East Singhbhum : डुमरिया के लांगो से शुरू हुआ था नक्सलियों के खिलाफ सेंदरा अभियान
2-3 अगस्त, 2003 की रात ग्रामीणों के हमले में नौ नक्सली मारे गये थे
मो.परवेज, घाटशिलाझारखंड में नक्सलियों के खिलाफ सेंदरा अभियान सबसे पहले पूर्वी सिंहभूम जिले के डुमरिया के बीहड़ गांव लांगो से शुरू हुआ था. 2-3 अगस्त, 2003 की रात ग्रामीणों के हमले में नौ नक्सली मारे गये थे. इसके बाद डुमरिया से नक्सलियों का पांव उखड़ गया था. आज तक डुमरिया नक्सल मुक्त है. इसके बाद लगातार सेंदरा अभियान डुमरिया के विभिन्न गांवों में चलता रहा. यहां से अभियान गुड़ाबांदा थाना क्षेत्र के गांवों में चलता रहा. अगस्त माह में सेंदरा अभियान चला, जिसमें 20-22 नक्सली मारे गये थे. ग्रामीणों का नेतृत्व नागरिक सुरक्षा समिति कर रही थी.
ग्रामीणों की जमीन पर झंडा गाड़कर खेती नहीं करने देते थे
तब नक्सलियों का ग्रामीणों पर अत्याचार चरम पर था. ग्रामीणों की जमीन पर लाल झंडा गाड़ नक्सली खेती करने से रोक रहे थे. घर की बहू-बेटियों पर उनकी नजर थी. आदिवासी समाज बर्दाश्त नहीं कर पाया और नक्सलियों के खिलाफ सेंदरा अभियान शुरू कर दिया. नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा लेने के लिए नागरिक सुरक्षा समिति (नासुस) का गठन किया गया था. नासुस के नेतृत्व में ग्रामीण नक्सलियों के लिए गोलबंद होने लगे थे.गांव में नक्सली के घुसते ही घंटी बजा देते थे ग्रामीण
ग्रामीणों ने बैठक कर तय किया था कि जिस गांव में नक्सली घुसेंगे, तब घंटी बजा देना है. सभी को घंटी दी गयी थी. 2-3 अगस्त 2003 को बारिश के बीच नक्सली दस्ता डुमरिया के लांगो गांव पहुंचा. गांव की पार्वती गोप नामक महिला ने घंटी बजा दी. घंटी की आवाज आते ही ग्रामीण तीर-धुनष, कुल्हाड़ी, फरसा आदि पारंपरिक हथियार से लैस होकर घरों से निकल पड़े. लांगों में नौ नक्सलियों को पहले रस्सी से बांध दिया, फिर तीर-धनुष समेत अन्य पारंपरिक हथियारों से पीट-पीटकर मार दिया. तब पूर्वी सिंहभूम के एसपी डॉ अरुण उरांव थे. सूचना पर सुबह वे दलबल के साथ लांगो पहुंचे थे.घटना के बाद घोषणाएं हुईं, लेकिन काम नहीं हुआ
लांगो की घटना देश में चर्चित हो गयी थी. पहला गांव था, जहां के लोगों ने हथियारबंद नक्सलियों से मोर्चा लिया था. इस घटना के बाद नेताओं और प्रशासनिक पदाधिकारी का लांगो आने का सिलसिला चलता रहा. कई घोषणाएं हुईं, पर लांगो कल जैसा था, आज भी वैसा है. एक प्रावि था उसे भी स्कूल विलय के समय दूसरे जगह विलय कर दिया गया. विकास के नाम गांव में सिर्फ एक पीसीसी सड़क बनी है.अभियान में मारे गये नक्सली
टूटी मेलगांडी, बोजाय उर्फ खोका, पंचमी, गौरी, लक्ष्मी मुंडा, नोना, विकास, राम हेंब्रम, भोजाय मुर्मू, लक्ष्मी मुंडा.31 मार्च, 2003 को भागाबांधी में हुई थी नासुस की पहली बैठक
डुमरिया के भागाबांधी हाट मैदान में 31 मार्च, 2003 को नागरिक सुरक्षा समिति की पहली बैठक हुई थी. इसमें नक्सलियों के खिलाफ कमेटी बनी, जिसका नाम नागरिक सुरक्षा समिति रखा गया. इसी बैठक में नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा लेने पर रणनीति बनी थी. कमेटी के पहले अध्यक्ष शंकर चंद्र हेंब्रम रहे, जो फिलहाल बीमार चल रहे हैं. वहीं महासचिव धनाई किस्कू की वर्ष 2009 में नक्सलियों ने मुसाबनी में गोली मारकर हत्या कर दी थी. कोषाध्यक्ष शैलेंद्र बास्के थे.पुलिस ने नासुस को तब काफी सहयोग किया था
कमेटी गठन के बाद से ग्रामीणों को गोलबंद कर नक्सलियों के खिलाफ नासुस मोर्चा लेने लगा. पुलिस ने नासुस को तब काफी सहयोग किया था. नक्सलियों ने नासुस से जुड़े घाटशिला लोकल कमेटी के अध्यक्ष संतोष महतो की 2006 में अपहरण कर हत्या कर दी. इसके बाद नासुस को संरक्षण देने के आरोप में 4 मार्च 2007 को बाघुड़िया में भरी सभा में सांसद सुनील महतो की हत्या कर दी गयी. बाद में डुमरिया और गुड़ाबांदा के नासुस से जुड़े अधिकतर सदस्य मुसाबनी में आकर रहने लगे थे. सेंदरा के बाद डुमरिया से नक्सलियों का पांव उखड़ गया. गुड़ाबांदा से प्रमुख नक्सली रहे कान्हू मुंडा समेत अन्य के सरेंडर कर देने से गुड़ाबांदा से 2017 के बाद नक्सलवाद खत्म हो गया.ग्रामीणों के सहयोग से पुलिस ने आठ नक्सलियों को मार गिराया था
अगस्त, 2008 में डुमरिया के भीतरआमदा में ग्रामीणों के सहयोग से पुलिस ने आठ नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया था. नक्सलियों के गांव में घुसने की सूचना देने पर पुलिस अलर्ट हुई और घेराबंदी कर आठ नक्सलियों को मार गिराया था. तब पूर्वी सिंहभूम के एसपी नवीन सिंह थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है