केंद्रीय रेशम बोर्ड ने 300 किसान के बीच किया था तीस हजार अंडे का वितरण
प्रतिनिधि, काठीकुंडसामान्य खेती के साथ प्रखंड के हजारों कृषक परिवार लंबे समय से तसर पालन से जुड़ कर अच्छी आमदनी अर्जित कर रहे हैं. वर्ष में दो बार तसर की खेती की जाती है. पहली फसल को सुरक्षित रखा जाता है, ताकि दूसरी फसल के लिए ज्यादा से ज्यादा तसर के बीज उपलब्ध हो पाये. दूसरे फसल की कटाई के बाद तसर कोसो से धागा निकालने का काम किया जाता है, जिससे सिल्क के वस्त्रों का निर्माण होता है. धान, सब्जी व अन्य मौसमी कृषि के साथ अब यहां के किसान तसर पालन पर भी काफी ध्यान देते है. दो महीने की मेहनत से किसान हजारों की आमदनी कर लेते हैं. तसर पालन के शुरुआती दिनों में इस ओर कृषक ज्यादा ध्यान नहीं देते थे,लेकिन अच्छी आमदनी होती देख किसानों का तसर पालन के प्रति झुकाव बढ़ता गया. वर्तमान समय की बात करे तो काठीकुंड प्रखंड में तसर पालन से जुड़े कृषकों की तादाद 3500 से ज्यादा है, जो या तो केंद्रीय रेशम बोर्ड या झारखंड रेशम बोर्ड या फिर प्रदान संस्था से जुड़ कर तसर पालन में लगे हुए हैं. केंद्रीय रेशम बोर्ड, भारत सरकार के अधीनस्थ बुनियादी बीज प्रगुणन व प्रशिक्षण केंद्र, काठीकुंड द्वारा कृषि के दौरान समीक्षा करते हुए किसानों की आवश्यक मदद की जाती है. सितंबर से अक्तूबर तक के दूसरी फसल की कृषि में किसान जुट चुके हैं. केंद्रीय रेशम बोर्ड ने बोर्ड से जुड़े 300 किसान के बीच दूसरी फसल के लिए 30 हजार तसर के अंडों का वितरण किया गया है. बोर्ड द्वारा साढ़े 13 लाख तसर कोसो के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है.
डेढ़ करोड़ से ज्यादा तसर कोसो के उत्पादन का लक्ष्य
झारखंड रेशम बोर्ड ने क्षेत्रीय किसानों व बोर्ड से जुड़े कुल 2480 किसानों में कृषि हेतु तीन लाख छियानवे हजार छह सौ तसर अंडों का वितरण किया है. बोर्ड द्वारा डेढ़ करोड़ से ज्यादा तसर कोसो के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. काठीकुंड में कार्यरत गैर सरकारी संस्था प्रदान के अधीन एवेन तसर कीटपालक को-ऑपरेटिव धनकुट्टा से जुड़े 807 किसानों के बीच 1.55 लाख डीएफएल वितरण किया गया है. संस्था ने 66 से 70 लाख तसर कोसो के उत्पादन का अनुमान जताया है. कुल मिला कर सरकारी उपक्रमों व किसानों के मेहनत व प्रयासों से क्षेत्र में तसरपालन से जुड़े कृषकों का जीवन बेहतर होता नजर आ रहा है.फोटो
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