झारखंड: उग्रवाद प्रभावित था गढ़वा का ये गांव, नक्सलियों के गोलियों की दहशत भी नहीं झुका सकी इनके देश प्रेम को

II मुकेश तिवारी II रमकंडा : गढ़वा जिले के रमकंडा प्रखंड का अति उग्रवाद प्रभावित गांव है गोबरदाहा. एक समय था जब नक्सलियों की गोलियों से यह आदिम बहुल जनजातिवाला गांव थर्रा उठता था. नक्सली युवाओं को अपने दस्ते में शामिल करने के लिए दबाव बनाते थे. वहीं दूसरी तरफ गांव के हर युवा को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 17, 2018 1:24 AM
II मुकेश तिवारी II
रमकंडा : गढ़वा जिले के रमकंडा प्रखंड का अति उग्रवाद प्रभावित गांव है गोबरदाहा. एक समय था जब नक्सलियों की गोलियों से यह आदिम बहुल जनजातिवाला गांव थर्रा उठता था. नक्सली युवाओं को अपने दस्ते में शामिल करने के लिए दबाव बनाते थे. वहीं दूसरी तरफ गांव के हर युवा को पुलिस शक भरी निगाहों से देखती थी.
तमाम विपरीत परिस्थितियों को दरकिनार कर इस आदिम जनजाति बहुल गांव के एक दर्जन से अधिक युवक झारखंड पुलिस में शामिल होकर मिसाल पेश कर रहे हैं. इनमें छह युवतियां इंडियन रिजर्व बटालियन में नियुक्त हैं इनसे गांव के अन्य युवा भी प्रेरणा ले रहे हैं.
गढ़वा : आदिम जनजाति बहुल गांव के 12 युवा झारखंड पुलिस में
मूलभूत सुविधा से वंचित है गांव : आजादी के 70 साल बाद भी गोबरदाहा गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. सड़क, पेयजल, सिंचाई, शिक्षा की स्थिति दयनीय है. आदिम जनजातियों के लिए सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के लाभ से भी वंचित गांव चारों तरफ से जंगलों से घिरा है.
नक्सली नेताओं का शरणस्थली था
गोबरदाहा गांव बड़े नक्सलियों और उग्रवादियों का शरणस्थली हुआ करता था. भाकपा माओवादी के भानु, टीपीसी के अर्जुन, नितांत, टीपीसी टू के रोशन, महेंद्र सहित कई बड़े उग्रवादी का ठिकाना था.
सिर्फ रात ही नहीं, दिन में भी यहां आपको नक्सली दस्ता आराम करते, खाना खाते दिख जाता था. कई बार नक्सली संगठनों में आपस में भिड़ंत भी हो जाती थी. गोलियों से पूरा गांव गूंज उठता था. ग्रामीण दहशत में जीने को विवश थे. वर्ष 2015-16 में पुलिस व नक्सलियों के बीच कई बार मुठभेड़ भी हुई. हालांकि धीरे-धीरे पुलिस की सक्रियता से नक्सली गतिविधियां कम हो गयी है.

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