Shaurya Gatha: वीर चक्र से सम्मानित ब्रिगेडियर रवि कुमार ने फतेहपुर पोस्ट की थी फतह
Shaurya Gatha: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मन की मांद में घुसकर उन्हें तहस-नहस करने के कारण ब्रिगेडियर रवि कुमार को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उन्होंने 1971 के अलावा 1965 की लड़ाई में भी अहम भूमिका अदा की थी. रवि कुमार का जन्म दुमका में 28 अगस्त, 1943 को एक संपन्न परिवार में हुआ था.
Shaurya Gatha: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मन की मांद में घुसकर उन्हें तहस-नहस करने के कारण ब्रिगेडियर रवि कुमार को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उन्होंने 1971 के अलावा 1965 की लड़ाई में भी अहम भूमिका अदा की थी. रवि कुमार का जन्म दुमका में 28 अगस्त, 1943 को एक संपन्न परिवार में हुआ था. इनके पिता सी एस प्रसाद एक आइपीएस अधिकारी थे. वे दुमका में ही सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे. उनके मन में बचपन से ही देशभक्ति की भावना का विकास होने लगा था. एनसीसी में उनका झुकाव देख कर पिता भी चाहते थे कि रवि कुमार सेना में ही कैरियर तलाशें. रांची के संत जॉन्स स्कूल में पढ़ाई के दौरान भी वह एनसीसी की हर गतिविधि में सक्रिय रहते थे. आपको बता दें कि वीर चक्र से सम्मानित ब्रिगेडियर रवि कुमार ने फतेहपुर पोस्ट फतह की थी.
इंडियन मिलिट्री एकेडमी की प्रवेश परीक्षा की थी पास
स्कूल की शिक्षा के बाद वह स्नातक की पढ़ाई करने के लिए मुजफ्फरपुर चले गये, जहां उन्होंने लंगट सिंह कॉलेज से इतिहास में बीए ऑनर्स किया, वहां भी उनका एनसीसी से जुड़ाव रहा. दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में पूरे बिहार से यह पहले छात्र थे, जिसने एनसीसी सीनियर डिविजन के दल का नेतृत्व किया, उन्होंने आइएमए (इंडियन मिलिट्री एकेडमी) की प्रवेश परीक्षा पास की और आशा के अनुकूल उनका चयन हो गया. प्रशिक्षण का कार्यकाल उम्मीद से कहीं अधिक कठिन था. जैसे आग के ताप से सोना और निखर जाता है, उसी तरह प्रशिक्षण की मुश्किलों ने उन्हें अपने देश की रक्षा के लिए और सशक्त बना दिया ट्रेनिंग के बाद उनकी पहली पोस्टिंग वर्ष 1963 में मेरठ में सिख लाइट इन्फैंट्री के तहत हुई.
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रवि कुमार को लगी थीं तीन गोलियां
1965 में उनकी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर के छम्ब सेक्टर (अखनूर) में हुई. ये इलाका पाकिस्तानी टैंकों के आने-जाने का रास्ता हुआ करता था. 1965 की लड़ाई सबसे पहले इन्हीं के पोस्ट से शुरू हुई थी. यहां पर छह बार आक्रमण हुआ, जिसमें पांच बार दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी, पर छठी बार भारतीय सेना को पीछे हटना पड़ा, जिसमें काफी क्षति भी हुई. इस लड़ाई में कुल 67 जवान और 2 ऑफिसर शहीद हुए. रवि कुमार को भी तीन गोलियां लगीं. 14 दिनों तक वह घास के मैदान में रहे, उसके बाद भारतीय सेना ने उन्हें खोज कर अस्पताल में भर्ती कराया. पूरी तरह से स्वस्थ न होने के बावजूद आखिरी लड़ाई के लिए उन्होंने हामी भरी. छम्ब सेक्टर के पूर्वी क्षेत्र में दोनों ओर फैले 3376 मीटर लंबी काली धार की पहाड़ी को जीता था.
तीनों पाकिस्तानी सैनिक ढेर
घायल होने के बावजूद अपने जुनून के साथ शिखर पर पहुंचने वाले वह पहले सेनानी थे. वहां पहुंचते ही उन्होंने अपने आपको तीन पाकिस्तानी सैनिकों से घिरा पाया. उनकी गन उनके बेल्ट के पिछले हिस्से में बंधी हुई थी, इसीलिए उनके पास इतना समय नहीं था कि वह इसे निकालकर इसका प्रयोग कर सकें. दूसरी तरफ, पाकिस्तानी सैनिक आपस में बात कर रहे थे कि यह एक अफसर है. इसे जान से मारने की बजाए जिंदा पकड़ना हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद रहेगा. यह भविष्य में हमारे काफी काम आ सकेगा. इस वार्तालाप ने उन्हें अपना गन निकालने का मौका दे दिया और तब तक दो भारतीय जवान भी वहां आ पहुंचे. कुछ ही पलों की गोलीबारी के बाद तीनों पाकिस्तानी सैनिक वहीं ढेर हो गये और उस पोस्ट के ऊपर तिरंगा लहराने लगा.
मेजर के पद पर थे रवि कुमार
1971 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में रवि कुमार मेजर के पद पर थे. लड़ाई में मेजर रवि, सिख लाइट दल की एक कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे, जिसे पश्चिमी भाग के एक दुश्मन के पोस्ट (फतेहपुर) पर कब्जा करने की जिम्मेवारी मिली थी. संकरे रास्ते के कारण चढ़ाई दल कई दस्तों में बंट गया और वह सबसे आगे वाले दस्ते का नेतृत्व कर रहे थे. दुश्मन के बंकर से मीडियम मशीनगन द्वारा भीषण फायरिंग ने दस्तों का मार्ग अवरुद्ध कर रखा था. इस मशीनगन के मुंह को बंद करने की महत्ता को समझते हुए बिना अपनी जान की परवाह किये, वह धीरे-धीरे रेंग कर वहां पहुंचे और दुश्मन के बंकर पर ग्रेनेड फेंक दिया. वहां धमाका हुआ. इसके तुरंत बाद ही दुश्मन के पोस्ट पर जाकर उसके सैनिकों को भारी क्षति पहुंचाते हुए वहां कब्जा कर लिया. इस पूरे मिशन में रवि कुमार ने उच्च स्तर की वीरता, दृढ़ निश्चय एवं नेतृत्व का प्रदर्शन किया. इस ऑपरेशन को कैक्टस लिली नाम दिया गया. 12 दिसम्बर 1971 को ब्रिगेडियर रवि को इस जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए भारत सरकार द्वारा वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
बेटा है सेना में अफसर
उनके परिवार में उनकी पत्नी नीलिमा कुमार और दो बेटे हैं. नीलिमा को अपने पति की तरह ही देश से काफी लगाव है. इसीलिए अपने बड़े बेटे को उन्होंने डॉक्टर, इंजीनियर की जगह सेना में अफसर बनने की सलाह दी. अपनी मां की सलाह और पिता को आदर्श मानते हुए वह बेटा आज भारतीय नौ सेना में कमांडर के पद पर कार्यरत है. उसकी पोस्टिंग अभी नयी दिल्ली स्थित नौ सेना के मुख्यालय में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर के तौर पर है. छोटा बेटा न्यूयार्क में कार्यरत है. सेना की नौकरी के दौरान रवि कुमार का तबादला हुआ करता था. पत्नी नीलिमा जहां भी जातीं, स्थानीय छात्रों को पढ़ाने में लग जातीं. उन्होंने एमए, बीएड की पढ़ाई की है. झारखंड के वीर चक्र विजेताओं में ये एकमात्र जीवित सेनानी हैं. ब्रिगेडियर रवि का नाम भारतीय सेना के इतिहास में उनकी दिलेरी और बहादुरी के कारण दर्ज है.
Posted By : Guru Swarup Mishra