दुमका का सिदो कान्हू शौर्य स्मारक पार्क हुआ बदहाल, डेवलपमेंट में खर्च हुए थे पांच करोड़ रुपये
उपराजधानी में तमाम पार्क की स्थिति बदहाल है. पार्क की बदहाली दूर कराने को लेकर न तो राज्य की सरकार या यहां के सांसद-विधायक कोई दिलचस्पी दिखा रहे हैं और न ही जिला के प्रशासनिक पदाधिकारी. पार्क की बदहाली को हम किस्तवार प्रकाशित कर रहे हैं.
Dumka News: उपराजधानी में तमाम पार्क की स्थिति बदहाल है. पार्क की बदहाली दूर कराने को लेकर न तो राज्य की सरकार या यहां के सांसद-विधायक कोई दिलचस्पी दिखा रहे हैं और न ही जिला के प्रशासनिक पदाधिकारी. पार्क की बदहाली को हम किस्तवार प्रकाशित कर रहे हैं. इस कड़ी में हम आज आपको लखीकुंडी के सिदो कान्हू शौर्य स्मारक पार्क की वर्तमान स्थिति से अवगत करा रहे हैं. दुमका के दूसरे पार्क की बदहाली पर पढ़िये यह रिपोर्ट.
अर्जुन मुंडा ने की थी वोटिंग की व्यवस्था
शहर में लखीकुंडी में बना पार्क ज्यादा पुराना नहीं है. पार्क के पास मसानजोर डैम का डूब क्षेत्र है, जिसमें हमेशा पानी रहता है. इसे देखते हुए निवर्तमान सीएम अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में यहां बोटिंग की व्यवस्था की गयी थी. कुछ साल चलने के बाद लखीकुंडी का बोटिंग पार्क बंद हो गया. बाद में सामने के हिस्से में वन विभाग की जमीन पर लगभग एक दशक की लंबी प्रक्रिया के बाद पार्क विकसित करने के नाम पर चहारदीवारी व केवल मिट्टी की भराई ही हुई. बाद में रघुवर दास की सरकार में तत्कालीन उपायुक्त राहुल कुमार सिन्हा ने पहल की, तो यह पार्क विकसित हुआ. मुख्यमंत्री रघुवर दास उद्घाटन करने पहुंचे तो पार्क का नामकरण सिदो कान्हू शौर्य स्मारक पार्क किया. कोविड काल के पहले तक पार्क गुलजार हुआ करता था, लेकिन इसमें जब एक बार ताला लटक गया, तो खोलने की पहल कभी नहीं हुई. कोविड काल से पहले तक पार्क में लोग सबेरे-सबेरे टहलने के लिए तो पहुंचते ही थे, चारों ओर बने जागर्स ट्रैक में लोग जागिंग भी किया करते थे. वहीं बच्चों को आकर्षक झूले खूब मन मोहते थे. पार्क बच्चे-बच्चियों ही नहीं युवक-युवतियों से लेकर बड़े-बुजुर्ग को भी आकर्षित करता था.
पतंगबाजी से लेकर ओपन थियेटर तक
आरंभिक दौर में यहां पतंगबाजी हुई तो ओपेन एयर थियेटर में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी बाद में होते रहे थे. खूबसूरत नजारे और हरियाली की वजह से कुछ शादियां भी पार्क से हुई. पर आज एक अदद गार्ड तक पार्क में नजर नहीं आते हैं. शायद प्रशासन अपनी इस मिल्कियत वाले पार्क को भूल चुका है, पर बच्चों का बालमन नहीं मानता. वे साइकिल से, पैदल पार्क पहुंच जाते हैं. कोई उन्हें देख गेट खोल दे, इस आशा में झांकते हैं, पर जब कोई गेट नहीं खोलता तो कुंठित मन से वापस लौट जाते हैं. वहीं असामाजिक तत्व, नशेड़ी और गलत हरकतों में लिप्त रहनेवाले तो मुख्य गेट के बगल से चार-पांच फीट उंची दीवार को फांद जाते हैं. उनके लिए गेट में लटका बड़ा ताला और किसी प्रशासनिक महकमे के शख्स की गैर मौजूदगी ही अवसर साबित होता है.
आधा दर्जन दुकानें भी बनायी गयीं थी पार्क में
पार्क के अंदर लोगों को खाने-पीने के सामान मिल सके. लोगों को रोजगार, इसके लिए आधी दर्जन दुकानें भी बनवायी गयी थी. दुकानों की बंदोबस्ती की भी प्रकिया अपनायी गयी. लोगों ने दुकान लिया भी, पर वह दुकानें चलती भी आखिर कैसे, जब पार्क का संचालन ही ढंग से न हो पाया. अगर शासन-प्रशासन पार्क को चालू कराता तो लोगों को रोजगार भी मिलता और यहां आनेवाले बच्चों के चेहरे पर मुस्कान भी.
बोटिंग के लिए बनाया गया जलाशय भी हुआ बेकार
सिदो कान्हू शौर्य स्मारक पार्क के अंदर जलाशय की भी निर्माण किया गया. दरअसल पार्क के अंदर तीन आर्टिजन वेल थे, जिनसे लगातार भूगर्भ जल बाहर आकर गिरता रहता था और पूरी जमीन दलदल में तब्दील रहती थी. पार्क को विकसित करने से पूर्व इन आर्टिजन वेल को बंद कर उसके पानी का बहाव उस जलाशय की ओर किया गया और बोटिंग की सुविधा उपलब्ध करायी गयी थी.