Dumka Vidhan Sabha: झामुमो के गढ़ में 2014 में पहली बार BJP ने खिलाया था कमल, 2 बार हेमंत सोरेन को मिली करारी हार

हेमंत सोरेन को 2005 और 2014 में दुमका विधानसभा सीट से करारी हार मिल चुकी है. हालांकि 2019 में हेमंत ने दुमका विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की थी.

By Kunal Kishore | October 20, 2024 10:00 AM
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Dumka Vidhan sabha : दुमका विधानसभा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है, जिसमें राज्य गठन से पहले और बाद में झारखंड मुक्ति मोरचा का सबसे अधिक प्रभुत्व रहा है. इस सीट पर पहले तीन चुनाव 1952, 1957 एवं 1962 में झारखंड पार्टी, कांग्रेस को 1969 एवं 1972 में कुल दो बार और झारखंड मुक्ति मोर्चा को आठ बार विजय पताका लहराने का अवसर मिला है. केवल एक बार 2014 में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली थी.

बीजेपी प्रत्याशी लुईस मरांडी ने हेमंत सोरेन से छीनी थी दुमका सीट

भाजपा प्रत्याशी के रूप में डॉ लुईस मरांडी ने यहां पहली बार कमल खिलाने का काम व झामुमो का प्रभुत्व तोड़ने का काम किया था. इस विधानसभा क्षेत्र से सबसे अधिक छह बार स्टीफन मरांडी विधायक चुने गये हैं. स्टीफन मरांडी 1980 से 2000 तक पांच बार झामुमो के विधायक चुने जाते रहे. इतने कद्दावर होने के बाद भी 2005 में झामुमो ने उनका टिकट काट दिया, तो वे बगावत कर निर्दलीय ही इस सीट से खड़े हो गये और जीत भी दर्ज की.

2005 में हेमंत को मिली थी

तब झामुमो ने हेमंत सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया था. हेमंत सोरेन की उस वक्त निर्दलीय स्टीफन मरांडी से करारी हार हुई थी. उस चुनाव में स्टीफन मरांडी को 38.7 प्रतिशत यानी कुल 41340 वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर भाजपा के मोहरिल मुर्मू रहे थे, उन्हें मरांडी से पांच प्रतिशत कम 33.7 प्रतिशत यानी 35993 वोट मिले थे. जबकि झामुमो के टिकट पर पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हेमंत सोरेन को 18.3 प्रतिशत 19610 वोट से तीसरे स्थान पर रहकर संतोष करना पड़ा था.

2005 और 2014 में दुमका से हार गये थे हेमंत सोरेन

2005 में प्रो स्टीफन मरांडी का टिकट झामुमो से काट दिये जाने पर दुमका की जनता ने उनके प्रति खूब सहानुभूति दिखायी थी और उन्हें छठी बार विधायक चुनकर भेज दिया था. इस चुनाव के जीतने बाद जब राज्य में मधु कोड़ा की सरकार बनी थी, तब प्रो स्टीफन डिप्टी सीएम भी बनाए गये थे. हालांकि 2009 के चुनाव में स्थिति बिल्कुल पलट गयी. हेमंत सोरेन यहां से चुनाव जीते और भाजपा से लुईस मरांडी दूसरे पायदान पर रही, लेकिन कांग्रेस का दामन थाम चुके प्रो स्टीफन इस बार तीसरे स्थान पर चले गये.

2019 में हेमंत ने की वापसी

2014 के चुनाव तक उनकी झारखंड मुक्ति मोर्चा में वापसी भी हो गयी, लेकिन सीट बदल दी गयी. हेमंत सोरेन दुमका से तो लड़े, लेकिन हार गये. उसके बाद 2019 के चुनाव में उन्होंने वापसी कर ली. 2019 के चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी और वर्तमान में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बरहेट के साथ-साथ दुमका विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव जीतने में सफल रहे थे, जब बारी एक सीट को छोड़ने की आयी, तो उन्होंने दुमका सीट को छोड़ दिया, जिसके बाद 2020 में हुए उपचुनाव में उनके छोटे भाई बसंत सोरेन उम्मीदवार बनाये गये.

बसंत सोरेन ने हेमंत सोरेन से किया बेहतर प्रदर्शन

हेमंत सोरेन की तुलना में इस विधानसभा क्षेत्र से बसंत सोरेन मजबूत बनकर उभरे. हेमंत को जहां 2019 में 13188 वोट के अंतर से जीत मिली थी, वहीं बसंत सोरेन ने जब 2020 में चुनाव लडा तो झामुमो को पिछले चुनाव में मिले 48.86% की तुलना में 50.02% वोट मिले और भाजपा प्रत्याशी डॉ लुईस मरांडी को 6842 वोट के अंतर से पराजित किया था.

कब कौन विधायक बने

1952 देवी सोरेन(झारखंड पार्टी)

1957 सनाथ राउत व बेनजामिन हांसदा (झारखंड पार्टी)
1962 पॉल मुर्मू(झारखंड पार्टी)
1967 गोपाल मरांडी (भारतीय जनसंघ)
1969 पायका मुर्मू(कांग्रेस)
1972 पायका मुर्मू(कांग्रेस)
1977 महादेव मरांडी(जनता पार्टी)
1980 स्टीफन मरांडी(झामुमो)
1985 स्टीफन मरांडी(झामुमो)
1990 स्टीफन मरांडी(झामुमो)
1995 स्टीफन मरांडी(झामुमो)
2000 स्टीफन मरांडी(झामुमो)
2005 स्टीफन मरांडी(निर्दलीय)
2009 हेमंत सोरेन (झामुमो)
2014 लुईस मरांडी(भाजपा)
2019 हेमंत सोरेन (झामुमो)
2020 बसंत सोरेन (झामुमो)

चुनाव जीतना है तो अपनों से निबटना होगा भाजपा प्रत्याशियों को

विधानसभा चुनाव में चारों ओर चुनावी समां बंध रहा है. पहले टिकट को लेकर गहमा-गहमी थी लेकिन टिकट की घोषणा के बाद भाजपा की खेमेबाजी सामने आने लगी है. हर नुक्कड़ और चौराहे पर भाजपा समर्थकों के बीच यही चर्चा है कि दुमका विधानसभा क्षेत्र में ही नहीं पूरे दुमका जिले में भाजपा के कार्यकर्ता गुटों में बंटे हुए हैं. कार्यकर्ताओं के अंदर की गुटबाजी खत्म कराने में भाजपा का शीर्ष संगठन भी विफल रहा है. भाजपाइयों ने खेमेबाजी को दुरूस्त नहीं किया, तो उन्हें अपने ही हरा देंगे, इसके लिए विपक्ष को पसीना बहाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. दुमका जिले में भाजपा एक-दो नहीं तीन खेमें में बंटी हुई है.

बीजेपी कार्यकर्ता एक दूसरे के खिलाफ

सोशल मीडिया पर भी भाजपा के कार्यकर्ता विरोधियों के खिलाफ कम, अपने नेताओं के खिलाफ जहर ज्यादा उगल रहे हैं. इस साल ही हुए लोकसभा चुनाव और उससे पहले के विधानसभा चुनाव 2019 और दुमका विधानसभा उपचुनाव 2020 में गुटबाजी का हश्र यहां भाजपा संगठन देख चुकी है.

बीजेपी कार्यकर्ता में हो चुकी है चाकूबाजी

टिकट की घोषणा से पूर्व ही दुमका में भाजपा के दो समर्थकों में चाकूबाजी हो गयी. इससे पता चल रहा है कि संगठन में सबकुछ ठीक नहीं है. पूरे दुमका में तो यही चर्चा है कि भाजपा को चुनाव जीतना है तो पहले अपनों से लड़कर उनपर जीत हासिल करनी होगी या उनका विश्वास हासिल करना होगा, ताकि इस दुमका सीट पर भाजपा अपनी वापसी कर पाये.

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