Jharkhand News: संताल परगना में जनजातीय संस्कृति खतरे में, घट रही आबादी, दुमका में बोले बाबूलाल मरांडी
Jharkhand News: झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि संताल परगना में जनजातीय संस्कृति खतरे में है. यही हाल रहा तो आदिवासियों का अस्तित्व मिट जाएगा.
Jharkhand News: हूल दिवस पर संताल परगना के दौरे पर पहुंचे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने हूल क्रांति के महानायक वीर शहीद सिदो कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की.
सन 57 की क्रांति से पहले आदिवासियों ने की थी हूल क्रांति
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 2 वर्ष पूर्व ही संताल परगना की धरती से अमर शहीद सिदो-कान्हू के नेतृत्व में अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ हजारों जनजातीय भाई-बहनों ने संघर्ष किया था. बलिदान दिया, जो हूल के नाम से प्रसिद्ध है.
- 1951 से 2011 के बीच मुस्लिम आबादी में हुई अप्रत्याशित वृद्धि
- आजादी के 100 साल और हूल के 200 साल पूरा होते-होते जनजाति का अस्तित्व हो जायेगा समाप्त
- झारखंड सरकार से एसआइटी का गठन कर जांच कराने की मांग
हूल की वजह से बने एसपीटी-सीएनटी जैसे कानून : बाबूलाल मरांडी
उन्होंने कहा कि हूल के कारण ही आदिवासियों के जल, जंगल व जमीन और संस्कृति की रक्षा के लिए एसपीटी-सीएनटी जैसे कानून बने. उन्होंने कहा कि आज संताल परगना की संस्कृति खतरे में है. आदिवासियों की तेजी से घटती जनसंख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए बाबूलाल मरांडी ने कहा कि 1951 की जनगणना से लेकर 2011 की जनगणना के बीच आबादी का विश्लेषण करें, तो भयावह तथ्य उजागर होते हैं.
60 साल में आदिवासियों की आबादी 44.69% से 28.11% हो गई
उन्होंने कहा कि वर्ष 1951 में आदिवासियों की आबादी 44.69 फीसदी थी, जो वर्ष 2011 में 16 फीसदी घटकर 28.11 फीसदी हो गयी. दूसरी ओर, मुस्लिम आबादी इसी दौरान 9.44 फीसदी से बढ़कर 22.73 फीसदी हो गयी. शेष समुदाय की आबादी 45.9 फीसदी से बढ़कर 49 फीसदी ही हुई.
आजादी के 100 साल आते-आते मिट जाएगा आदिवासियों का अस्तित्व
उन्होंने कहा कि अगर इसी प्रकार आदिवासी समाज की आबादी घटती रही, तो आजादी के 100 साल और हूल आंदोलन के लगभग 200 साल पूरा होते-होते जनजातीय समाज का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा. उन्होंने कहा कि संताल परगना के साहिबगंज और पाकुड़ जिले की स्थिति तो बद से बदतर होती जा रही है.
जल, जंगल व जमीन की सुरक्षा के कानून मौजूद, आदिवासी खतरे में
बाबूलाल मरांडी ने यह भी कहा कि जनजातियों के जल, जंगल व जमीन की सुरक्षा के कानून तो मौजूद हैं, पर उनका अस्तित्व पूरी तरह खतरे में है. उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि इसकी जमीनी स्तर पर गहराई से जांच होनी चाहिए. भाजपा नेता मरांडी ने राज्य सरकार से इस संबध में एसआइटी गठित कर जांच कराने की मांग की.
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