Makar Sankranti 2021 : सकारात पर्व के साथ दुमका के संताल आदिवासी करते हैं नये साल की शुरुआत, तीर- धनुष प्रतियोगिता का होता है आयोजन

Makar Sankranti 2021, Jharkhand News, Dumka News, दुमका : झारखंड उपराजधानी दुमका में मकर संक्रांति के अवसर पर संताल आदिवासियों ने 'सकरात पर्व' पारंपरिक रीति रिवाज के साथ बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया. संताल आदिवासी सकरात के दिन को वर्ष का अंतिम दिन मानते हैं. दिशोम मारंग बुरु युग जाहेर अखड़ा द्वारा भी जामा प्रखंड के कुकुरतोपा गांव में 'सकरात पर्व' मनाया गया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 14, 2021 7:22 PM

Makar Sankranti 2021, Jharkhand News, Dumka News, दुमका : झारखंड उपराजधानी दुमका में मकर संक्रांति के अवसर पर संताल आदिवासियों ने ‘सकरात पर्व’ पारंपरिक रीति रिवाज के साथ बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया. संताल आदिवासी सकरात के दिन को वर्ष का अंतिम दिन मानते हैं. दिशोम मारंग बुरु युग जाहेर अखड़ा द्वारा भी जामा प्रखंड के कुकुरतोपा गांव में ‘सकरात पर्व’ मनाया गया.

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है पर्व

सामाजिक कार्यकर्ता सच्चिदानंद सोरेन बताते हैं कि यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक है. 2 दिन तक मनाये जाने वाले इस पर्व के पहले दिन को हाकु काटकोम माह कहते हैं. इस दिन को लोग जील पीठह यानी मांस लगी हुई रोटी, मांस, मछली आदि खाते हैं. दूसरे दिन सुबह नहा- धोकर घर में पूर्वजों, मारंग बुरु आदि ईष्ट देवताओं की पूजा- अर्चना करते हैं.

सिंदरा को जानें

इस दौरान 3 पीढ़ी के पूर्वजों का नाम लिया जाता है. जिन्हें गुड़, चूड़ा, सुनुम पीठह आदि भोग में चढ़ाये जाते हैं. इस दिन नये बर्तन एवं नये चूल्हे पर खाना बनाने की भी प्रथा है. उसके बाद लोग शिकार के खोज में पहाड़, जंगल, खेत- खलिहान जाते हैं, जिसे सिंदरा कहते हैं. सिंदरा से वापस आने के बाद लोग बेझातुंज करते हैं. बेझातुंज में केला या अंडी के पेड़ के टुकड़े को पूरब दिशा में जमीन में गाड़ा जाता है और पश्चिम से लोग इस पर तीर से निशाना लगाते हैं, जो इसपर निशाना लगाने में सफल होते हैं उन्हें सम्मानित किया जाता है.

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लेखाहोड़ पर होती पारंपरिक व्यवस्था चलाने की जिम्मेवारी

बेझातुंज के बाद तीर- धनुष को लेकर कई अन्य प्रतियोगिताएं भी ग्रामीण करते हैं. उसके बाद केला या अंडी के पेड़ के टुकड़े को 5 बराबर हिस्सों में काटा जाता है. इन टुकड़ों को लोग नाचते- गाते हुए गांव के लेखा होड़ यानी गांव की व्यवस्था चलाने वाले के घर ले जाते हैं. एक टुकड़ा मांझीथान में, दूसरा टुकड़ा गुड़ित के घर के छप्पर में, तीसरा टुकड़ा जोगमांझी के घर के छप्पर में, चौथा टुकड़ा प्राणिक के घर के छप्पर में और पांचवा टुकड़ा नायकी के घर के छप्पर में रखा जाता है. ये सभी गांव के लेखा होड़ होते हैं, जिनपर पारंपरिक व्यवस्था को चलाने की जिम्मेदारी होती है. इसके बाद ग्रामीण नाचते- गाते और भोजन का आनंद लेते हैं.

कुकुरतोपा गांव में इस पावन पर्व में मंगल मुर्मू, बालेश्वर टुडू, संग्राम टुडू, बाबुधन टुडू, सोनोत मुर्मू, सोनालाल मुर्मू, सोनोत मुर्मू, विनय हांसदा, गुडह मरांडी, नथान मुर्मू, सुरेन्द्र मुर्मू, रोशेन हांसदा, राजेंद्र मुर्मू, विजन टुडू, नोरेन मुर्मू, लुखिन मुर्मू, अविनाश टुडू, सोकोल टुडू, लुखिराम मुर्मू, राजू मुर्मू, सिकंदर मुर्मू, बर्सेन हांसदा, उज्ज्वल मुर्मू आदि उपस्थित थे.

Posted By : Samir Ranjan.

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