दुमका: दुमका प्रशासन द्वारा आयोजित साहित्य उत्सव का उद्घाटन जिले के उपायुक्त रविशंकर शुक्ल, वरीय प्रशासनिक अधिकारियों तथा अतिथियों ने किया. पहले सत्र में ‘मेरे जीवन में पुस्तकालय’ विषय पर परिचर्चा हुई. इस सत्र का संचालन चंद्रहास चौधरी ने किया. इस दौरान बारी-बारी से सबने अपनी सफलता के पीछे पुस्तक और पुस्तकालय की महत्ता से अवगत कराया. टीआरआइ के निदेशक रणेंद्र ने कहा कि किसी व्यक्ति के ओहदे का अंदाजा उसके घर के निजी पुस्तकालय से लगाया जाता रहा है.
आठवीं से बारहवीं शताब्दी में जिसके पास जितनी समृद्ध लाइब्रेरी होती थी. उससे उसकी हैसियत का अंदाजा लगाया जाता था और किसी से उसकी किताबें छीनकर सजा दी जाती थी. रणेंद्र ने कहा कि पुस्तक व पुस्तकालय का आकर्षण खत्म नहीं होता. बाबा साहब भीम राव आंबेडकर को किताबों का जुनून था. किताबों ने उनकों काफी कुछ दिया.
खुद के बारे में बताया कि उनके पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे, पर किताबों ने उनकी रूचि बदल दी. किताबों ने मेरे सारे सपने को पूरा कर दिया. किताबों और पुस्तकालय का आकर्षण वह रोग है जिसे लग जाता है वह मुक्त नहीं हो सकता है. इस दौरान आदिवासी विचारक कवि और अभिनेता महादेव टोप्पो ने कहा कि छात्र जीवन में ही पुस्तकालय से पुस्तक लेकर पढ़ा करता था.
तब मुझे यकीन नहीं था कि एक दिन मैं भी लेखक बनूंगा और मेरी किताबें पुस्तकालय में होगी. दुमका में साहित्य का यह जो अभियान शुरुआत हुआ. वह झारखंड के हर जिले तक पहुंचना चाहिए. श्री टोप्पो ने अपनी सफलता के पीछे राजकीय पुस्तकालय व फादर कारमिल बुल्के लाइब्रेरी को महत्वपूर्ण बताया और इनके लाइब्रेरियन के प्रति आभार जताया कि उनके जैसे ज्ञान के भूखे की भूख उन्होंने मिटाने का तब काम किया था.
Posted By: Sameer Oraon