सोलर उपकरण पहुंचानेवाले कर्मियों ने वसूले 31 हजार, ग्रामीणों ने बनाया बंधक

गोपीकांदर के जोलो-चंपा गांव का मामला, मुखिया की उपस्थिति में सलटा मामला

By Prabhat Khabar News Desk | December 21, 2024 2:00 AM

गोपीकांदर. जिन गांवों में विद्युत आपूर्ति अब तक सुनिश्चित नहीं हो पायी है, ऐसे दुर्गम व पहाड़िया बहुल गांवों में सौरऊर्जा से संचालित उपकरण उपलब्ध कराये जा रहे हैं. गुरुवार को बोकारो के अजहर अंसारी के सहयोगी ऐसे ही प्रोजेक्ट के सिलसिले में गोपीकांदर प्रखंड के जोलो-चंपा गांव पहुंचे थे. वे यहां के 26 आदिम जनजाति पहाड़िया परिवारों की सूची लेकर आये थे. गांव में कार्य कर रहे कर्मियों के द्वारा सौरऊर्जा से संचालित उपकरण लगाने व उपकरण देने के नाम पर 31 हजार रुपये ग्रामीणों ने वसूली करने का आरोप लगाया. बाद में कर्मियों को बंधक बना लिया गया. सूचना ग्राम प्रधान बाबूराम कुंवर को मिली तो उन्होंने सबसे पहले फोन के माध्यम से मुखिया माइकल हेंब्रम को पूरी जानकारी दी. प्रधान ने बताया कि जोलोचंपा में विद्युत व्यवस्था नहीं होने के कारण सरकार द्वारा कुल 28 अनुसूचित जनजाति परिवारों को जरेडा के तहत सोलर कनेक्शन देने की स्वीकृति सूची आयी है, जिस संवेदक को कार्य मिला है, उसके कर्मियों अजहर हक, फुरकान अंसारी, सफीद अंसारी, मजरुल और रफीक अंसारी के द्वारा सभी 28 उपभोक्ताओं से 500 व अन्य 17 जो कि बिना सूची वाले उपभोक्ता से 1000 करके पैसा लिया गया. इसी वजह से पांचों कर्मियों को शाम तक बंधक रखा गया. स्थानीय मुखिया गांव पहुंची, तो उन्होंने सभी ग्रामीण एवं बंधक बनाये गये कर्मियों के बीच देर रात तक बैठक की. पैसे वापस करने की सहमति पर मामले को सुलझाया गया. मुखिया माइकल हेंब्रम ने बताया कि अगस्त 2024 को पंचायत के जोलोचंपा गांव में बिजली व्यवस्था नहीं होने की रिपोर्ट प्रखंड कार्यालय को दी थी. इसके तहत जरेडा के तहत यहां 28 परिवारों को सोलर द्वारा चालित दो बल्ब, एक पंखा व एक इनवर्टर स्वीकृति दी गयी थी. परंतु जोलोचंपा में कार्य शुरू होने की सूचना उन्हें किसी प्रकार से प्राप्त नहीं थी. ऐसे में ग्राम प्रधान के द्वारा सूचना के बाद वे यहां की स्थिति का जायजा लेने पहुंची एवं मामले को निष्पादन किया. मौके पर रीतियां देहरी, सरस्वती महारानी, फूलमुनि महारानी, जुनू कुंवर, रूपलाल कुंवर समेत सभी लाभुक और ग्रामीण मौजूद थे. बता दें कि जोलो-चंपा गांव प्रखंड कार्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी में है और पहाड़ की चोटी पर स्थित है, जहां पैदल जाना ही संभव है. ऐसे में सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं से गांव की काफी दूरी बनी रहती है. बहुत मुश्किल से यहां के ग्रामीणों को सरकार का लाभ मिल पाता है.

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