गढ़वा : कहावत है कि जब छप्पर से पानी टपकने लगता है, तो घर मालिक की छप्पर छाने के लिए नींद खुलती है. यही स्थिति गढ़वा में पानी संकट को लेकर भी है. प्रचंड गर्मी में जब नदी-नाले के साथ बोरिंग व चापाकल का पानी सूख जाता है तब सभी को पानी संकट की भयावहता याद आती है.
लोग न सिर्फ पानी की समस्या को लेकर चिल्लाना शुरू कर देते हैं बल्कि ग्लोबल वार्मिंग व तेजी से नीचे जा रहे जलस्तर को बचाने के लिए भी चिंता होने लगती है. बस एक महीने तक इस पर हो-हल्ला होता है और जैसे ही जलस्तर को प्रभावित करने लायक एकाध बारिश होती है, सभी फिर इस मुद्दे को हर बार की तरह भूल कर पुरानी दिनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं.
बरसात के बाद गर्मी आने के पूर्व तक पानी की व्यवस्था करने एवं उपलब्ध जल को संचय करने अथवा बरसात के जल को सोख्ता के माध्यम से घरों व आसपास की धरती में भूमिगत करने का प्रयास करने की बात कभी नहीं हुई. यही कारण है कि हर गर्मी में पानी को लेकर गढ़वा वासियों का जीवन बड़ा कठिन हो जाता है. घर में पानी का जुगाड़ करना दिनचर्या का मुख्य हिस्सा बन जाता है. जिले के गिने-चुने गांवों को छोड़कर शहर से लेकर गांव तक अधिकांश आबादी इस समय पानी के लिए परेशान दिखती है.
इस समय विकास के अन्य सारे कार्य हो रहे हैं. सरकार द्वारा गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए भी अभियान जोरों पर है. लेकिन पीने के पानी के लिए ठोस योजना के अभाव के कारण गढ़वा जिले के लोग वर्षों से पानी संकट झेलने को विवश हैं. नागरिकों अथवा सामाजिक, राजनीतिक दलों द्वारा पानी की समस्या के स्थायी समाधान के लिए ठोस पहल अथवा आंदोलन के अभाव में समाधान कागजों पर ही चल रहा है.