गालूडीह. गालूडीह थाना के सबर बस्ती धोड़ांगा वर्षों से मुख्यधारा से कटा है. इस गांव तक पहुंच पथ नहीं. यहां से सबर खड़ियाडीह या बालालगोड़ा गांव होकर तालाब व खेत की मेढ़ से आना-जाना करते हैं. बरसात में यह गांव टापू में तब्दील हो जाता है. मुख्यधारा से कटे इस गांव के सबरों का शुक्रवार को सब्र का बांध टूट गया. ग्राम प्रधान बड़ासुकरा सबर के नेतृत्व में परिवार व बच्चों के साथ सबर खेत से होकर बागालगोड़ा गांव पहुंचे और झारखंड से बंगाल जाने वाली मुख्य सड़क पर बैठ कर जाम कर दिया. गांव तक सड़क निर्माण की मांग को लेकर मुख्य सड़क पर बैठ सबरों ने विरोध-प्रदर्शन किया. सबर लाठी-डंडा और तीर-धनुष लेकर पहुंचे थे. सड़क पर लकड़ी और बांस रखकर सबर बच्चे, पुरुष व महिलाएं सभी बैठ गये.
चिलचिलाती भीषण गर्मी के बावजूद मांग पर अड़े रहे सबर
चिलचिलाती गर्मी के बावजूद सबर बस्ती के ग्रामीण अपनी मांग पर अड़े रहे. सड़क की मांग को लेकर सबरों ने रोड नहीं तो वोट नहीं का नारा बुलंद किया. सुबह नौ बजे ही धोडांगा सबर बस्ती के ग्रामीण बागालगोड़ा के पास सड़क पर बैठ कर आंदोलन शुरू किया, जिससे आवागमन ठप हो गया. सड़क जाम में ग्राम प्रधान बड़ासुकरा सबर, शिशिर सबर, मंगलू सबर, बागाल सबर, कालू सबर, चैतन्य सबर, फूलचंद सबर समेत अनेक सबर महिला-पुरुष व बच्चे शामिल थे. सूचना पाकर दोपहर करीब दो बजे के बाद बीडीओ यूनिका शर्मा और गालूडीह थाना प्रभारी कुमार इंद्रेश जाम स्थल पर पहुंचे और सबरों को बीडीओ ने भरोसा दिया कि चुनाव समाप्त होने पर सर्वे कर सड़क निर्माण के दिशा में पहल करेंगे. तब जाकर दोपहर तीन बजे जाम हटा और सबर अपने घर लौटे.
वर्षों से कर रहे सड़क निर्माण की मांग, कोई सुनने वाला नहीं
धोडांगा सबर बस्ती के ग्राम प्रधान बड़ासुकरा सबर ने बताया कि कई साल से गांव तक पहुंच पथ निर्माण की मांग कर रहे हैं. पर किसी ने भी हम सबरों की फरियाद नहीं सुनी. बस्ती में आने-जाने के लिए ग्रामीणों को काफी दिक्कतें हैं. शिकायत के बावजूद भी हमारी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है. धोडांगा सबर बस्ती में करीब 20 सबर परिवार में 65 मतदाता है. रोड नहीं तो इस बार हम लोग वोट भी नहीं देंगे.
खटिया पर मरीज को ले जाते हैं मुख्य सड़क तक
धोडांगा सबर बस्ती तक जाने के लिए कोई भी सड़क नहीं बनी है. सड़क नहीं होने से ग्रामीणों को लंबे समय से काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सड़क के अभाव में स्कूली बच्चों और ग्रामीणों को आने-जाने में दिक्कत होती है. जब कोई बीमार पड़ता है तो खटिया में ढोकर मुख्य सड़क तक खेत से होकर आते हैं फिर वाहन से अस्पताल पहुंचाते हैं. बरसात में धान लग जाने से मेढ़ पर चलना भी मुश्किल होता है. बरसात में गांव टापू बन जाता है. आपातकालीन स्थिति में एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां भी बस्ती नहीं पहुंच सकती. अब तक कई मरीजों की मौत भी हो चुकी है. ग्रामीणों ने इससे पहले भी कई बार प्रदर्शन किया, लेकिन अब तक किसी जनप्रतिनिधि या अधिकारी ने कोई ध्यान नहीं दिया.
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