जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम के परसुडीह क्षेत्र के गदड़ा में शुक्रवार को दलमा बुरू सेंदरा समिति की बैठक में सेंदरा की तारीख पर अंतिम मुहर लगी. इसके साथ ही पहला निमंत्रण पत्र भी सौंपा गया. बैठक की अध्यक्षता दलमा राजा राकेश हेंब्रम ने की. परगना बाबा, माझी बाबा, मानकी बाबा, मुंडा बाबा व दिसुआ सेंदरा वीरों की उपस्थिति में राकेश हेंब्रम ने 20 मई को दिसुआ दलमा सेंदरा पर्व मनाने का आह्वान किया. उन्होंने पहला किता गिरा सकाम अर्थात सेंदरा निमंत्रण पत्र जुगसलाई तोरोफ परगना दशमत हांसदा को सौंपा. साथ ही उनसे आग्रह किया वे अपने तोरोफ के सेंदरा वीरों को दलबल के साथ उक्त निर्धारित तिथि पर लेकर आयें. बैठक में जुगसलाई ताेरोफ परगना दशमत हांसदा, तालसा गांव के माझी बाबा दुर्गाचरण मुर्मू, डेमका सोय, रोशन पूर्ति, मोसो सोय, चांडू पूर्ति, सुकलाल सामद, सुकरा बारजो, शंकर गागराई, संजू हेंब्रम, छोटे सरदार, लखन सामद, जेना जामुदा, राजू सामंत, धानो मार्डी, कृष्णा देवगम आदि मौजूद थे.
ग्राम व वन देवी-देवताओं का किया आह्वान
सेंदरा वीरों को खजूर के पत्ते से बने पारंपरिक निमंत्रण ‘गिरा सकाम’ बांटने से पूर्व राकेश हेंब्रम ने गदड़ा स्थित अपने पैतृक आवास प्रांगण में ग्राम व वन देवी-देवताओं का आह्वान किया. उन्हें सेंदरा की तिथि से अवगत कराते हुए उनकी सहमति मांगी.
खजूर के पत्ते में 38 गांठ बांधे, आज से एक-एक कर खोला जायेगा
देवी-देवताओं को आह्वान कर खजूर की डाली में 38 पत्तों की गांठ बांधी गयी. जिसे शनिवार से एक-एक गांठ प्रतिदिन खोला जायेगा. जिस दिन अंतिम गांठ खुलेगी, उसी दिन सेंदरा पर्व मनाया जायेगा. आदिवासी समाज आदिकाल से सेंदरा पर्व मनाता आ रहा है. खजूर के पत्ते से बने ‘गिरा सकाम’ के माध्यम से वे एक-दूसरे से संपर्क साधते रहे हैं. गिरा सकाम को देखने के बाद ही दिसुआ सेंदरा वीर समझ जाते थे कि सेंदरा कब होना है. गिरा सकाम को विभिन्न गांव में भेजकर सेंदरा की तारीख को वायरल किया जाता था.
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सेंदरा का है सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व
जुगसलाई तोरोफ के परगना बाबा दशमत हांसदा ने कहा कि आदिवासी समाज पूर्वजों के बनाये इस पर्व को आज भी मना रहा है. सेंदरा की परंपरा को पशुओं के शिकार से जोड़कर देखना उचित नहीं है. आज के परिप्रेक्ष्य में सेंदरा कैसा होना चाहिए, इससे सभी आदिवासी सेंदरा वीर अवगत हैं. सेंदरा के बहाने भिन्न जगहों के लोगों का एक महामिलन होता है. इसका सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक महत्व है.
रीति व कुरीतियों पर होता है मंथन
तालसा माझी बाबा दुर्गाचरण मुर्मू ने कहा कि सेंदरा पर्व की शुरुआत महज शिकार के लिए नहीं हुई थी. सेंदरा पर्व के दौरान घने जंगलों में जड़ी- बूटियों की तलाश की जाती है. ताकि जरूरत के वक्त उसे लाकर इलाज कराया जा सके. सेंदरा में दिसुआ सेंदरा वीरों का जुटान होता है. इस दौरान सामाजिक रीति व कुरीतियों पर भी मंथन होता है.
सामाजिक पाठशाला भी है सेंदरा पर्व
हो समाज के बुद्धिजीवी डेमका सोय ने कहा कि सेंदरा पर्व आदिवासी समाज की सामाजिक पाठशाला भी है. युवाओं व नव विवाहितों को सामाजिक जीवन जीने की कला के बारे में बताया जाता है. इसके प्रशिक्षक अर्थात सिंगराई वीर नाचते-गाते हुए मनोरंजक अंदाज में युवाओं को जीवन की कई बारीकियों से अवगत कराते हैं. वहीं समाज के लोगों को सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बताया जाता है.
वन देवी-देवताओं की होती पूजा अर्चना
हो समाज के बुद्धिजीवी रोशन पूर्ति ने कहा कि सेंदरा पर्व के दौरान वन देवी-देवताओं की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. उनसे अच्छी बारिश और अच्छी फसल होने की मांग की जाती है. समाज के लोग मानव समाज की उन्नति व प्रगति के लिए उनका धन्यवाद करते हैं. क्योंकि उनके ही सानिध्य में रहकर समाज व संस्कृति का विकास संभव हो पाया है.