संताल परगना में जनजातीय संस्कृति खतरे में, घट रही आबादी : बाबूलाल

1951 से 2011 के बीच मुस्लिम आबादी में हुई अप्रत्याशित वृद्धि, आजादी के 100 साल और हूल आंदोलन के 200 साल पूरा होते होते जनजाति का अस्तित्व ही हो जायेगा समाप्त

By Prabhat Khabar Print | July 1, 2024 12:00 AM

दुमका. हूल दिवस के अवसर पर संताल परगना के दौरे पर पहुंचे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने हूल क्रांति के महानायक वीर शहीद सिदो कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की. श्री मरांडी ने कहा कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दो वर्ष पूर्व ही संताल परगना की धरती से अमर शहीद सिदो कान्हू के नेतृत्व में अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ हजारों जनजाति भाई-बहनों ने संघर्ष किया था. बलिदान दिया, जो हूल के नाम से प्रसिद्ध है. उन्होंने कहा कि हूल के कारण ही आदिवासियों के जल, जंगल व जमीन और संस्कृति की रक्षा के लिए एसपीटी-सीएनटी जैसे कानून बने. उन्होंने कहा कि आज संताल परगना की संस्कृति खतरे में है. आदिवासियों की तेज गति से घटती जनसंख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि 1951 की जनगणना से लेकर 2011 की जनगणना के बीच आबादी का विश्लेषण करें तो भयावह तथ्य उजागर होते हैं. 1951 में आदिवासियों की आबादी 44.69% थी, जो 2011 में 16% घटकर 28.11% हो गयी, जबकि मुस्लिम आबादी इस बीच 9.44% से बढ़कर 22.73% हो गयी. शेष समुदाय की आबादी 45.9% से बढ़कर 49% ही हुई. उन्होंने कहा कि अगर इसी प्रकार जनजाति समाज की आबादी घटती रही तो आजादी के 100 साल और हूल आंदोलन के लगभग 200 साल पूरा होते-होते संताल जनजाति समाज का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा. उन्होंने कहा कि संताल परगना के साहिबगंज और पाकुड़ जिले की स्थिति तो बद से बदतर होती जा रही. जनजातियों के जल, जंगल व जमीन की सुरक्षा के कानून तो मौजूद हैं, पर उनका अस्तित्व पूरी तरह खतरे में है. उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि इसकी जमीनी स्तर पर गहरायी से जांच होनी चाहिए. श्री मरांडी ने राज्य सरकार से इस संबध में एसआइटी गठित कर जांच कराने की मांग की.

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