारी घर आकर तीन रुपये प्रति फूल की दर पर फूल ले जाते हैं. आवश्यक दवा आदि का छिड़काव भी वे खुद के खर्च पर करते हैं. हर सप्ताह लगभग 800 से 1000 फूल बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं, जिससे प्रति सप्ताह ढाई से तीन हजार रुपए की आय हो जाती है.
Also Read: झारखंड: दुमका में खुला डाकघर निर्यात केंद्र, कारोबारी ने ऑस्ट्रेलिया भेजी कुलथी दाल, इस बीमारी में है रामबाणरवींद्र के अनुसार एक बार लगाए गए जरबेरा के पौधों से तीन वर्ष तक फूलों का उत्पादन होता है. एक बार पौधों के लग जाने के बाद तीन वर्षों तक आय जारी रहती है. रवींद्र की पत्नी अनिता देवी कहती हैं कि आलू, मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की खेती में खर्च अधिक और मुनाफा कम होता था. ऐसे में उद्यान विभाग द्वारा फूलों की खेती के लिए सहायता तथा प्रशिक्षण की जानकारी मिली.
पहले तो फूलों की खेती को लेकर मन में हिचक थी. फूलों की बिक्री के लिए मन आशंकित था. लेकिन उद्यान विभाग के अधिकारियों द्वारा समझाने के बाद फूलों की खेती प्रारंभ की थी. आज फूलों की खेती का फैसला सही सिद्ध हो रहा है. यह खेती इनके लिए न सिर्फ आजीविका का साधन बनी बल्कि उन्हें एक अलग पहचान भी दे रही है.
क्या कहते हैं अधिकारीरामगढ़ प्रखंड के प्रभारी कृषि पदाधिकारी आशीष रंजन कहते हैं कि रामगढ़ जैसे प्रखंड में सजावटी फूलों की खेती का प्रचलन नहीं है. ऐसे में गांव के एक किसान ने उद्यान विभाग दुमका द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद फूलों की खेती शुरू की. आज यह खेती इस क्षेत्र में ग्रामीणों के लिए आकर्षण के केंद्र के साथ साथ अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन गयी है. दूसरे किसान भी अपनी थोड़ी जमीन में फूलों की खेती कर न केवल आय के वैकल्पिक स्रोत का सृजन कर सकते हैं बल्कि अपनी खेती में विविधता भी ला सकते हैं.