बॉटम…ओके…एक गाड़ी गुजरती है, तो दूसरी पहुंच जाती है , ग्रामीणों का चैन छिना

बॉटम…अोके…एक गाड़ी गुजरती है, तो दूसरी पहुंच जाती है , ग्रामीणों का चैन छिनाहेडलाइन…चुनाव प्रचार के शोर में दब गयी जिंदगी की आवाजगढ़वा. पंचायत चुनाव यूं तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे निचले स्तर का चुनाव है. इस चुनाव में निर्वाचन आयोग ने प्रचार खर्च के लिए अन्य चुनावों की तरह ही एक सीमा निर्धारित कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 5, 2015 6:29 PM

बॉटम…अोके…एक गाड़ी गुजरती है, तो दूसरी पहुंच जाती है , ग्रामीणों का चैन छिनाहेडलाइन…चुनाव प्रचार के शोर में दब गयी जिंदगी की आवाजगढ़वा. पंचायत चुनाव यूं तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे निचले स्तर का चुनाव है. इस चुनाव में निर्वाचन आयोग ने प्रचार खर्च के लिए अन्य चुनावों की तरह ही एक सीमा निर्धारित कर रखी है. लेकिन पंचायत चुनाव में खड़े प्रत्याशियों ने वे सभी रास्ते अपनाने का प्रयास किया, जैसे लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी अपनाते हैं. मतदान के पहले अपने प्रतिद्वंद्वियों को प्रचार में पछाड़ने की होड़ अंतिम समय तक बनी रही. मुखिया और पंचायत समिति के सदस्यों का प्रचार का दायरा काफी कम क्षेत्रफल में होने के बावजूद अधिकतर प्रत्याशियों ने प्रचार के लिए चारपहिया वाहन का उपयोग किया है. सिर्फ वाहन ही नहीं, बल्कि इन वाहनों पर तेज साउंड में एक से एक आकर्षक अंदाज में संगीतमय प्रचार की व्यवस्था की गयी. प्रचार गाड़ियों में फिल्मी एवं लोकधुनों पर आधारित प्रत्याशियों के पक्ष में गाने बजते सुने जा रहे हैं. जाहिर है कि इस गानों की रिकॉर्डिंग से लेकर उसे डीजे साउंड से पूरे चुनाव समय तक प्रचार के लिए काफी पैसे भी खर्च किये गये हैं. इन वाहनों पर तेज साउंड बजाने के लिए जेनरेटर की आवश्यकता पड़ती है. इसलिए एक जेनरेटर लगातार इन वाहनों पर चलाये जा रहे हैं. इस तरह पूरे चुनाव तक एक वाहन को चलाने में भी पंचायत प्रत्याशी का खर्च काफी बढ़ जाता है. बावजूद इसके सभी प्रत्याशी एक से बढ़ कर एक आकर्षक अंदाज में अपने चुनाव प्रचार पर खर्च कर रहे हैं. जिला परिषद सदस्य के उम्मीदवार चुनाव प्रचार में अौर अधिक खर्च करते देखे जा रहे हैं. मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी प्रत्याशी एक से एक गीत, संगीत और नारे का उपयोग कर रहे हैं. मतदाताओं को इस प्रकार का प्रचार नवंबर के दूसरे सप्ताह से सुनने को मिल रहा है. क्षेत्रवार 10 दिसंबर तक संगीत पर आधारित नारे और प्रचार सुना जा सकेगा. पंचायत चुनाव में किसी-किसी क्षेत्र में प्रत्याशियों की काफी अधिक संख्या है. इस परिस्थिति में कोई भी गांव में (जहां का चुनाव नहीं हुआ है) ऐसा समय नहीं रहता, जब उनके गांव में कोई न कोई प्रचार गाड़ी अपना प्रचार न कर रहा हो. कभी-कभी एक ही साथ एक से अधिक प्रत्याशियों की प्रचार गाड़ी एक ही जगह पहुंच जा रही है. इससे गांव में अजीब स्थिति पैदा हो जा रही है. गढ़वा प्रखंड पश्चिमी क्षेत्र से जिला परिषद सदस्य के लिए 17 उम्मीदवार हैं. अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतने प्रत्याशियों के साथ मुखिया और बीडीसी प्रत्याशी की प्रचार गाड़ी जब गांवों में पहुंच रही होगी, तो क्या स्थिति बनती होगी. सुबह से लेकर 10 बजे रात तक ग्रामीण प्रचार के शोर में खोये रह रहे हैं. फिलहाल गढ़वा जिला के 17 प्रखंडों में चुनाव प्रचार समाप्त हो चुका है. अब मात्र गढ़वा, मेराल और डंडा तीन प्रखंड बचे हुए हैं. यहां के मतदाताओं को इस प्रकार का कानफोड़ू प्रचार सुनने की विवशता बनी हुई है.

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