Loading election data...

दुमका : आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय के लोग आज भी ढिबरी युग में जीने को हैं मजबूर

दुमका के एक ऐसे गांव में जहां न पीने लायक पानी है, न ही चलने लायक सड़क और न ही बिजली. इस गांव के लोग आज भी 18 वीं शताब्दी के युग में जी रहे हैं.

By Kunal Kishore | June 19, 2024 10:34 PM
an image

दुमका, अभिषेक : पीने को पानी नहीं,सड़क के नाम पर पत्थरों भरा डगर और अंधेरे में कट रहीं रातें. कुछ यू दिन काट रहे है दुमका जिलांतर्गत काठीकुंड प्रखंड के छोटा तेतुलमाठ गांववासी. विकास से कोसों दूर इस गांव में पहाड़िया समुदाय के सैकड़ों की आबादी निवास करती है.

खराब रास्ते की वजह से बच्चे कभी-कभी जा पाते हैं स्कूल

सड़क किसी भी गांव को विकास से जोड़ने का पहला पैमाना होता है. लेकिन यहां विकास की बात करना यहां के ग्रामीणों के साथ न्याय नहीं होगा. इस गांव तक पहुंचने के लिए सड़क के नाम पर बड़े-बड़े पत्थरों के सिवाय कुछ भी नहीं. 2 किलोमीटर का यह दुर्गम सफर ग्रामीण डगमगाते हुए तय करते है. इस डगर पर पैदल सफर भी जोखिम भरा रहता है. यहां के स्कूली बच्चें पहाड़ से नीचे स्थित स्कूल तक कभी कभार ही जा पाते है. ग्रामीणों की माने तो पगडंडी पर लोग अक्सर गिरते पड़ते रहते है.

एक माह पहले गर्भवती महिला की हुई मौत

उन्होंने बताया कि 1 माह पूर्व गांव की एक गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने के लिये काफी मशक्कत झेलनी पड़ी थी. खाट पर लाद कर नीचे ले जाने में कई घंटे लग गए थे. इस वजह से अस्पताल ले जाने में देरी हो गयी थी. अस्पताल में इलाज के क्रम में गर्भवती महिला की मौत हो गयी थी. कहा कि अगर सड़क अच्छी रहती तो हम समय से अस्पताल पहुंच पाते और समय से इलाज मिल पाता. सड़क न होने का दंश झेल रहे ग्रामीण ही इसके दर्द को अच्छें से समझ सकते है.

देश मना रहा अमृत महोत्सव और गांव है बिजलीविहीन

आजादी के अमृत महोत्सव के दौर में यह गांव आज भी बिजलीविहीन है. शाम ढलते ही गांव में अंधेरा छा जाता है. लोग सोलर से या अन्य गांव जाकर अपने मोबाइल, टॉर्च को चार्ज करते है. रात के साए में विषैले जीव जंतुओं का भी भय ग्रामीणों को सताता रहता है. पानी के लिए यहां के ग्रामीणों में त्राहिमाम मचा हुआ है. पानी के स्रोत के रूप में गांव में मौजूद दोनों कुआं अब सूखने की कगार पर पहुंच चुका है.

जानवर और ग्रामीण एक ही गड्ढे से करते हैं पानी का उपयोग

मवेशी के साथ साथ ग्रामीण भी एक गड्ढे में जमा पानी का उपयोग नहाने व अन्य कार्य के लिए करते है. ग्रामीणों ने बताया कि दो दिनों बाद गांव में शादी है, ऐसे में पानी की समस्या कैसे दूर होगी, पता नहीं. ग्रामीणों का कहना है कि काफी वर्षों से वे अपनी समस्या को जनप्रतिनिधि, प्रशासन के समक्ष रखते आए है, लेकिन उनकी समस्याओं पर कोई पहल नहीं की जा रही. अब देखना यह है कि इन अनुसूचित जनजाति के पहाड़ियां समुदाय को मूलभूत समस्याएं कब तक मयस्सर हो पाती है.

Also Read : घटिया ईंटों का हो रहा कूप निर्माण में प्रयोग

Exit mobile version