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झारखंड-बंगाल बॉर्डर के जल स्रोत सूखे, हाथी व वन्य जीव परेशान, पानी की तलाश में भटक रहे हाथियों के झुंड

हाथी गांवों के तालाबों में घुसकर नहा रहे हैं

मो.परवेज, गालूडीह

झारखंड-बंगाल बॉर्डर स्थित पहाड़ों के झरने व अन्य जलस्रोत सूख चुके हैं. इससे हाथियों व अन्य वन्य प्राणियों पर आफत आ गयी है. भीषण गर्मी में इंसान त्राहिमाम कर रहे हैं, वहीं जानवर बेहाल हैं. पानी की तलाश में जंगली हाथियों के झुंड इधर-उधर भटक रहे हैं. पहाड़ों की तलहटी पर कई जगह वन विभाग ने जंगली जानवरों के लिए चेकडैम, डोभा आदि बनाये हैं, जो सूख गये है. पहाड़ों के प्राकृतिक झरने में कुछ पानी है. यहां हाथी समेत अन्य वन्य जीव पानी पीने पहुंचते हैं. झरने से प्यास नहीं बुझती, तो हाथी पानी की तलाश में गांवों के तालाब व पहाड़ी नाले में पहुंच रहे हैं.

घाटशिला वन क्षेत्र के सुखना पहाड़ पर पुरना जोल, बांदरचुआ, निशि झरना, मिर्गीटांड़ झरना, लखाइसीनी झरना, धारागिरी झरना आदि में पानी कम हो गया है. कुछ पानी है, जिससे हाथिियों की प्यास नहीं बुझ रही है. हाथियों को नहाने की जगह नहीं मिल रही है. ऐसे में हाथी गांवों के तालाब में घुस कर नहाते हैं. बांदरचुआ झरना के पास जंगल में पानी बहता दिखा. इस झरने से काफी कम मात्रा में पानी निकल रहा है. इस झरना तक जाने के रास्ते में हाथी के पांव के निशान मिले हैं. ग्रामीण कहते है जंगली हाथी यहां पानी पीने आते हैं.

कालाझोर वन सुरक्षा समिति के दुलाल चंद्र हांसदा कहते हैं कि एक समय पुरनाजोल, बांदरचुआ, निशि झरना आदि पहाड़ी झरना में साल भर पानी रहता था. बीते कई साल से गर्मी में सूख जा रहा है. इससे सबसे ज्यादा परेशानी वन्य प्राणियों को हो रही है. यह बदलते जलवायु परिवर्तन का असर है. पर्यावरण संरक्षण और जंगलों की रक्षा से जल संकट दूर होगा. जहां साल जंगल अब भी बचे हैं, वहां झरने में कुछ बहुत पानी है. जहां साल जंगल उजड़ गये, वहां जलस्रोत भी खत्म हो रहा है. यह गंभीर संकट की ओर इशारा कर रहा है.

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