Sarna Code : लंबे समय से झारखंड के आदिवासी मांग कर रहे हैं कि देश की जनगणना में उनके लिए एक अलग धार्मिक संहिता की श्रेणी होनी चाहिए, जिसका नाम उन्होंने अपने पूजा स्थल के नाम पर ‘सरना कोड’ रखा है. वर्तमान में, देश की जनगणना में छह धर्मों को मान्यता मिली हुई है- हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन. पर जिन लोगों के धर्म या आस्था, इन छह धर्मों से अलग हैं, उन्हें ‘अन्य धर्म और मत’ वर्ग के तहत वर्गीकृत किया गया है.
आदिवासियों की धार्मिक आस्था हिंदू धर्म से अलग
झारखंड के कुछ आदिवासियों (लगभग 15 प्रतिशत) ने ईसाई धर्म अपना लिया है. जबकि इनमें से बाकी को आम तौर पर हिंदू या ‘अन्य धर्मों और मान्यताओं’ (एसटी जनसंख्या का 45 प्रतिशत से अधिक) का पालन करने वालों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. हालांकि, इन आदिवासियों की धार्मिक आस्था हिंदू धर्म से अलग है. वे प्रकृति पूजक हैं और हिंदू धर्म के विपरीत उनमें नरक और स्वर्ग की अवधारणा नहीं है, न ही वे वर्ण व्यवस्था का पालन करते हैं. इसलिए उनमें से बहुत से लोग न तो हिंदू के रूप में वर्गीकृत होना चाहते हैं, न ही वे किसी धार्मिक पहचान के बिना रहना चाहते हैं और न ही अपने आपको ‘अन्य धर्मों और मान्यताओं’ का पालन करने वालों के साथ जोड़ा जाना चाहते हैं. इसलिए वे अपनी धार्मिक पहचान स्थापित करने के लिए देश की जनगणना में अलग धार्मिक संहिता, यानी धार्मिक कोड की मांग कर रहे हैं.
हिंदू संगठन सरना धर्म कोड के खिलाफ
कुछ हिंदू संगठन सरना को अपने ही धर्म का एक रूप मानते हैं और इसलिए धार्मिक संहिता की मांग को विभाजनकारी कृत्य मानते हुए वे इस मांग के खिलाफ हैं. हाल ही में संपन्न झारखंड विधानसभा चुनाव में सरना कोड की मांग प्रमुख मुद्दों में से एक बन गयी थी. सो, इंडिया और एनडीए दोनों ने अपने मतदाताओं से सरना कोड को मान्यता देने का वादा किया था. यह झामुमो और कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा था.
सर्वे में लोगों ने स्वीकारा वो करते हैं सरना धर्म का पालन
लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किये गये सर्वेक्षण में लगभग 48 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने सरना धर्म के बारे में सुना है, जबकि 29 प्रतिशत ने कहा कि वे इसका पालन करते हैं. सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) के बीच इस धर्म को मानने वालों का प्रतिशत बहुत अधिक है. लगभग 73 प्रतिशत एसटी ने बताया कि वे इस धर्म का पालन करते हैं. इनमें से लगभग 88 प्रतिशत उरांव, 78 प्रतिशत संताल और 50 प्रतिशत अन्य आदिवासी समुदाय ने कहा कि वे सरना धर्म का पालन करते हैं. यह भी सच है कि यह मुद्दा धीरे-धीरे राज्य में एक बड़ा विभाजनकारी मुद्दा बनता जा रहा है.
सर्वे में लोगों ने कहा कि सरना धर्म को रखा जाए अलग श्रेणी में
सर्वेक्षण के दौरान लगभग 31 प्रतिशत उत्तरदाता इस बात के पक्ष में थे कि सरना धर्म को जनगणना में एक अलग श्रेणी के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए. हालांकि, उनमें से 49 प्रतिशत इसके विरोध में थे और 20 प्रतिशत की कोई राय नहीं थी. दूसरी ओर, सरना धर्म को मानने वालों में से 81 प्रतिशत ने इस बात का समर्थन किया कि इस धर्म को भारतीय जनगणना में एक अलग धर्म के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए. केवल 10 प्रतिशत ने इसका समर्थन नहीं किया और नौ प्रतिशत ने इस बारे में कोई राय व्यक्त नहीं की.