प्रभात खबर सरोकार
मो.परवेज, घाटशिलाझारखंड बने 24 साल हो गये, फिर भी लोक कलाकार हाशिये पर हैं. लोक कलाकारों को चार हजार रुपये मासिक भत्ता देने की घोषणा हुई थी, पर आजतक नहीं मिला. कई लोक कलाकार अब मजदूरी और खेती करने लगे हैं. वहीं कुछ कलाकार मवेशी चराने लगे हैं. कोरोना काल से लोक कलाकारों की स्थिति और खराब होने लगी, जो जारी है. झारखंड मानभूम लोक कला संस्कृति गरम-धराम झुमूर आखड़ा से जुड़े कलाकार मनोरंजन महतो कहते हैं कि पूर्वी सिंहभूम जिले में करीब 19 हजार लोक कलाकार हैं. राज्य सरकार से सहयोग नहीं मिल रहा है. कई कलाकर मजदूरी करने को विवश हैं.लोक कलाकार झुमूर, छऊ नृत्य, दसाइं नाच, रिझा, पाता नाच, सरहुल, बाहा नाच, करम. नाटुआ, बुलबुली, कांठी नाच, घोड़ा नाच, शिकारी नाच, टुसू गीत, जाबा आदि से जुड़े हैं. लोक कलाकारों ने कहा कि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम सरकार लोक कलाकारों को मासिक भत्ता देती है. झारखंड में सिर्फ घोषणा हुई.लोक कला व कलाकार नहीं बचे, तो झारखंड नहीं बचेगा
लोक कलाकार मनोरंजन महतो, गौरचंद्र सिंह ने झुमूर और बाउल गाकर अपना दर्द बयां करते हैं. कलाकार सुनीता गोप, रेणुका गोप, सुचिता गोप, गंभीर कालिंदी, निरंजन महतो, डोमन चंद्र महतो, महेंद्र महतो, राखोहरी महतो, रास बिहारी महतो, बादल महतो, विजय महतो, चित्तरंजन महतो, शिवनाथ सिंह आदि कहते हैं झारखंड की मिट्टी में लोक कला है. अगर लोक कला व कलाकार नहीं बचे, तो झारखंड नहीं बचेगा.
…तो रैली व जुलूस में मांदर व धमसा कौन बजायेगा
सरकार को सोचना चाहिए. लोक कलाकार नहीं रहेंगे, तो नेताओं की रैली और जुलूस में कौन मांदर और धमसा बजायेगा. धालभूमगढ़ के चतरो निवासी झुमूर से लोक कलाकार अश्वनी महतो अब मजदूरी करने को विवश है.लोक कालाकारों की मुख्य मांगें
मानभूम लोक कला संस्कृति गरम धाराम झुमुर अखाड़ा से जुड़े लोक कलाकार वर्षों से कई मांग उठाते रहे हैं. विधायक से सीएम तक मांगपत्र सौंपा. अबतक कोई सुनवाई नहीं हुई. मांगों में पश्चिम बंगाल और ओडिशा की तर्ज पर लोक कलाकारों को मासिक भत्ता देने, सरकारी परिचय पत्र देने, स्कूलों और कॉलेजों में केजी से पीजी तक लोक संस्कृति की पढ़ाई कराने, झुमूर गीत को झारखंडी का जातीय संगीत का दर्जा देने, लोक संस्कृति और कला के जनक रहे स्व बरजू राम तांती की मूर्ति को झारखंड विधान सभा परिसर में स्थापित करने, लोक कलाकारों को सरकारी स्तर पर साल भर में पांच-छह कार्यक्रम देने, लोक कला की एकेडमी खोलने की मांग शामिल हैं.
हमारा दर्द कोई सुनता ही नहीं, कला-संस्कृति मंत्रालय क्यों बना
लोक कलाकारों ने कहा कि राज्य में सांस्कृतिक कार्यक्रम होने पर बाहर के कलाकारों को बुलाया जाता है. स्थानीय लोक कलाकार मंत्रियों, सांसद-विधायकों के गांव आने पर ढोल-धमसा बजाकर और पारंपरिक नृत्य कर स्वागत करते हैं. हमारी इच्छा है कि सरकार हमारी समस्या सुने और दूर करे. अगर सरकार लोक कलाकारों के हित में काम करना नहीं चाहती है, तो फिर कला-संस्कृति मंत्रालय क्यों बनाया ? इसे समाप्त करने की मांग पर लोक कलाकार आंदोलन करेंगे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है