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दुमका : पहली बार बगैर सोरेन परिवार के मना झारखंड दिवस, नए मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने संभाली कमान

झारखंड मुक्ति मोरचा ने 45 वें झारखंड दिवस के अवसर पर मंच के पास केंद्रीय अध्यक्ष दिसोम गुरु शिबू सोरेन द्वारा फहराया जानेवाला झंडा इस बार नहीं लगाया. न ही फहराया गया. ऐसे में मैदान के बगल में ध्वज दंड सुना ही रहा.

दुमका : झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अलग झारखंड राज्य के निर्माण के जिस संकल्प सभा के साथ संताल परगना में अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिए दो फरवरी को झारखंड दिवस मनाने की परंपरा शुरू की थी, उस परंपरा में यह साल ऐसा हुआ, जब पहली बार दुमका के गांधी मैदान में झामुमो का मंच तो सजा, मंच पर नेता आए और सामने भारी भीड़ भी थी, लेकिन सोरेन परिवार नहीं दिखा. यानी इस बार सियासी संकट के बीच 45 वां झारखंड दिवस बगैर सोरेन परिवार के मना. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और सत्तारूढ़ दल के तमाम विधायकों को गोलबंद करके रखे जाने की वजह से न तो सोरेन परिवार से विधायक बसंत सोरेन और न ही सीता सोरेन दुमका में होनेवाले पार्टी के सबसे बड़े राजनीतिक आयोजन में शिरकत कर पाये. पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन भी नहीं आये. इस बार झारखंड दिवस की कमान राज्य कर नये मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने संभाली. उनके साथ राजमहल सांसद विजय हांसदा, गुरुजी के करीबी विजय सिंह, पूर्व सांसद हेमलाल मुर्मू, पूर्व स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता सहित अन्य नेताओं ने दिवस को सफल बनाया. दो फरवरी 2007 को झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 28 वां झारखंड दिवस मनाया था, तब शिबू सोरेन दुमका जेल में ही थे. यही वजह थी कि जेल के सामने से होकर रैली गुजरी व दुमका के गांधी मैदान में सभा हुई. पर उस साल की सभा में शिबू सोरेन शामिल नहीं हो सके थे. उस वक्त उनके बड़े बेटे दुर्गा सोरेन और तब युवा मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष के तौर पर हेमंत सोरेन ने अहम जिम्मेदारी संभाली थी.

इस बार नहीं फहराया गया झंडा, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किया रद्द

झारखंड मुक्ति मोरचा ने 45 वें झारखंड दिवस के अवसर पर मंच के पास केंद्रीय अध्यक्ष दिसोम गुरु शिबू सोरेन द्वारा फहराया जानेवाला झंडा इस बार नहीं लगाया. न ही फहराया गया. ऐसे में मैदान के बगल में ध्वज दंड सुना ही रहा. इधर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित नहीं किया गया. हर बार की तरह इस बार भी सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए मंच के सामने विशाल स्टेज बनाया गया था, ताकि मंच के अतिथि और पूरे मैदान में खचाखच भरी भीड़ सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद ले सके. सांस्कृतिक कार्यक्रम न होने से नेताओं के भाषण के बीच में जो अंतराल हुआ करता था, वह नहीं हुआ. लिहाजा कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ता रहा.

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