Hool Diwas: सिदो-कान्हू की गिरफ्तारी के लिए दारोगा को मिले थे 100 रुपये, 1000 रुपये तक खर्च करने को तैयार था महाजन
7 जुलाई 1855 का दिन आया, जब सिदो-कान्हू अपने समर्थकों के साथ थे और महेश दारोगा उनपर दमनात्मक कार्रवाई के मकसद से पहुंचा था. इसके बाद जो कुछ हुआ, उस वाक्ये ने हूल का स्वरूप ही बदल दिया.
आनंद जायसवाल, दुमका: ताल हूल केवल अंग्रेजों के जुल्म और ब्रिटिश रियासत की नीतियों के खिलाफ ही नहीं था, बल्कि इस हूल की जड़ में स्थानीय स्तर पर महाजनों द्वारा किये जानेवाले शोषण तथा उनका पक्ष लेने व संतालों पर अत्याचार करने वाले पुलिस तक थी. महाजन व पुलिस की सांठगांठ थी, महाजन को संताल 25 प्रतिशत सूद देने पर सहमत थे, पर महाजनों का शोषण तब ऐसा था कि वे पांच सौ प्रतिशत तक सूद वसूला करते थे. ऐसे में जमीन से लेकर सबकुछ से उन्हें हाथ धो देना पड़ता था. ऐसे जुल्म से उबरने के लिए संतालों को अपने इस आंदोलन को आक्रामकता के साथ लड़ना था. अंग्रेजों के पास गोली-बंदूक थे और संतालों के पास तीर-धनुष व तलवार. ज्यादातर तो निहत्थे ही थे. पर उनकी आक्रामकता ऐसी थी कि पूरा बंगाल उस वक्त थर्रा गया था.
हालांकि 29-30 जून 1855 से एक पखवारा पहले 13 जून 1855 को ही संताल आदिवासियों ने इस शोषण-अत्याचार के खिलाफ कोलकाता कूच करने की योजना बनायी थी, तब आंदोलन की रूपरेखा बिल्कुल शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात पहुंचाने की ही थी. वे केवल इतना ही चाहते थे कि अंग्रेज अधिकारियों से अपनी बात कह सकें. महाजनों-पुलिस के अत्याचार व सांठगांठ के बारे में बता सकें. लेकिन इसके बाद की घटनाएं और परिस्थितियां ऐसी बनीं, कि उन्हें और आक्रामक व उग्र तेवर अपनाने पड़े. दरअसल इस बीच शनिवार 7 जुलाई 1855 का दिन आया, जब सिदो-कान्हू अपने समर्थकों के साथ थे और महेश दारोगा उनपर दमनात्मक कार्रवाई के मकसद से पहुंचा था. इसके बाद जो कुछ हुआ, उस वाक्ये ने हूल का स्वरूप ही बदल दिया.
संताल हूल के दौरान पकड़ में आने के बाद 20 दिसंबर 1855 को कान्हू मुर्मू ने कोर्ट में जो अपना बयान दिया था, उसमें उसने कहा था ” जब हम लोग संताल आदिवासियों को अपने ऊपर हो रहे शोषण-अत्याचार के खिलाफ एकजुट करने का प्रयास कर रहे था, तब महाजनों ने दारोगा को सौ रुपये दे दिये थे, ताकि वह हम दो भाइयों (सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू) को गिरफ्तार कर ले और जेल की सलाखों के पीछे भेज दे.” लेकिन दारोगा ऐसा नहीं कर पाया. उस वक्त के तत्कालीन असिस्टेंट स्पेशल कमिश्नर एश्ले इडेन के समक्ष दिये गये बयान में कान्हू मुर्मू ने खुलासा किया था ” हम लोग जब एक सभा कर रहे थे, तब दारोगा ने अपने आदमी को भेजा और वहां मौजूद लोगों की गिनती कर आने को कहा. उसने हमारे एकत्रित होने की वजह जानने का प्रयास किया. इस पर हमने जवाब दिया था कि हम लोग अपने ठाकुर (देवता) के कहने पर एकत्रित हुए हैं. इसलिए वह हस्तक्षेप न करे.
दो दिन के बाद दारोगा महाजन के साथ उसी मैदान में आया, उसने आरोप लगाया कि हम लोग डकैती की योजना बना रहे हैं. कान्हू ने उनसे कहा कि यह झूठ है. इस पर महाजन ने कहा कि जरूरत हुई, तो वह हजार रुपये भी खर्च करेगा, हमें सलाखों के पीछे भेजने के लिए. कान्हू मुर्मू ने अपने बयान में आगे कहा था ” महाजन ने मेरे भाई सिदो को बांधने की कोशिश की, इसी बीच मैंने अपनी तलवार निकाल ली और उसे बंधन से मुक्त कराने के लिए महाजन केनाराम भगत का सिर धड़ से अलग कर दिया. वहीं सिदो ने दारोगा महेश लाल दत्त को मार डाला, जबकि उनकी सेना ने पांच अन्य को मौत के घाट उतार दिया. इसके बाद हूल-हूल के नारे से पूरा क्षेत्र गूंज उठा. हम दोनों भाई (सिदो-कान्हू) भी गरज उठे- ‘‘अब दारोगा नहीं है, महाजन भी नहीं है, सरकार भी नहीं होगी, हाकिम भी नहीं होगा, अब हमारा राज होगा………
इस वाक्ये के बाद 16 जुलाई 1855 को पीरपैंती-पियालपुर में आंदोलनकारियों ने सार्जेंट मेजर सहित 25 अन्य को भी अपने तीर से निशाना बनाया था. इसके बाद तो जब ब्रितानी हुकूमत ने इन्हें घेरने की कोशिश की, तो ये सेनानी राम मांझी, शाम, फुदुन आदि काे साथ लेकर वीरभूम की ओर छह अगस्त 1855 को लगभग 3000 विद्रोहियों के साथ कूच कर गये. वहीं सात हजार संताल विद्रोहियों ने जामताड़ा के पूरब से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने के लिए अपनी स्थिति मजबूत बनाने की कोशिश की थी. वीरभूम पर हमला करने के पूर्व 12 सितंबर 1855 को रक्साडंगाल से विद्रोहियों ने देवघर से चले एक डाक हरकारे के हाथ तीन पत्त्ते वाली साल की डाली देकर संदेश भेजा कि वे तीन दिन में उन तक पहुंच रहे हैं, सामना करने को तैयार रहें. इन तीन पत्तों वाली साल की टहनी का एक-एक पत्ता विद्रोहियों के आगमन के पूर्व एक-एक दिन का प्रतीक था.
संताल हूल का महत्वपूर्ण घटनाक्रम
दिनांक घटनास्थल विवरण
15 जुलाई महेशपुर 100-200 संताल मारे गये
16 जुलाई पीरपैंती 25 सिपाही मारे गये
20 जुलाई ननगोला 200 संताल मारे गये, कई जख्मी
21 जुलाई नागौर 07 संताल मारे गये
22 जुलाई ननगोला 50 संताल मारे गये और कुछ घायल हुए
24 जुलाई पियालपुर 250 संताल मारे गये और कई घायल हुए
26 जुलाई नलहाटी घर जब्ती की गयी, 30 लोग मारे गये
26 जुलाई बरहेट चार लोग मारे गये
27 जुलाई बांसकुली 20 सिपाही व 200 संताल मारे गये
1 अगस्त बिशुहुआ छह संताल मारे गये, 15 जख्मी हुए
3 अगस्त बौंसी दो संताल मारे गये, अन्य घायल हुए
5 अगस्त महेशपुर आठ संताल मारे गये, कई घायल हुए
17 अगस्त कुमड़ाबाद 12 लोग मारे गये
20 अगस्त मोर नदी के पास 20 संताल मारे गये़
31 अगस्त नोनीहाट 11 संताल मारे गये और कुछ घायल हुए
14 सितंबर जामताड़ा 50 से 60 संताल मारे गये
21 सितंबर बेवा, जामताड़ा 8 संताल मारे गये
22 से 24 सितंबर जामताड़ा 30 संताल मारे गये
अंतिम सितंबर जामताड़ा 200 संताल मारे गये व घायल हुए
10 अक्तूबर जामताड़ा 13 संताल मारे गये
15 अक्तूबर करौं 60 लोग मारे गये व जख्मी हुए
17-19 अक्तूबर पश्चिमी वीरभूम 210 संताल मारे गये व जख्मी हुए
21 अक्तूबर करौं 80 संताल मारे गये.
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