जंगलों के भरोसे कट रही सबरों की जिंदगी
सुकलाड़ा का एक सबर परिवार जंगली कंद के साथ. गालूडीह : विलुप्त होती आदिम जनजाति के सबर परिवार की जिंदगी जंगलों से भरोसे कट रही है. इसकी जिंदगी जंगल से शुरू होकर जंगल में खत्म हो जाती है. कमोवेश सभी सबर बहुल गांवों का एक हाल है. सुबह होते ही सबर जंगल चले जाते हैं. […]
सुकलाड़ा का एक सबर परिवार जंगली कंद के साथ.
गालूडीह : विलुप्त होती आदिम जनजाति के सबर परिवार की जिंदगी जंगलों से भरोसे कट रही है. इसकी जिंदगी जंगल से शुरू होकर जंगल में खत्म हो जाती है. कमोवेश सभी सबर बहुल गांवों का एक हाल है. सुबह होते ही सबर जंगल चले जाते हैं. शाम ढलने पर जंगल से घर लौटते हैं. जंगल से लकड़ी, पत्ता, दतवन, जंगली आलू, कंद, जड़ी-बूटी आदि जंगल से सबर लाते हैं. उसे बेच कर परिवार चलाते हैं. एमजीएम के सुकलाड़ा, बड़ाकुर्शी के घुटिया, दारीसाई, बाघुडि़या पंचायत के केशरपुर, नरसिंहपुर, गुड़ाझोर, हेंदलजुड़ी के हलुदबनी, भूतियाकोचा, कालचिती पंचायत के बासाडेरा, डाइनमारी आदि सबर बस्तियों के सबरों की एक ही कहानी है.
जंगल है तो इनका जीवन है. रोजगार का दूसरा साधन उनके पास नहीं. खेतीहर योग्य बंदोबस्त भूमि पर दंबगों का कब्जा है. यह दूसरों के खेतों में काम करते हैं. खेती समाप्त होने पर जंगल जाते हैं. ऐसे तो सबरों के विकास और उत्थान के लिए कई सरकारी योजनाएं चल रही है. सबरों तक योजनाओं का लाभ पहुंचने के पहले बिचौलिया गटक जाते हैं. सबरों के उत्थान को लेकर प्रशासनिक टीम जांच रिपोर्ट बनाती है, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं होता है.