कभी होती थी खुले आसमान के नीचे पूजा, लेकिन ये मुस्लिम शख्स अब बनवा रहा है दुमका में 40 लाख का मंदिर
दुमका के रानीश्वर में स्थित नौशाद शेख आज पार्थसारथी मंदिर को 40 लाख की लागत से बनवा रहे हैं. और इस स्थान पर लोग लंबे समय से खुले में पूजा कर रहे हैं. 14 फरवरी को मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा करायी जायेगी. 108 महिलाएं पीले वस्त्र में कलश यात्रा निकालेंगी.
Dumka News दुमका : रानीश्वर के हामिदपुर के रहनेवाले समाजसेवी नौशाद शेख इलाके में 40 लाख की लागत से पार्थ सारथी मंदिर बनवा रहे हैं. मंदिर का निर्माण पूर्ण होने की स्थिति में है. नौशाद रानीश्वर के उप प्रमुुख हैं. वह समान रूप से सभी धर्मों में आस्था रखते हैं. वर्ष 2019 में उन्होंने इस मंदिर का निर्माण प्रारंभ कराया था. उन्होंने कहा कि जब वह मायापुर (प बंगाल) घूमने गये थे़,
तो वहां उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रभु उनसे कह रहे हैं कि वह तो स्वयं उनके इलाके में विराजमान हैं. तुम यहां क्यों आये, वहीं पहुंचों. ऐसे स्वप्न से नौशाद प्रेरित हुए. नौशाद को लगा कि पार्थ सारथी मंदिर को बनाना चाहिए, क्योंकि लंबे समय से यहां पूजा खुले आसमान के नीचे होती थी या पंडाल-तिरपाल लगाकर. ऐसे में उन्होंने ठाना कि वह स्वयं मंदिर बनवायेंगे. मंदिर बनाने से लेकर उसके समस्त अनुष्ठान का आयोजन भी करेंगे. नौशाद कहते कि इस्लाम धर्म कहता है कि दीन-दुखियों की सेवा करो. हर धर्म की इज्जत करो. दूसरे धर्म में भी ऐसी ही बातें कही गयी हैं.
14 को प्राण-प्रतिष्ठा :
14 फरवरी को मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा करायी जायेगी. 108 महिलाएं पीले वस्त्र में कलश यात्रा निकालेंगी. 101 महिलाओं का जत्था ढाक बजायेगा. 51 पुरोहित इस अनुष्ठान को पूरे वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संपन्न करायेंगे. नौशाद की परिकल्पना है कि मंदिर परिसर में ही लोग हवन आदि अनुष्ठान कर सकें. कीर्तन शेड बन रहा है. रसोई घर बन रहा है. मंदिर में पूजा कराने वाले पुरोहित के लिए छोटा सा कमरा भी तैयार हो रहा है.
हेतमपुर इस्टेट के महाराज ने शुरू करायी थी यह पूजा :
जानकार बताते हैं कि लगभग 300 साल पहले हेतमपुर इस्टेट के पूति महाराज ने पार्थ सारथी पूजा शुरू करायी थी. उस समय रानीश्वर के इस स्थल महिषबथान में हेतमपुर स्टेट की कचहरी हुआ करती थी. तब यह जंगल महल नाम से जाना जाता था. वीरभूम जिला के मुख्यालय सिउड़ी के बड़ा बागान में भी तब पार्थ सारथी मेला लगता था़ हेतमपुर स्टेट के राजा ने उस मेला के समांतर पार्थ सारथी मेला शुरू कराया था. जमींदारी उन्मूलन के बाद यहां मेला बंद हो गया था. चार दशक बाद पार्थसारथी के पूजन को कादिर शेख, अबुल शेख व लियाकत शेख ने फिर से चालू कराया था. उनके निधन के बाद 1990 से नौशाद खुद इस परंपरा को बरकरार रखने में अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं.
Posted By : Sameer Oraon