झामुमो में गयीं डॉ लुइस मरांडी का मुकाबला भाजपा के सुरेश मुर्मू से
भाजपा के सुरेश मुर्मू 2014 और 2019 के चुनाव में 2500 वोट से कम अंतर से हारे थे
रामगढ़. भारतीय जनता पार्टी एवं झारखंड मुक्ति मोर्चा सहित प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा जामा विधानसभा सीट के लिए प्रत्याशियों की घोषणा के बाद यहां की चुनावी तस्वीर साफ हो गयी है. रघुवर दास सरकार में राज्य की समाज कल्याण मंत्री रही भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ लुईस मरांडी को अपने पाले में लाकर झामुमो ने जामा से उम्मीदवार बना दिया है. जहां झामुमो के इस कदम से जामा से प्रत्याशी को लेकर बना सस्पेंस समाप्त हो गया है. वहीं भाजपा प्रत्याशी सुरेश मुर्मू का सामना एक बार फिर से एक हैवीवेट प्रत्याशी से होना सुनिश्चित हो गया है. वर्ष 2014 तथा 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुरेश मुर्मू का सामना झामुमो की कद्दावर उम्मीदवार सीता मुर्मू सोरेन से था. दोनों ही बार भाजपा प्रत्याशी सुरेश मुर्मू बहुत कम मार्जिन से हारे थे. जीत एवं हार का अंतर ढाई हजार वोट से भी कम का था. इस बार सीता सोरेन के झामुमो छोड़कर भाजपा में शामिल हो जाने से भाजपा प्रत्याशी सुरेश मुर्मू के लिए जामा की लड़ाई अपेक्षाकृत आसान मानी जा रही थी. झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की पारिवारिक सीट मानी जाने वाली जामा सीट से झामुमो द्वारा किसी स्थानीय कार्यकर्ता को प्रत्याशी बनाने या फिर शिबू सोरेन के परिवार से ही किसी को प्रत्याशी बनाने की मांग झामुमो कार्यकर्ता कर रहे थे. लेकिन झामुमो नेतृत्व ने डॉ लुईस मरांडी को आपने पाले में लाने के बाद उन्हें जामा से प्रत्याशी बनाकर भाजपा के सामने मास्टर स्ट्रोक चल दिया है. डॉ लुईस मरांडी को झामुमो द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद जामा का राजनीतिक परिदृश्य रोचक हो गया है. झामुमो के इस मास्टर स्ट्रोक से भाजपा प्रत्याशी सुरेश मुर्मू एक बार फिर से या कहें तीसरी बार भी कड़े संघर्ष में फंस गए हैं. पिछले तीन बार से झामुमो की टिकट पर जामा की विधायक चुनी जा रही स्व दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता मुर्मू सोरेन के परिवार एवं पार्टी छोड़कर भाजपा में चले जाने से बैक फुट पर नजर आने वाली झामुमो ने डॉ लुईस मरांडी को झामुमो में शामिल कराकर भाजपा को बड़ा झटका दे दिया है. जामा विधानसभा के राजनीतिक गलियारों में भाभी गयी तो दीदी आयी का जुमला खूब चल रहा है. वर्ष 2005 से ही जामा विधानसभा सीट पर झामुमो एवं भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होता आ रहा है. स्थानीय राजनीति पर नजर रखने वाले लोग 2024 के विधान सभा चुनाव में भी दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशियों के बीच सीधे मुकाबले की संभावना जता रहे हैं. लेकिन भाजपा एवं झामुमो के बीच होने वाले सीधे मुकाबले को कई राजनीतिक दल एवं उसके प्रत्याशियों के साथ-साथ निर्दलीय प्रत्याशी भी त्रिकोणीय या बहुकोणीय रूप देने की कोशिश कर रहे हैं. जामा से टिकट नहीं मिलने से नाराज भाजपा नेता राजू पुजहर भाजपा छोड़कर टिकट की आशा में जयराम महतो की झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा में चले गए थे. लेकिन उन्हें वहां से भी निराशा ही हाथ लगी. जयराम महतो की पार्टी ने राजू पुजहर की बजाय अपने पुराने कार्यकर्ता देबीन मुर्मू को ही टिकट देने की घोषणा कर दी है. झारखंड क्रांतिकारी लोकतांत्रिक मोर्चा के सूत्रों के अनुसार देबीन मुर्मू 28 को नामांकन प्रपत्र दाखिल करेंगे. ऐसे में राजू पुजहर के अगले कदम पर भी लोगों की नजरें हैं. उनके करीबी सूत्रों के अनुसार वह भी निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे. वैसे भाजपा नेतृत्व द्वारा राजू पुजहर को चुनाव नहीं लड़ने के लिए समझाने-बुझाने की कोशिश करने की बातें भी राजनीतिक गलियारों में तैर रही हैं. उधर, सीपीएम झारखंड में इंडी गठबंधन का हिस्सा नहीं है. सीपीएम ने भी जामा सीट से अपने प्रत्याशी को चुनाव लड़ाने की घोषणा कर दी है. सनातन देहरी को अपना प्रत्याशी बनाते हुए सीपीएम द्वारा उन्हें टिकट देने की घोषणा के बाद उन्होंने नामांकन भी कर लिया है. झारखंड क्रांति सेना की तरफ से छात्र नेता राजीव बास्की भी जामा से चुनाव लड़ रहे हैं. पेशे से अभियंता तथा कांग्रेस नेता रहे जामा के नाचन गड़िया ग्राम निवासी संजय बेसरा भी निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं. ऐसे में पूरी तस्वीर तो प्रत्याशियों द्वारा नाम वापसी की घोषणा के बाद ही साफ होगी. लेकिन पूरी संभावना इस बात की है कि जामा विधानसभा क्षेत्र में इस बार भी मुख्य मुकाबला भाजपा एवं झामुमो के प्रत्याशियों के बीच ही होगा तथा अन्य प्रत्याशी तीसरे- चौथे स्थान के साथ-साथ अपनी जमानत बचाने के लिए ही संघर्ष करते नजर आयेंगे.
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