सीट के अनुपात में नहीं होता है नामांकन
भटकना पड़ रहा है कम अंक लानेवाले विद्यार्थियों को
गढ़वा : गढ़वा जिले में मैट्रिक का परीक्षाफल निकलते ही इंटरमीडिएट में नाम लिखाने हेतु विद्यार्थियों की भाग-दौड़ शुरू हो चुकी है. इंटरमीडिट कॉलेजों में अपेक्षा से काफी कम सीट होने के कारण विद्यार्थियों को ज्यादा परेशान होना पड़ रहा है. विदित हो कि इस वर्ष गढ़वा जिले के 18567 छात्र-छात्राओं ने मैट्रिक की परीक्षा पास की है.
सीटों की संख्या 10 हजार से भी कम हैं. इंटरमीडिएट महाविद्यालयों में इसके मुताबिक आधी सीट भी नहीं है. जिले के 13 उच्च विद्यालयों में भी प्लस टू की पढ़ाई होती है. लेकिन इन विद्यालयों में शिक्षक के अभाव के कारण पढ़ाई के प्रति गंभीर विद्यार्थियों का ठहराव प्लस टू करने के लिए यहां नहीं हो पाता है. विशेष कर विज्ञान पढ़नेवाले विद्यार्थी जिला मुख्यालय की ओर भागते हैं. जिले के एकमात्र अंगीभूत कॉलेज एसएसजेएस नामधारी महाविद्यालय में इंटरमीडिएट के तीनों संकायों को मिला कर कुल 1920 सीटे हैं.
इसके अलावा अद्यविद परिषद से संबद्धता प्राप्त महाविद्यालयों में यहां गोपीनाथ सिंह महिला महाविद्यालय, एसपीडी कॉलेज एवं यासीन मिल्लत कॉलेज में भी इंटर की पढ़ाई होती है.जिला मुख्यालय से बाहर स्थित इंटर कॉलेजों में शंकर प्रताप देव इंटर कॉलेज नगरउंटारी, शिवेसर चंद्रवंशी कॉलेज मझिआंव, राजमाता गुंजेश्वरी देवी कॉलेज रंका, सोनभद्र इंटर कॉलेज कांडी एवं माइंस इंटर महाविद्यालय भवनाथपुर शामिल हैं.
इनमें अधिकतर कॉलेज में अपेक्षित प्रयोगशाला एवं व्याख्याताओं के अभाव के कारण विद्यार्थियों का गिने-चुने महाविद्यालयों में नामांकन कराने पर जोर रहता है. इसमें सबसे अधिक परेशानी कम अंक लानेवाले छात्र-छात्राओं को होती है.
वैसे विद्यार्थियों को या तो फिर बाहर के कॉलेजों में नामांकन के लिए प्रयास करना पड़ेगा अथवा प्लस टू में ही पढ़ने के लिए विवश होना पड़ेगा. सरकार ने विद्यार्थियों की इस परेशानी को दूर करने के लिए ही यहां के 13 विद्यालयों में प्लस टू की पढ़ाई हेतु मान्यता प्रदान की, लेकिन एक तो विद्यालयों में निर्धारित सीट की तुलना में नामांकन नहीं होता. दूसरा यहां प्लस टू की पढ़ाई के लिए शिक्षकों की उस अनुपात में आज तक नियुक्ति नहीं की गयी. ये सभी विद्यालय विषयवार शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं. इसके कारण एक तरह से विद्यालयों में प्लस टू की पढ़ाई शुरू करना विद्यार्थियों के साथ मजाक करने जैसा ही है.