दुमका, आनंद जायसवाल : जिन लोगों ने अपनी संस्कृति छोड़ दी है, उसने जनजाति की पहचान भी छोड़ दी है. इसलिए अब वे हमारा आरक्षण भी छोड़ दें. यह कहना है जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजकिशोर हांसदा का. उन्होंने कहा कि धर्मांतरण करने वालों अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची से हटाए जाने की मांग अब और तेज होकी. इसी मुद्दे पर जनजाति सुरक्षा मंच ने उपराजधानी दुमका व राजधानी रांची में डी-लिस्टिंग महारैली आयोजित करने का ऐलान कर दिया गया है. प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजकिशोर हांसदा ने बताया कि अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण, संरक्षण एवं विकास के फंड से संबंधित संवैधानिक अधिकार वे लोग छीन रहे हैं, जो इसके पात्र नहीं हैं. जो मानक पर खरे नहीं उतरते. ऐसे धर्मांतरित लोगों की संख्या कुल जनजातियों की 10 फीसद से भी कम है, लेकिन ये लोग 70 प्रतिशत के अधिकार हड़प रहे हैं. इस बड़े अन्याय के विरुद्ध जनजाति समाज ने आंदोलन खड़ा किया है.
10 लाख लोगों तक पहुंचा जनजाति सुरक्षा मंच
डॉ राजकिशोर ने कहा कि देश भर में मंच इस अहम विषय को लेकर वर्ष 2006 से लगातार आंदोलन कर रहा है. यह मंच अब तक 221 जिलों में जिलास्तरीय रैली एवं 14 राज्यों में प्रांतीय स्तर की रैली का आयोजन कर चुका है. इन रैलियों में लगभग 60 हजार गांवों में संपर्क अभियान चलाया गया. 10 लाख से अधिक लोगों की इसमें भागीदारी हुई. डॉ हांसदा ने कहा कि ऐसी ही रैली दुमका में 16 दिसंबर को व राजधानी रांची में 24 दिसंबर होने वाली है. कुछ अन्य राज्यों में भी प्रांतस्तरीय रैलियां होंगी. डॉ हांसदा ने बताया कि दुमका में होनेवाली महारैली में संताल परगना के छह जिलों के अलावा पश्चिम बंगाल के बीरभूम, बिहार के बांका, झारखंड के धनबाद, गिरिडीह जैसे जिले के 20 हजार से अधिक लोग इसमें शामिल होंगे. इस महारैली में मंच के राष्ट्रीय संरक्षक पद्मभूषण से सम्मानित करिया मुंडा बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगे.
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धर्मांतरण करने वालों की हो डी-लिस्टिंग
डॉ राजकिशोर ने कहा कि पुरखों की संस्कृति ही हमारे हक का संवैधानिक आधार है. हमारा मानना है कि जिन्होंने संस्कृति छोड़ दी, उन्होंने जनजाति की पहचान छोड़ दी. इसलिए अब वे हमारा आरक्षण भी छोड़ दें. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति की भांति अनुसूचित जनजाति से ईसाई और इस्लाम में धर्मांतरित सदस्यों की डी-लिस्टिंग होनी चाहिए, क्योंकि वे लोग कानूनन अल्पसंख्यक हो गए हैं. उन्होंने कहा कि यदि जनजातीय समाज की कोई महिला किसी दूसरे धर्म के पुरुष से शादी कर लेती है, तो उस महिला को जनजातीय समाज का जाति प्रमाण पत्र भी नहीं दिया जाना चाहिए.
पांच दशक से संसद में लंबित है डी-लिस्टिंग बिल
डॉ राजकिशोर ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि डॉ कार्तिक उरांव ने पांच दशक पहले इस विषय पर पहल की थी. वर्ष 1970 में उन्होंने डी-लिस्टिंग बिल को संसद में लाने की पहल की थी. उसके बाद से ही यह बिल अब तक लंबित है. प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिला संयोजक माईकल मुर्मू व कार्यक्रम के सह संयोजक संतोष पुजहर मौजूद थे.