दुमका. संताल परगना में दो दशक में लगभग 100 घूसखोरों को रंगे हाथ दबोचने में भ्रष्टाचार निरोधक कोषांग ( पहले निगरानी ब्यूरो) को सफलता मिली है. चौदह-पंद्रह साल पहले तक इक्का-दुक्का मामले ही संताल परगना से निगरानी को जाया करती थी, लेकिन जब दुमका में एसीबी का कार्यालय खुला और फिर मार्च-अप्रैल 2017 में एसीबी ने यहां थाना भी स्थापित कर दिया, तो रिश्वतखोरों के खिलाफ शिकायतें आनी तेज हुई. स्वाभाविक तौर पर इससे ट्रैपिंग की उपलब्धियां भी बढ़ीं. थाना स्थापित होने और एटी करप्शन ब्यूरो के अधिकारियों के यहां पदस्थापित रहने से दनादन ट्रैपिंग हुए. थाना स्थापित होने के बाद से अब तक कुल 66 ट्रैपिंग संताल परगना में हुए, वहीं 74 की गिरफ्तारी हुई. इससे पहले 2016 में ट्रैपिंग के जहां 9 मामले पूरे संताल परगना से रांची में दर्ज हुए थे. इससे पहले 2015 तक तकरीबन डेढ़ दर्जन रिश्वतखोरों को गिरफ्तार किया जा सका था. कई बड़े अफसर हो चुके हैं घूस लेते गिरफ्तार: देवघर के सिविल सर्जन डॉ रंजन सिन्हा पहले सिविल सर्जन नहीं हैं, जो घूस लेते संताल परगना में धरे गये हैं. इससे पहले 2016 के फरवरी महीने में जामताड़ा के तत्कालीन सिविल सर्जन भी रिश्वतखोरी में निगरानी ब्यूरो द्वारा गिरफ्तार किये गये थे. अलग-अलग समय में पदस्थापित रहे अब तक संताल परगना में जिला शिक्षा पदाधिकारी, सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी, अंचल अधिकारी, जिला पशुपालन पदाधिकारी, वेटनरी डॉक्टर, प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी, प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी, एएसआई, शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की प्राचार्य तक को रिश्वत लेने के क्रम में ट्रैप किया जा चुका है. एसीबी ने संताल परगना इलाके से पंचायती राज व्यवस्था से जुड़े तकरीबन आधे दर्जन जनप्रतिनिधियों को भी रिश्वतखोरी में जेल भेजा है. इनमें चार महिलाएं ही रहीं हैं. ये पंचायत जनप्रतिनिधि जामताड़ा जिले के सिमलडुबी पंचायत, देवघर जिले के मधुपुर प्रखंड के साप्तर व सारवां प्रखंड के बनवरिया, पाकुड़ जिले के महेशपुर प्रखंड के पथरिया, गोड्डा जिले के महगामा पूर्वी क्षेत्र से जुडे रहे हैं. पंचायती राज जनप्रतिनिधियों को योजनाओं के विपत्र भुगतान करने या चेक में हस्ताक्षर करने के एवज में रिश्वत लेने में धरा गया है, जबकि अधिकारियों को काम के एवज में घूस लेने में.
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