East Singhbhum : खरीद प्रक्रिया जटिल होने से बंगाल और स्थानीय व्यापारियों को कम दाम में धान बेच रहे किसान
झारखंड का धान जा रहा पश्चिम बंगाल, रोक पाने पर प्रशासन विफल, पूर्वी सिंहभूम जिले में 44 क्रय केंद्र खुलने हैं, कई अबतक नहीं खुले, जो खुले उसमें खरीदी कम, छह लाख क्विंटल धान खरीदी का लक्ष्य, 15 दिनों में 25 प्रतिशत भी खरीदी नहीं
प्रभात खबर पड़ताल
मो. परवेज/प्रकाश मित्रा, घाटशिला. पूर्वी सिंहभूम जिले में सरकारी स्तर पर खरीद की प्रक्रिया जटिल होने के कारण झारखंड का धान पश्चिम बंगाल जा रहा है. किसान स्थानीय बाजार के साथ बंगाल में धान बेच रहे हैं. इसे रोकने में प्रशासन विफल है. हालांकि, उपायुक्त से सभी बीडीओ और सीओ को दूसरे राज्यों में धान नहीं भेजे जाने की मॉनिटरिंग की जिम्मेवारी सौंपी है. इस बार जिले में 44 धान खरीद केंद्र खोलने का आदेश है. कई धान क्रय केंद्र अबतक नहीं खुले हैं. वहीं, खुले केंद्र में धान की खरीद अपेक्षाकृत कम है. इस बार जिले में छह लाख क्विंटल धान खरीद का लक्ष्य सरकार ने रखा है. 15 दिनों में (30 दिसंबर तक) 25 प्रतिशत भी धान खरीद नहीं हो पायी है. कई लैंपसों को जिला से आइडी और पॉश मशीन नहीं मिली है.सरकार प्रति क्विंटल 2400 रुपये दे रही, फिर भी 1600-1700 में बाहर धान बेच रहे किसान
राज्य सरकार ने इस बार प्रति क्विंटल धान के लिए 2300 रुपये और बोनस 100 रुपये देने की घोषणा की है. धान बेचने के सप्ताह भर के अंदर 50 प्रतिशत भुगतान की बात कही है. इसके बावजूद किसान खुले बाजार और बंगाल के व्यापारियों को 1600 से 1700 रुपये प्रति क्विंटल धान बेच रहे हैं.लैंपस में बेचने पर देर से होता है भुगतान
दरअसल, लैंपस में धान बेचने पर तुरंत भुगतान नहीं होता है. वहीं, बटाइदारों के पास जमीन का कागज नहीं होता है. छोटे और मध्यम स्तर के किसान को तुरंत पैसा नहीं मिलने से दिक्कत होती है. इसलिए वे खुले बाजार में धान बेचना पसंद कर रहे हैं. इसका लाभ बंगाल के व्यापारी उठा रहे हैं.बंटाइदार किसानों की अलग परेशानी
घाटशिला अनुमंडल के बहरागोड़ा, चाकुलिया, घाटशिला, धालभूमगढ़, मुसाबनी, डुमरिया, गुड़ाबांदा प्रखंड में धान की खेती करने वालों में बटाइदारों की संख्या अधिक है. छोटे व मध्यम स्तर के किसान जमीन बटाई (लीज) पर लेकर खेती करते हैं. उनके पास जमीन का कागज नहीं होता है. वहीं, लैंपस में धान बेचने पर जमीन का कागज जमा करना पड़ता है.बहरागोड़ा में दो बार धान की खेती करते हैं किसान
बहरागोड़ा प्रखंड को धान का कटोरा कहा जाता है. यहां के किसान साल में दो बार धान की खेती करते हैं. करीब 16,084 किसानों की आय का मुख्य स्रोत खेती है. इनके पास भंडारण की व्यवस्था नहीं है. धान की कटाई के बाद वहीं व्यापारियों को बेच देते हैं. इसी पैसे से अगली फसल की तैयारी करते हैं.ग्रीन गोला व्यवस्था खत्म होने से बढ़ी परेशानी
झारखंड बनने के पहले प्रत्येक पंचायत में ग्रीन गोला बना था, जहां किसान अपना धान रखते थे. बाजार में सही मूल्य मिलने पर बेचते थे. किसान ग्रीन गोला में कुछ धान रखकर बीज तैयार करते थे. यह योजना धीरे-धीरे रख-रखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील हो गयी. इसे जीवित करने की जरूरत है.अनुमंडल में प्रखंडवार धान खरीद की स्थिति
बहरागोड़ा
धान खरीद केंद्र : 07पंजीकृत किसान : 4834अब तक बेचा : 44 किसानों ने 3189 क्विंटलधान खरीद केंद्र : बहरागोड़ा व पाथरी (खुला), मानुषमुड़िया, जयपुरा, केसरदा, पाथराघाटा और मुटूरखाम (बंद) .
चाकुलिया
धान खरीद केंद्र : 08पंजीकृत किसान : 5207 (चंदनपुर को छोड़)
अब तक बेचा : 11 किसानों ने लगभग 1025 क्विंटलधान खरीद केंद्र : चाकुलिया, लोधाशोली (खुला), जोड़ाम, रुपुषकुंडी, कलापाथर, केरुकोचा, चंदनपुर और मुटुरखाम (बंद)
धालभूमगढ़
धालभूमगढ़ व मोहलीशोल लैंपस में धान खरीद नहीं हो रही हैबेहड़ा लैंपस में 800 क्विंटल खरीद हुई
पावड़ा-नरसिंहगढ़ लैंपस में 8.54 क्विंटल खरीदा गयागुड़ाबांदा
धान खरीद केंद्र : 03पंजीकृत किसान : 1788
अब तक बेचा : 44 किसानबनमाकड़ी लैंपस अबतक खुला नहीं है.मुसाबनी
धान खरीद केंद्र : सात (छह खोले गये)धोबनी में केंद्र नहीं खुला है.पंजीकृत किसान : 1620
अब तक करीब 80 किसानों ने 3,500 क्विंटल धान बेचा है.डुमरिया
धान खरीद केंद्र : 10 (चार नहीं खुले हैं)खड़िदा, नरसिंहबहाल, बाकुलचंदा, खैरबनी, नरसिंहबहाल, बड़ाबोतला, डुमरिया लैंपस खुला.खैरबनी व बाकुलचंदा में एक- एक हजार क्विंटल धान खरीद हुई है.
घाटशिला
धान खरीद केंद्र : चार (सिर्फ एक खुल सका है)कुल निबंधित किसान : 1388
घाटशिला लैंपस में नौ किसानों ने 506 क्विंटल 46 किलो धान बेचाआइडी नहीं मिलने से तीन धान क्रय केंद्र नहीं खुल सके हैं.…क्या कहते हैं जिम्मेदार…
जिले में 44 धान खरीद केंद्र खोले जाने हैं. इनमें अधिकतर केंद्र खुल गये हैं. कुछ उद्घाटन के इंतजार में है. धान कोई कहीं बेचे, इसपर पाबंदी नहीं लगा सकते हैं. हां, यह सही है कि बैठक में डीसी साहब ने सभी बीडीओ और सीओ को निर्देश दिया कि बाहर के राज्यों में धान ना जाये. इस पर मॉनिटरिंग करें. बटाईदार का एक अहम मुद्दा है. जमीन का कागज नहीं होने से मध्यम और छोटे स्तर के किसान लैंपसों में सरकारी दर पर धान नहीं बेच पाते हैं. इस मामले को जिला में रखेंगे. किसानों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि अपनी उपज को लैंपसों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचें. –आशा टोप्पो
, जिला सहकारिता पदाधिकारी, पूर्वी सिंहभूम————————————————राइस मिलों और लैंपस कमेटी के बीच तालमेल कर धान की खरीद की जा रही है. जहां गोदाम भर गये हैं, वहां मिल मालिकों को धान उठाव का निर्देश दिया गया है. मिलर पहले चावल एफसीआइ को देगा, फिर टैग किये गये लैंपस से धान मिल तक जायेगा. बटाईदारों की समस्या को जिला में रखेंगे. जमीन का कागज नहीं होने से छोटे-मध्यम स्तर के किसान धान लैंपस में बेचने के बजाय खुले बाजार और बंगाल के व्यापारियों को दे देते हैं. बंगाल में धान जाने या खुले बाजार में बिक्री पर स्थानीय प्रशासन को रोक लगानी है.
–सलमान जफर खिजली
, जिला आपूर्ति पदाधिकारी, पूर्वी सिंहभूमडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है