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तीन साल में महज 18 महिलाओं को सूत कताई व बुनाई का प्रशिक्षण

करोड़ों खर्च कर बने खादी पार्क के इम्पोरियम में कोई उत्पाद तक बिक्री के लिए नहीं

दुमका. उपराजधानी के खादी पार्क में न खादी के कपडे हैं, न खादी के कपड़ों के निर्माण को लेकर कोई गतिविधि संचालित है. खादी पार्क के उद्घाटन के लगभग तैंतीस महीने यानी पूरे तीन माह कम तीन साल बीत चुके हैं. इतनी अवधि में इस खादी पार्क में महज 18 महिलाओं को प्रशिक्षण मिला है. बारह को सूत कताई का और छह को बुनाई का. यह प्रशिक्षण छह माह तक चला और सूत कताई का तीन माह. प्रशिक्षक व प्रभारी के साथ इन अठारह को छोड़ इस खादी पार्क में किसी के भी कदम नहीं पड़े. यही वजह रही कि खादी पार्क की स्थिति और गतिविधि का जायजा लेने प्रभात खबर की टीम पहुंची, तो पाया कि ऑनलाइन शिलान्यास के तैंतीस महीने के बाद भी शिलापट्ट कागज में पैक करके ही रखा हुआ था. 29 दिसंबर 2021 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने लगभग दो करोड़ रुपये की लागत से बने भव्य खादी पार्क का उद्घाटन किया था. इसके बाद आज तक इसके इम्पोरियम का शटर तक नहीं उठ पाया है. खादी पार्क में खादी के नाम पर कुछ भी नही है, जिसे आप खरीद पाएं. कोई ऐसा उत्पाद नहीं है, जिसे आप देख पाएं. कोई ऐसी गतिविधि नहीं है, जिसे देख आप खादी के उत्पाद के तैयार होने की प्रक्रिया को समझ पाएं. हां, तीन साल में उपकरणों और रीलिंग आदि के लिए जो मशीनें आयीं है, वह धूल फांक जरूरी रही है. भवन के अंदर जिले के प्रशासनिक अधिकारियों ने भी कभी झांकने की कोशिश नहीं की. अगर की होती, तो दीवारों पर दीमक नहीं लगी होती. राज्यपाल की सही तस्वीर लगी होती और तो और पैकेट में मुख्यमंत्री द्वारा उदघाटन का शिलापट्ट अब तक कैद नहीं रहता. खादी के नाम पर उपराजधानी में खादी पार्क मजाक साबित हो रहा है. दूसरे बैच के लिए भरवाया गया फार्म पर प्रशिक्षण नहीं नेशनल स्कूल के पीछे बनवाये गये इस खादी पार्क का भवन बेहद ही खूबसूरत है. आसपास रहनेवाले लोग कहतें है कि इसकी उपयोगिता सरकार सुनिश्चित नहीं कर पा रही. यहां के प्रभारी अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि कटिया धागा बनाने व सूत कताई का प्रशिक्षण दिया गया है. मार्च-2024 तक अठारह लोगों ने प्रशिक्षण लिया है. दूसरे बैच के लिए भी फार्म भराया गया है, लेकिन प्रशिक्षण चालू नहीं हुआ है. अब तक शोरूम चालू नहीं हुआ है. विभाग ने जल्दी चालू कराने का आश्वासन दिया है.

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