Loading election data...

देश सेवा के बाद युवाओं को सेना के लिए कर रहे तैयार, मुफ्त कोचिंग भी दे रहे एक्स मार्कोस कमांडो राजकुमार मंडल

राजकुमार मंडल बताते हैं कि नियमित रूप से 400-500 बच्चे कोचिंग व ट्रेनिंग ले रहे हैं. 4-5 किमी की दौड़ लगा रहे हैं. रविवार को तो यह दौड़ लंबी दूरी की हो जाती है और 7-8 किमी तक की दौड़ युवा लगा रहे हैं. वे बताते हैं कि यहां के युवाओं में सेना व पुलिस की सेवा में जाने का जुनून है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 20, 2023 4:43 PM
an image

दुमका, आनंद जायसवाल. पंद्रह वर्षों तक भारतीय नौसेना में कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन में अहम भूमिका निभा चुके राजकुमार मंडल सेवानिवृत होने के बाद झारखंड के दुमका जिले के युवाओं में देश प्रेम का भाव जगा रहे हैं. उनमें देश सेवा के लिए उत्साह, जज्बा एवं जुनून पैदा कर रहे हैं. सेना व पुलिस में भर्ती होने के लिए ऐसे करीब 500 से अधिक युवक-युवतियों को वे शारीरिक रूप से सक्षम और अकादमिक रूप से सबल बना रहे हैं. खुद सुबह-सवेरे वे इन युवाओं की दौड़ लगवाते हैं. पीटी कराते हैं. वहीं दोपहर के बाद से दुमका शहर के रसिकपुर बड़ाबांध के सामने अपने घर में अलग-अलग बैच में एसएससी के अलावा भारतीय सेना में जाने के लिए नि:शुल्क कोचिंग कराते हैं.

नौकरी के कई अवसर थे, लेकिन बच्चों का मार्गदर्शन कर रहे

ठंड के दिनों में उनके घर की छत ही क्लासरूम बन जाती है, तो गर्मी रहने व धूप तीखी होने पर घर का कमरा. राजकुमार मूल रूप से रानीश्वर प्रखंड की बांसकुली पंचायत के कुमिरखाला के रहने वाले हैं. भारतीय सेना में बतौर नौसैनिक उन्होंने योगदान दिया था और विश्व के सबसे तेज तर्रार माने जानेवाले दूसरे कमांडो फोर्स मार्कोस के वे हिस्सा रहे. इसके लिए उन्होंने कड़ी ट्रेनिंग ली थी. वे बताते हैं कि सैनिक के तौर पर मिली ट्रेनिंग बहुत से क्षेत्र में आज भी मददगार साबित होती है. उन्होंने बताया कि सेवानिवृति के बाद उन्हें आगे नौकरी करने के कई अवसर थे, पर उन्हें लगा कि वे यहां के बच्चों को मार्गदर्शन दें, ताकि वे देश सेवा के लिए आगे बढ़ सकें.

Also Read: बिकती बेटियां: बचपन छीन खेलने-कूदने की उम्र में बच्चियों की जिंदगी बना दे रहे नरक, कैसे धुलेगा ये दाग ?

दे रहे ट्रेनिंग व कोचिंग भी

प्रारंभिक दौर में उन्होंने युवाओं को प्रेरित किया तो 10 में से 4 अग्निवीर के लिए चयनित हो गये. उन्होंने कॉलेजों के तमाम कल्याण छात्रावासों का दौरा किया. छात्रों को ट्रेनिंग देने की पेशकश की. बात जब सैद्धांतिक परीक्षा की आयी, तो बच्चों ने महंगी कोचिंग के लिए संस्थानों तक पहुंचने में असमर्थता जतायी. ऐसे में राजकुमार ने खुद ही यह शिक्षा भी देने की ठानी. ह्वाइट बोर्ड मंगवाया. किताबें खरीदीं और फिजिकल ट्रेनिंग के बाद लिखित परीक्षा के लिए भी बच्चों को तैयार करना शुरू कर दिया.

Also Read: कोमालिका बारी : तीरंदाज बिटिया के लिए गरीब पिता ने बेच दिया था घर, अब ऐसे देश की शान बढ़ा रही गोल्डन गर्ल

बच्चों की उम्मीद के किरण हैं राजकुमार

राजकुमार मंडल बताते हैं कि नियमित रूप से 400-500 बच्चे कोचिंग व ट्रेनिंग ले रहे हैं. 4-5 किमी की दौड़ लगा रहे हैं. रविवार को तो यह दौड़ लंबी दूरी की हो जाती है और 7-8 किमी तक की दौड़ युवा लगा रहे हैं. वे बताते हैं कि यहां के युवाओं में सेना व पुलिस की सेवा में जाने का जुनून है. मार्गदर्शन नहीं मिल रहा था. वे माध्यम बने हैं. तोषण जैसे कई युवा मानते हैं कि राजकुमार मंडल जैसे पूर्व सैनिक उनके लिए उम्मीद की किरण बनकर आये हैं, जो मार्गदर्शन तो दे ही रहे हैं, जोश व जज्बा भी जगा रहे. हताशा-निराशा को वे दूर कर हमें कई तरह के रोजगार के विकल्प भी सुझा रहे हैं.

Also Read: झारखंड: खरीफ के मौसम में सूखे की मार झेल चुके किसानों को रबी फसल से थीं उम्मीदें, कम बारिश ने बढ़ायी परेशानी

बच्चों के लिए फरिश्ता हैं राजकुमार

सुलिश मरांडी कहते हैं कि वे बहुत गरीब परिवार से हैं. कोई फरिश्ता ऐसा मिलेगा, जो हमें इस तरह से अचानक पहुंचकर नि:शुल्क शिक्षा और शारीरिक अभ्यास करायेगा, सपने में भी नहीं सोचा था. हम औसत से भी कमजोर थे. पर हम जैसे युवाओं के लिए उन्होंने अतिरिक्त समय देकर आगे बढ़ाया है. नथानिएल की मानें, तो राजकुमार बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं. वे आदिवासी समाज से हैं. ट्यूशन नहीं कर पाते थे. बहुत कुछ सीखा रहे हैं. युवाओं के दिल में वे राज करने वाले हैं. उनके द्वारा सेना में बहाली से लेकर दूसरे तरह के जॉब के लिए प्रशिक्षण देने का प्रयास बिल्कुल अनूठा है.

भविष्य में बेहतर करने की जगी उम्मीद

छात्र तोषण कुमार कहते हैं कि एसएससी जीडी और प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए हम सब तैयारी कर रहे हैं. जीडी की परीक्षा बहुत अच्छी दी है. समझाने का तरीका इनका बिल्कुल अलग है. सभी के लिए अलग-अलग ध्यान देते हैं और किसी से फीस नहीं लेते. इससे बड़ी बात क्या होगी. सुमिता कहती हैं कि पहले वे ट्यूशन में पैसे देकर पढ़ते थे. अब तो पैसा भी नहीं लग रहा है. कई विषयों की पढ़ाई वे करा रहे हैं. बहुत सुविधा हम जैसे गरीब बच्चों को मिली है. भविष्य में बेहतर करने को लेकर उम्मीद भी जगी है.

Exit mobile version