East Singhbhum News : घाटशिला के चालकडीह में 42 साल पहले बने इंदिरा आवास जर्जर, प्लास्टिक टांगकर रहते हैं 500 परिवार

समस्याओं से जूझ रहे चालकडीह के लोग, मजदूरी से करते हैं भरण-पोषण

By Prabhat Khabar News Desk | January 8, 2025 12:09 AM
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अजय पाण्डेय, घाटशिला

वर्ष 1983 में आइसीसी वर्कर्स यूनियन के महासचिव बासुकी सिंह ने नयी दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट कर मनोहर कॉलोनी और चालकडीह में इंदिरा आवास की मांग की थी. इसके बाद चालकडीह में वर्ष 1983 में इंदिरा आवास बने थे. आज उक्त आवास जर्जर हो चुके हैं. फिलहाल, करीब 500 परिवार उक्त इंदिरा आवासों में प्लास्टिक टांग कर रहते हैं. कड़ाके की ठंड में करीब 3000 की आबादी परेशान है. चालकडीह के ग्रामीणों ने कहा कि मेहनत मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण होता है.

चालकडीह में पहले 50-70 रिक्शा थे, अब पांच बचे हैं

बताया जाता है कि पूर्व में चालकडीह के अधिकतर लोग पहले रिक्शा चलाते थे. अब चालकडीह में लगभग पांच रिक्शा बचे हैं. टेंपो और टोटो के कारण रिक्शा की मांग नहीं के बराबर है. चालकडीह के रिक्शा चालकों का कहना है कि 20 वर्ष पूर्व यहां लगभग 50 से 75 रिक्शा थे. बड़े लोग रिक्शा खरीद कर भाड़े पर चलाने के लिए देते थे. धीरे-धीरे समय बदला और रिक्शा की मांग कम होती गयी. चालकडीह रिक्शा कॉलोनी के नाम से जाना जाता था. अभी चालकडीह में 10 टोटो और टेंपो हैं.

सालों भर जल संकट, गर्मी में चापाकल पर लगती है कतार

चालकडीह की सबसे बड़ी समस्या पेयजल की है. गर्मी के दिनों में चापाकलों पर लंबी लाइन लगाने के बाद पानी नसीब होता है. चालकडीह के राजेश कालिंदी, चित्तो कालिंदी, गणेश कालिंदी, युद्धिष्ठिर कालिंदी, विकास बेहरा, निगम कालिंदी ने बताया कि ठंड में पानी की समस्या कम रहती है. गर्मी के दिनों में चापाकलों पर लंबी लाइन के बाद पानी मिलता है.

तीनों जलमीनार खराब, सात चापकलों में तीन बेकार

ग्रामीणों ने बताया कि चालकडीह में तीन जलमीनार थी. सभी खराब हो गयी. सात चापाकल हैं. इनमें तीन चापाकल खराब हैं. चार चापाकलों से चालकडीह के ग्रामीण प्यास बुझा रहे हैं. ग्रामीणों ने मांग की है कि यहां 1000 लीटर की जलमीनार बन जाती है, तो सभी को पीने का पानी मिल सकता है.

हर घर में शौचालय, फिर भी बाहर जाते हैं लोग

चालकडीह के ग्रामीणों ने कहा कि आज घर-घर में शौचालय है, मगर पानी की समस्या है. इसके कारण लोग बाहर शौच जाते हैं. ग्रामीणों ने मांग की है कि तीन फीट की जगह 10 फीट गड्ढा कर शौचालय का निर्माण होता, तो बेहतर होता.

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