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मुसाबनी : विधायक-डीसी के आश्वासन के 42 माह बाद भी सुविधाओं के लिए तरस रहे सूर्याबेड़ा के ग्रामीण, 16 दिसंबर, 2020 को जनता दरबार में खूब घोषणाएं हुई थीं

ग्रामीणों के मुताबिक खेती और जंगल ही गांव के लोगों के आजीविका के साधन हैं. आवागमन के लिए सड़क निर्माण नहीं होने से ग्रामीण परेशानी उठा रहे हैं.

अशोक सथपति, मुसाबनी

मुसाबनी प्रखंड के बीहड़ क्षेत्र में बसे सूर्याबेड़ा गांव के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. 16 दिसंबर, 2020 को विधायक रामदास सोरेन की पहल पर तत्कालीन उपायुक्त सूरज कुमार ने जनता दरबार लगाकर ग्रामीणों की समस्याएं सुनीं थी. गांव में सड़क, पेयजल ,स्वास्थ्य, शिक्षा ,बिजली मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था. 42 माह बाद भी अधिकतर काम पूरे नहीं हुए हैं. ग्रामीणों के मुताबिक बिजली और पेयजल की सुविधा मिली है. मनरेगा से पशु शेड, दीदी बाड़ी योजनाओं का काम हुआ है. मनरेगा से गांव के लोगों को रोजगार मिला है. पेयजल के लिए जलमीनार बनी. अब गड्ढे का पानी नहीं पीना पड़ता है. खेती और जंगल ही गांव के लोगों के आजीविका के साधन हैं. आवागमन के लिए सड़क निर्माण नहीं होने से ग्रामीण परेशानी उठा रहे हैं.

आवागमन : गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं

गांव तक जाने के लिए आज भी सड़क नहीं है. लोग पहाड़ी रास्ते से आवागमन करते हैं. ऊपर टोला में विधायक निधि से 400 फीट पीसीसी सड़क तीन वर्ष में पूरी नहीं हुई. रास्ते पर पत्थर बिछाकर छोड़ा गया है. दो साल से सड़क निर्माण काम बंद है. पैदल, बाइक और साइकिल से चलने में ग्रामीणों को दिक्कत होती है.

स्वास्थ्य : बीमार को खटिया पर ला जाते हैं ग्रामीण

गांव में एंबुलेंस सेवा शुरू नहीं हुई. बीमार और गर्भवती महिलाओं को खटिया पर ढोकर पहाड़ी रास्ते से काकड़ा झरना सड़क तक ले जाना पड़ता है. इसके बाद वाहन से अस्पताल पहुंचाया जाता है.

बिजली : 10 दिनों से अंधेरे में है सूर्याबेड़ा

ग्रामीणों के मुताबिक गांव में बिजली आयी, लेकिन अक्सर फ्यूज उड़ने से बिजली नहीं रहती है. पिछले 10 दिनों से सूर्याबेड़ा में बिजली नहीं है. लाइन का जंफर क्षतिग्रस्त हो गया है. गर्मी में बिना बिजली के लोग रह रहे हैं. बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है. फ्यूज ठीक करने के लिए प्रत्येक घर से 10 रुपये कर चंदा कर मिस्त्री को देते हैं.

शिक्षा : मिनी आंगनबाड़ी केंद्र नहीं बना

गांव के युवाओं के मुताबिक, जनता दरबार में गांव के पढ़े लिखे युवाओं को प्रशिक्षण देकर रोजगार की व्यवस्था करने की घोषणा पूरी नहीं हुई है. गांव में मिनी आंगनबाड़ी केंद्र निर्माण की घोषणा अब तक अधूरी है.

तकनीक : पहाड़ चढ़ने पर मिलता है नेटवर्क

गांव में मोबाइल नेटवर्क की समस्या है. पहाड़ पर चढ़ने से टावर मिलता है. ऊपर टोला में 36 परिवार रहते हैं. अधिकतर संताल, हो और आदिम जनजाति के हैं. नीचे टोला में लगभग एक दर्जन परिवार रहते हैं. ऊपर और नीचे टोला अब तक सड़क से नहीं जुड़ी है.

पेयजल : डीसी के शिलान्यास के बाद भी कुआं अधूरा

जनता दरबार में तत्कालीन उपायुक्त सूरज कुमार ने पेयजल संकट के समाधान के लिए मनरेगा के तहत कुआं निर्माण का शिलान्यास किया था. आज भी कुआं का निर्माण अधूरा है.

आवास : फूस की झोपड़ी में रह रहा सबर

आदिम जनजाति के लंबू सबर का परिवार फूस की झोपड़ी में रहा है. जनता दरबार में तत्कालीन बीडीओ सीमा कुमारी ने गांव को गोद लिया था. प्रत्येक वर्ष सीमा कुमारी गांव में पहुंचकर स्कूली बच्चों के साथ गणतंत्र और स्वाधीनता दिवस मनाती थीं.

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