शिक्षा विभाग की अनदेखी से बच्चों का भविष्य अधर में प्रतिनिधि, रानीश्वर हरिपुर स्थित प्राथमिक विद्यालय की स्थिति शिक्षा विभाग की अनदेखी के कारण गंभीर हो गयी है. इस स्कूल में पिछले दस वर्षों से सरकारी शिक्षक का पद खाली पड़ा है, क्योंकि यहां सेवा निवृत्त होने के बाद कोई नया शिक्षक नहीं भेजा गया है. पारा शिक्षकों की मदद से स्कूल को किसी तरह चलाया जा रहा है, जो कि नियमों के खिलाफ है. इन शिक्षकों को मूल विद्यालय से दूसरे विद्यालय में प्रतिनियुक्त करना शिक्षा विभाग के नियमों के खिलाफ है, लेकिन इसके बावजूद यह व्यवस्था लागू की जा रही है. इस स्थिति के कारण बच्चों की संख्या लगातार घट रही है, जिससे विद्यालय की स्थिति और भी बिगड़ी है. बच्चों की कमी के कारण, इस स्कूल को मिडिल स्कूल से घटाकर प्राथमिक स्कूल में परिवर्तित कर दिया गया है. हरिपुर पश्चिम बंगाल की सीमा से सटा हुआ क्षेत्र है, जहां के अभिभावक अपनी बच्चों को पश्चिम बंगाल के स्कूलों में नामांकित कराते हैं, क्योंकि यहां पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं. कक्षा पहली से पांचवीं तक की पढ़ाई कराने वाले इस स्कूल में पिछले दस वर्षों में विभिन्न पारा शिक्षकों को प्रतिनियुक्त किया गया है, लेकिन इन शिक्षकों की स्थिति अस्थायी और अनिश्चित रहती है. हाल ही में, जिला शिक्षा अधीक्षक ने कुछ नए शिक्षकों को पदस्थापित किया है, लेकिन हरिपुर स्कूल में अब तक स्थायी शिक्षक की नियुक्ति नहीं की गयी है. इसके बजाय, कुछ दूसरे स्कूलों में जहां पहले से शिक्षक पदस्थापित थे, वहां नए शिक्षक भेजे गए हैं. हरिपुर स्कूल के समीप स्थित यूएमएम पुतका स्कूल में हाल ही में एक सरकारी शिक्षक को पदस्थापित किया गया, लेकिन हरिपुर में शिक्षक का अभाव है. इस संदर्भ में बीइईओ ने बताया कि एक पारा शिक्षक, मृन्मय घोष की तबीयत खराब होने के कारण उनकी प्रतिनियुक्ति रद्द की गई और यूएमएस पुतका के पारा शिक्षक अनिल कुमार मुर्मू को हरिपुर में नियुक्त किया गया, जो कि 6-8 के लिए पारा शिक्षक थे. इतना ही नहीं, शिक्षा विभाग ने अन्य स्कूलों जैसे पुतका, तांतलोई, संग्रामपुर, बोराडंगाल और आमजोड़ा में भी शिक्षकों को नियुक्त किया है, जबकि इन स्कूलों में पहले से शिक्षक मौजूद थे. इस प्रकार, जिले के दो दर्जन से अधिक स्कूलों में शिक्षक की कमी बनी हुई है, लेकिन विभाग की ओर से किसी भी शिक्षक को उन स्कूलों में पदस्थापित नहीं किया गया है. यह स्थिति शिक्षा व्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन चुकी है, और अगर शीघ्र समाधान नहीं किया गया तो बच्चों के भविष्य पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
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