लाखों खर्च के बाद भी उपराजधानी में कचरे का ढेर
लाखों खर्च के बाद भी उपराजधानी में कचरे का ढेर
गंदगी व दुर्गंध से लोग परेशान, नगर परिषद सफाई में नाकाम संवाददाता, दुमका दुमका नगर परिषद की साफ-सफाई व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. ऐसा लग रहा है कि इस व्यवस्था की मॉनिटरिंग करने वाला कोई है ही नहीं. शहर के अधिकांश वार्डों में चौक-चौराहों पर कचरे का अंबार लगा हुआ है और नालियां कचरे से भरी पड़ी हैं. पहले, जब नगर निकाय बोर्ड में जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल था, तब उनकी सक्रिय मॉनिटरिंग से शहर के हर मोहल्ले की सफाई समय पर होती थी और गलियां चमकती रहती थीं. लेकिन अब स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है. जहां पहले हर दिन कचरे का उठाव होता था, अब सफाई करने के लिए ट्रैक्टर चार से पांच दिन में एक बार पहुंचता है. जवाबदेही की कमी, सुस्त रवैया नगर परिषद में जिन लोगों को सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी दी गयी है, उनके लापरवाह रवैये का असर अब साफ नजर आने लगा है. आलम यह है कि महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि या किसी विशेष कार्यक्रम के दौरान भी उनकी प्रतिमाएं धूल से ढकी रहती हैं. हाल ही में स्वामी विवेकानंद की जयंती पर यही स्थिति देखी गयी. इसी तरह, कांग्रेस के एक कार्यक्रम के दौरान जब प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश और कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव अंबेडकर चौक पहुंचे, तब भी चौक पर गंदगी का अंबार था. कांग्रेस कार्यकर्ताओं को खुद आनन-फानन में प्रतिमा की सफाई करनी पड़ी. हर महीने लाखों का खर्च, फिर भी सफाई नहीं दुमका नगर परिषद में हर महीने साफ-सफाई और कचरा उठाव पर करीब 22 से 23 लाख रुपये खर्च किए जाते हैं. पहले भी इतनी ही राशि खर्च होती थी, लेकिन तब वार्ड पार्षद अपनी जिम्मेदारी निभाते थे, जिससे सफाई व्यवस्था बनी रहती थी. जनशिकायतों पर तत्काल कार्रवाई होती थी और कचरा जल्द ही हटा लिया जाता था. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. शहर के कई इलाकों में कचरे के ढेर स्थायी रूप से लगे रहते हैं, जिससे स्थानीय लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सवाल यह उठता है कि जब लाखों रुपये सफाई पर खर्च हो रहे हैं, तो फिर सफाई नजर क्यों नहीं आ रही. कब सुधरेगी व्यवस्था शहर की बिगड़ती सफाई व्यवस्था से जनता परेशान है, लेकिन नगर परिषद की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं. अगर जल्द ही मॉनिटरिंग को मजबूत नहीं किया गया और जवाबदेही तय नहीं की गयी, तो आने वाले दिनों में हालात और भी बदतर हो सकते हैं. अब देखना यह है कि नगर परिषद कब जागता है और कब इस समस्या का समाधान निकालती है. उपराजधानी में नगर परिषद की साफ-सफाई की व्यवस्था चरमरा गयी है. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि साफ-सफाई के कार्य की माॅनीटरिंग करनेवाला ही कोई नही है. शहर के अधिकांश वार्ड में चाैक-चौराहे पर कचरे का अंबार लगे हुए हैं और नालियां कचरे से अटी पड़ी हैं. जबतक नगर निकाय के बोर्ड में जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल था, तब उनके स्तर से की जानेवाली माॅनिटरिंग से शहर के तमाम मुहल्ले चकाचक हुआ करते थे, पर आज स्थिति बेहद खराब है. जहां हर दिन कचरे का उठाव होता था, वहीं कचरे का उठाव करने के लिए ट्रैक्टर चार से पांच दिन में पहुंचता है. साफ-सफाई कराने के लिए जिन्हें अभी नगर परिषद में जवाबदेह बनाया गया है, उनके सुस्त रवैये से स्थिति ऐसी बन जा रही है कि जयंती-पुण्यतिथि और कई बार विशिष्टजनों के आगमन के दौरान महापुरूष की प्रतिमाएं धूल से अंटी पड़ी रहती है. स्वामी विवेकानंद की जयंती पर यही हाल था, तो कांग्रेस के एक कार्यक्रम के दौरान प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश और कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव जब आंबेदकर चौक पहुंचे थे, तब भी ऐसी ही स्थिति दिखी थी. कांग्रेसियों को आनन-फानन में प्रतिमा की सफाई करनी पड़ी थी. दुमका नगर परिषद में हर महीने कचरे के उठाव व साफ-सफाई में लगभग 22 से 23 लाख रूपये खर्च किया जाता है. पहले भी लगभग इतनी ही राशि औसतन खर्च होती थी, पर वार्ड पार्षद क्षेत्र के प्रति अपनी जवाबदेही निभाते थे. जन शिकायत पर भी कचरे का उठाव आसानी से होता था. अब कई जगह नियमित रूप से कचरे का ढेर लगा रहता है.
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