East Singhbhum News : आधुनिकता के प्रभाव में लुप्त हो रही परंपरा
गालूडीह के मूर्तिकार ने बनायी नौ टुसू प्रतिमा, दो नहीं बिकी, पहले 100 बनाते थे, बाउड़ी पर चावल पिसकर घरों में बनाया गया पीठा
गालूडीह. झारखंड के बड़े पर्व में शामिल टुसू आज है. इस दिन लोग सुबह स्नान के बाद नये कपड़े व जूते पहनते हैं. घरों में तरह-तरह के पीठा (पकवान) बनाते हैं. टुसू की असल परंपरा और लोक गीत अब पीछे छूट रहे हैं. गालूडीह महुलिया आंचलिक दुर्गा मंडल स्थित ऊपरडांगा के मूर्तिकार कंगला दलाई ने बताया कि इस बार टुसू की सिर्फ नौ मूर्तियां बनायी हैं. इसमें दो टुसू की मूर्ति नहीं बिकी. पहले सैकड़ों मूर्तियां बनाते थे. गांव-गांव में लोग टुसू मूर्तियां लेकर जाते थे. अब लोग मूर्तियां ले रहे, वह प्रतियोगिता के लिये. छोटी और मध्यम स्तर की टुसू मूर्तियां की अब मांग नहीं है.
पहले टुसू प्रतिमा लेकर महिलाएं 15 दिन तक टुसू गीत गाती थीं. माथे पर टुसू लेकर गीत गाते हुए नदी जाती थीं. अब ऐसा नहीं है. मूर्तिकार कंगला दलाई सोमवार को टुसू प्रतिमा को अंतिम रूप दे रहे थे. उन्होंने कहा कि मां सरस्वती की मूर्तियां की मांग अब भी है. इसकी वजह है कि स्कूलों में पूजा होती है. विकास और बंकेश दलाई भी मूर्तियां बनाते हैं. उनके पिता स्वर्गीय दुखीराम दलाई पहले मूर्ति बनाते थे. इससे उनका परिवार चलता है. मूर्ति बनाने के लिए बांस, घास, पुआल, मिट्टी अब महंगी मिल रही है. इससे ज्यादा मुनाफा नहीं होता.अब नहीं सुनायी पड़ते के साला माताल बोले, दुनिया पागोल मोदेर बोतोले…जैसे गीत
टुसू पर्व पर हुहलबाजी करते लोक गीतों में के साला माताल बोले, दुनिया पागोल मोदेर बोतेले, दोके के दिलो गो लाल साड़ी, बिष्टुपुरेर बूढ़ा पांजाबी… आदि अब विलुप्त हो चुके हैं. पहले इन गीतों को गाते हुए लोग नदी घाट टुसू लेकर जाते थे. 13 जनवरी को बाउड़ी मनाया गया. लोगों ने चावल को पिसकर गुड़ी बनाया. इसका पीठा बनाया. इससे लेकर मुर्गे-खस्सी के मांस की खूब ब्रिकी हुई. 14 को मकर संक्रांति मनेगा. 15 जनवरी को आखाइन यात्रा मनेगा. इस किसान अपने खेत को परंपरा के अनुसार जोतेंगे. नये और शुभ कार्य करेंगे. इसके साथ सप्ताह भर तक टुसू मेला का दौर चलेगा.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है