दोनों पैर से दिव्यांग नारद ने नि:शक्तता को दी मात

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत सिखा कर युवाओं को बना रहा है आत्मनिर्भर बिना प्रशिक्षण प्राप्त किये ही इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत में दक्षता हासिल किया श्रीबंशीधर नगर : कहते है कि मनुष्य में लगन व काम करने की जज्बा हो, तो उसके लिए कोई भी काम मुश्किल नहीं होता है. हर विपरीत परिस्थितियों में भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 19, 2019 1:07 AM

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत सिखा कर युवाओं को बना रहा है आत्मनिर्भर

बिना प्रशिक्षण प्राप्त किये ही इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत में दक्षता हासिल किया
श्रीबंशीधर नगर : कहते है कि मनुष्य में लगन व काम करने की जज्बा हो, तो उसके लिए कोई भी काम मुश्किल नहीं होता है. हर विपरीत परिस्थितियों में भी वह अपनी लगन व परिश्रम से उस कार्य को पूरा कर लेता है. उसके लिए बाधाएं विकास में बाधक नहीं बनती है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया नगरऊंटारी प्रखंड के कोल्हुआ गांव निवासी नारद विश्वकर्मा(30) ने.
बुद्धि विश्वकर्मा के सबसे बड़े पुत्र नारद विश्वकर्मा जन्म के दूसरे वर्ष में ही पोलियो के शिकार हो गये. उस समय सरकारी अस्पतालों में इस तरह की सुविधाएं नहीं थी कि नारद का समुचित इलाज हो सके. पोलियो ग्रस्त होने के बाद भी उनके माता-पिता ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने अपनी क्षमता के अनुसार उसका लालन-पालन किया. साथ ही उसे पढ़ने के लिए गांव के ही विद्यालय में भेजने लगे.
प्राथमिक शिक्षा के बाद नारद विश्वकर्मा ने उच्च विद्यालय नगरऊंटारी से मैट्रिक की परीक्षा पास किया. नारद के अंदर शुरू से ही कुछ करने का जज्बा था. उस समय घर-घर रेडियो रखने का शौक था. उन्हीं में से कुछ खराब पड़े रेडियो को खोलते-बनाते रेडियो सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान की मरम्मत करने का अनुभव प्राप्त किया.
आज स्थिति यह है कि नारद इलेक्ट्रॉनिक सामान की मरम्मत में दक्षता हासिल कर चुका है. वह टीवी, कूलर, फ्रीज सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करने के साथ-साथ दर्जनों युवकों को उक्त उपकरणों की मरम्मत करने का प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार भी उपलब्ध कराया है. विगत 14 वर्षों से नगरऊंटारी मुख्य पथ के किनारे सूरज इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयरिंग की दुकान खोल कर स्वयं के साथ-साथ अन्य युवाओं को भी रोजगार उपलब्ध करा रहा है. प्रारंभ में जब वह दुकान खोला था, उसके भाई उसे दुकान लाते व घर ले जाते थे.
उसके छोटे भाई वशिष्ठ विश्वकर्मा ने अपने भाई का हर कदम पर सहयोग किया. नारद के कार्य के प्रति निष्ठा, उसका लगन व परिश्रम ने उसे कभी कमजोर साबित नहीं होने दिया. उसने कभी अपने को निःशक्त होने को अपनी कमजोरी नहीं समझा. यही कारण है कि नारद आज अपने पहचान के लिए मोहताज नहीं है.

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