रामचंद्र केसरी, पूर्व विधायक
विनोद पाठक, गढ़वा : वर्ष 1977 में भवनाथपुर विधानसभा सीट से रामचंद्र केसरी पहली बार जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव जीते थे. यह सीट कांग्रेस पार्टी और विशेष तौर पर नगरउंटारी स्टेट परिवार का गढ़ माना जाता था. इसके पूर्व लगातार वर्ष 1951, 1957, 1967 व 1972 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. नगरउंटारी गढ़ परिवार के स्वर्गीय शंकर प्रताप देव पहली बार 1962 में स्वतंत्र पार्टी से चुनाव जीते थे. लेकिन इसके बाद लगातार वे 1967 व 1972 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे.
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कांग्रेस के गढ़ में रामचंद्र केसरी ने लगाई थी सेंध, 1977 में आठ हजार रूपये में चुनाव लड़े और जीते
रामचंद्र केसरी, पूर्व विधायकविनोद पाठक, गढ़वा : वर्ष 1977 में भवनाथपुर विधानसभा सीट से रामचंद्र केसरी पहली बार जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव जीते थे. यह सीट कांग्रेस पार्टी और विशेष तौर पर नगरउंटारी स्टेट परिवार का गढ़ माना जाता था. इसके पूर्व लगातार वर्ष 1951, 1957, 1967 व 1972 में कांग्रेस ने जीत […]
इसके पूर्व 1951 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से राजेश्वरी सरोज दास तथा 1957 में कांग्रेस के ही यदुनंदन तिवारी इस सीट से चुनाव जीते थे. लेकिन वर्ष 1977 में बिहार विधानसभा चुनाव में रामचंद्र केसरी जनता पार्टी के टिकट से भवनाथपुर सीट से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार शंकर प्रताप देव से चुनाव जीते थे.
श्री केसरी बताते हैं कि उस समय चुनाव में कोई खास खर्च नहीं होता था. जनता पार्टी के टिकट मिलने के बाद कर्पूरी ठाकुर ने सभी प्रत्याशियों को चुनाव खर्च के लिए दो-दो हजार रुपये दिये थे. लेकिन उनको कर्पूरी जी ने एक हजार रुपये अधिक दिया था.
इसके अलावा चार-पांच हजार रुपये चंदा से भी मिला था. श्री केसरी कहते हैं : मैंने केवल आठ हजार रुपये में ही चुनाव लड़ा और जीता. चुनाव के दौरान मेरे पास दो जीप थे. इसमें एक जीप एक बीड़ी पत्ता व्यवसाय करनेवाली एनपी कंपनी का था और एक नगरउंटारी से मिली थी.
श्री केसरी ने कहा कि तब चुनाव में बूथ कार्यकर्ताओं को एक रुपया भी नहीं देना पड़ता था. अपना खर्च कार्यकर्ता खुद ही निकालते और बूथ मैनेजमेंट करते थे. उन्होंने कहा कि आज के चुनाव में प्रत्याशियों को क्षेत्र में जनता को प्रभावित करने के लिए पानी के तरह रुपये बहाना पड़ता है.
जबकि, उस समय क्षेत्र की जनता अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को वोट के साथ चंदा भी देती थी. श्री केसरी उस समय के राष्ट्रीय नेता राजनारायण, जॉर्ज फर्नांडीस, मधुलिमये, कर्पूरी ठाकुर, पूरनचंद जैसे नेताओं के साथ बिताये क्षेणों को याद करते हुए कहते हैं कि यह सब नेता कहीं भी किसी के घर पर रूखा-सूखा खाकर रह जाते थे.
एक बार राजनारायण जी के साथ जाने के दौरान सभी को भूख लगी. राजनारायण जी ने कहने पर सभी के लिए लट्ठो खरीदकर लाया गया. इसे ही खा कर राजनारायण जी और सभी कार्यकर्ता भी सो गये. आज चुनाव के दौरान केंद्रीय या राज्य स्तरीय नेताओं के आने पर उनके आने-जाने एवं व्यवस्था करने में ही लाखों रुपये खर्च हो जाता है. यह लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है.
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